फ्रिज या सूटकेस में जाने से बचना स्वरा भास्कर

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बहुत बधाई अनारकली ऑफ़ आरा की अभिनेत्री स्वरा भास्कर। बस टुकड़े-टुकड़े हो कर फ्रिज या सूटकेस में जाने से पहले ही अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की याद रखना। वैज्ञानिक और देश प्रेमी पिता की लाज भी बचाए रखना। इस लिए भी कि एक झूठे मसले CAA-NRC विरोध में देश में आग…

बॉलीवुड की लुटिया डुबोती फ़िल्में

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हिन्दी सिनेमा के निर्माताओं और निर्देशकों को यह समझना होगा कि किसी भी अच्छी फ़िल्म बनाने के लिये सबसे महत्वपूर्ण तत्व है एक अच्छी कहानी। उन्हें साहित्य जगत से रिश्ता बनाना चाहिये। ऐसी बहुत सी रचनाएं समय-समय प्रकाशित होती रहती हैं जो सिनेमा को नवीनता प्रदान कर सकती हैं। हिन्दी…

बॉलीवुड के बेशर्म रंग

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‘बेशर्म रंग’ वैसे तो शाहरुख खान और दीपिका पादुकोण अभिनीत नई फिल्म पठान का एक गीत मात्र है, जिसे लेकर पिछले कई दिनों में कई चर्चाएं हुई हैं, लेकिन पिछले कुछ सालों में बॉलीवुड का ही रंग ‘बेशर्म’ हो चला है। एक समय था जब फिल्मों को समाज का आईना कहा जाता था, फिल्म बनाने वालों…

एजेंडा सेट करके कैसे किया जाता है दिमाग हैक ?

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चार किताबें,, मेरे पास युवा लड़के खूब बैठते थे आकर,, उन्होंने एकबार पूछा कि महाराज जी कैसे पता चले कि कोई व्यक्ति एजेंडा सेट करके हमारे दिमाग को हैक कर रहा है?? देखो भाई,,वैसे तो अनेकों तरीके होते हैं पता करने के लेकिन ज्ञान सबसे महत्वपूर्ण है,, अपने धर्म का…

शरद पूर्णिमा: एक शाम दोस्तों के नाम

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एक समय था, जब शरद पूर्णिमा के दिन जगह-जगह पूरी रात सांस्कृतिक कार्यक्रम होते थे, इसे युवाओं का त्यौहार माना जाता था। संगीत की महफिल, नाटक का मंचन, कविताओं का पठन, सामूहिक या व्यक्तिगत नृत्य इत्यादि का प्रदर्शन करके देर रात जागरण होता था। लगभग पूरे साल इस त्यौहार की राह देखी जाती थी। आज युवाओं के कार्यक्रम के नाम पर होने वाली फूहड़ रेव पार्टी से यह कहीं ज्यादा सुंदर, मनभावन और अपनी संस्कृति से जुड़ा हुआ है। क्या इसे पुन: वही स्वरूप दिया जा सकता है?

क्रीएटिव फ़्रीडम के नाम पर बॉलीवुड का षड्यंत्र

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आज समझ में आता है कि.... क्रीएटिव फ़्रीडम के नाम पर कोई षड्यंत्र चल रहा है ! अब यह षड्यंत्र असहय हो गया है ! महिला पायलट के जीवन पर उन्ही के नाम से बनी फ़िल्म  में ही वायुसेना अधिकारी महिला छेड़ते हैं।  महिला चीख चीख कर कह रही है कि ऐसी कोई घटना नहीं हुई ! पर निर्लज्ज बोलिवुड हंस कर कहता है ,”क्रीएटिव फ़्रीडम है !!“ दुख इस बात का नहीं पैसे के लिए बालीवुड बिक गया  भोली जनता पैसे खर्च कर  बालीवुड के पास  जो भी जाता है उसे देशद्रोह प्यारा और देशभक्ति त्याज्य लगने लगती है !

तू हाँ कर या ना कर…..तू है मेरी किरन…..

