डम्पिंग ग्राउंड बना कचरों का पहाड़

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भारत में कचरे की समस्या खतरनाक स्तर पर पहुंच गई है और इसे काबू में करना बहुत जरूरी है। वर्तमान समय में भारत के हर नगर में कचरे के अंबार देखे जा सकते हैं।

आबोहवा को क्या हो गया है?

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आबोहेवा का मिजाज बदल गया है और मौसम रूठ गए हैं। मनुष्य इसका दोषी है। जिस तेजी से हम जंगलों को काट कर हरियाली मिटा रहे हैं, जल, थल और आसमान में जहर भर रहे हैं, अपनी सदानीरा नदियों को प्रदूषित कर रहे हैं, उस सबका परिणाम है यह। नए भारत में इसे सुधारने के लिए हमें कदम उठाने होंगे।

प्लास्टिक प्रदूषण पर हो संगठित प्रहार

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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की दुनिया में ऐसे बहुत से आविष्कार किए गए, जो मनुष्य जीवन को सरल एवं बेहतर बनाने के उद्देश्य से किए गए लेकिन समय के साथ-साथ वही मानव जीवन के लिए एक बड़ा संकट बन गए।

तबाही और सवाल छोड़ गया है ‘फानी’

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चक्रवाती तूफानों के नाम रखने की भी एक दिलचस्प प्रक्रिया है। अलग-अलग देश तूफानों के नाम सुझा सकते हैं। बस शर्त यह होती है कि नाम छोटे, समझ में आने लायक और ऐसे हों जिन पर सांस्कृतिक रूप से कोई विवाद नहीं हो। फानी तूफान का नामकरण बांग्लादेश की ओर से किया गया है और बांग्ला में इसका उच्चारण फोनी होता है और इसका मतलब सांप है।

वृक्ष तपश्चर्या

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महाराष्ट्र के पश्चिमी घाट का महेन्द्र पर्वत वन क्षेत्र पौराणिक संदर्भों के अनुसार महर्षि परशुराम की  तपस्थली रहा था और उसके विकसित तथा संरक्षित करने का उन्होंने दीर्घकालीन कठिन कार्य किया था। इसको ही तत्कालीन समाज तपश्चर्या कहता था। हाल ही में सम्पन्न एक अपराध-अन्वेषण में यह स्पष्ट हुआ है…

मैं कटना नहीं चाहता…

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पेड़ सिसक कर कह रहा है, “ मनुष्य का अस्तित्व हमारे सह- अस्तित्व से ही है। अत: मुझ पर आश्रित पंछियों, कीटकों से लेकर मनुष्य तक के लिए मैं कटना नहीं चाहता...।” क्या आप हमारी बात सुनेंगे? अगर मैं आपसे पूछूं कि आज दुनिया में सब से तेज गति से…

वनों की आत्मकथा

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“आज जब मानव वन महोत्सव मनाता है, पर्यावरण दिवस मनाता है और वन्य जीवों को सुरक्षित रखने के अभियान चलाता है, तो हमें आशा की एक धुंधली किरण दिखाई देती है। हमें ऐसी अनुभूति होती है कि मनुष्य संभवतः सजग हो रहा है। कभी-कभी ऐसा भी लगता है कि वह…

कहां खो गए वे पशु-पक्षी?

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प्रकृति में हरेक जीव-जंतु का एक चक्र है, जैसे कि जंगल में यदि हिरण जरूरी है तो शेर भी। ...हर जानवर, कीट, पक्षी धरती पर इंसान के अस्तित्व के लिए अनिवार्य है। इसे हमारे पुरखे अच्छी तरह जानते थे, लेकिन आधुनिकता के चक्कर में हम इसे भूलते जा रहे हैं।…

जैव विविधता भारत की धरोहर है

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जानवरों की घटती संख्या छठे महाविनाश का हिस्सा है। पहले 5 महाविनाश प्राकृतिक थे इसलिए उनकी भरपाई जल्द हो गई, छठा महाविनाश मानव निर्मित है, जिसकी भरपाई होना मुश्किल है। यदि मानव समय पर सतर्क नहीं हुआ तो मानवी जीवन ही संकट में पड़ जाएगा। जिस तरह से आज पूरी…

जो भी करूंगा, पशुओं के लिए करूंगा… – गणेश नायक

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पर्यावरण, वन्य एवं अन्य प्राणियों की सेवा, सुरक्षा और चिकित्सा में अपना जीवन समर्पित करने वाले तथा जानवरों की संवेदना, पीड़ा व प्रेम की मूक भाषा समझने वाले  पशुप्रेमी श्री गणेश नायक ने ‘हिंदी विवेक’ को दिए विशेष साक्षात्कार में इस विषय के महत्वपूर्ण मुद्दों को रेखांकित किया है। पेश…

वन्य जीवों के नष्ट होते पर्यावास

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वन्य जीवों का विलोपन पृथ्वी पर जीवन के लिए एक आपातकाल जैसी स्थिति के समान है और इस प्रक्रिया पर लगाम नहीं लगने से मानव सभ्यता और अस्तित्व को खतरा है, क्योंकि मनुष्य सहित सभी जीवों से बना पारितंत्र पृथ्वी पर जीवन को संचालित करता है। मानव सभ्यता के विस्तार…

वन और जैवविविधता

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जैवविविधता के आसन्न खतरों के समाधान का सीधा सम्बंध वनों की सेहत से है। यदि वन स्वस्थ होंगे तो जैवविविधता भी संकट मुक्त रहेगी। जैवविविधता के आसन्न खतरों के समाधान के लिए और अधिक सकारात्मक कदम उठाने की जरूरत है। वनों की सेहत हकीकत में इस धरती पर जीवन के…

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