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टीनएज की दहलीज पर हारमोनल बदलावों से गुजरती लड़कियों को ऐसे आक्रामक स्टॉकर्स सैक्सुअली भी अधिक अट्रैक्ट करते हैं। 'इतना गुस्सैल है तो बैड में कितना हॉट होगा' यह डिस्कसन कॉलेज नहीं, स्कूल कैंटीन में प्रतिदिन ही सुनती हूँ। आठवीं,दसवीं की छात्राएं बेचारी ये बच्चियाँ ये नहीं जानतीं कि ज्यादा 'हॉट' इतना 'हॉट' होता है कि अंकिता जैसी निर्दोष,निष्पाप बच्ची किसी नशेड़ी की एकतरफा 'हॉटनैस' में जलकर भस्म हो जाती है।

दाऊदवुड फिल्मों की ही देन है…’लव जिहाद’

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फ़िल्म डर में शाहरुख का किरदार, लड़की के करीबियों को डराता है, उन पर हमला करता है, लड़की को मानसिक और शारीरिक तौर पर प्रताड़ित करता है, क्योंकि वो उससे एकतरफा प्रेम करता है, दोनों ही फिल्मों में नायक से अधिक प्रेम जनता ने खलनायक पर लुटाया था, जिससे अपराधी प्रवृत्ति के युवाओं को मानसिक बल मिला, वो पहले से ही अपने कृत्य को सही मानते थे, और शाहरुख के किरदारों को जनता से इतना प्रेम मिलता देख उनका हौसला, उनका पागलपन और बढ़ गया,

बॉलीवुड ने हमेशा हिन्दू धर्म को बदनाम किया है

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फहरान ने पूरी मक्कारी के साथ कप्तान का नाम बदल कर इस्तियाक रख दिया और कोच मुखर्जी को एक वेबड़ा दिखा दिया जो अपने घर पर पत्नी से पिटता है और दारू पीकर कहीं भी लोट जाता है। जबकि असलियत यह थी कि कोच मुखर्जी ने जिंदगी में कभी शराब नहीं पी और उससे भी बड़ी बात मुखर्जी ने कभी विवाह ही नहीं किया था। बहुत लोग कहेंगे तो क्या हुआ मूवी में तो यह सब चलता है, बस यहीं पर गड़बड़ है आज के पहले कितने लोग इन दोनों का नाम जानते थे? नई पीढ़ी तो बिल्कुल भी नहीं जानती, वह मूवी देख कर क्या जानेगी, यही न कि भारत के लिए पहला गोल्ड जीतने वाली टीम के कैप्टन इस्तियाक था और कोच वेबड़ा। फिर भी यदि लोग कहें कि क्या फर्क पड़ता है तो उनसे कहिएगा कि कल को तुम्हारे पोते को यह बताया जाए कि तुम्हारे दादा का नाम किशनलाल नहीं बल्कि इस्तियाक था तो उसकी प्रतिक्रिया क्या होगी?

हिन्दू त्योहारों पर गन्दा और भद्दा नाच-गाना क्यों ?

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कभी ईद में मुसलमानो को मस्ज़िद के सामने नशा करके अश्लील गानों पर नाचते हुए देखा है क्या ? कभी यीशु मसीह के सामने क्रिस्चियन लोगो को शांताबाई गाने पर नाचते हुए देखा है क्या ? कभी जैन लोगो को उनके भगवान के सामने, आला बाबुराव गाना लगाकर नाचते हुए देखा है क्या ? ये सब समाज अपने अपने इष्ट का मान सम्मान बड़ी ईमानदारी से करते है । क्योकि उनको उनका धर्म उनकी संस्कृति को टिकाना है । फिर हमारे हिन्दू धर्म के भगवान के सामने नशा करके और डीजे लगाकर अश्लील गाने लगाकर ये भद्दा नाच क्यों ?

‘आदर्श’ की तरह प्रस्तुत हों आदर्श

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कहा जाता है कि सिनेमा समाज को दर्पण दिखाता है परंतु यदि उसे माध्यम बनाने वालों का ध्येय शुद्ध ना हो तो वे समाज को गलत इतिहास और कथावस्तु से परिचित कराने का प्रयास करते हैं। तथ्यों से अपरिचित किशोर  और युवा उसी असत्य को सत्य मानकर आचरण करने लगते हैं।

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