आईना झूठ न बोले

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मैं आईना...वैसे मेरा और आपका रिश्ता तो सदियों पुराना है। मुझे देखे बिना आपका एक दिन भी गुजरता नहीं, और मुझ से बातें किए बिना आपको चैन भी नहीं पड़ता। तो अगर कभी श्रृंगार में कोई कमीं रह जाए तो खरी-खोटी मुझे ही सुननी पड़ती है, और कभी आप अति सुंदर लगें तो डिठूला कभी-कभी आपके साथ मुझे भी लग जाता है। तो ऐसा है हमारा रिश्ता सदियों पुराना। आज इसी रिश्ते की एक कहानी सुनाने जा रहा हूं... मेरी और उसकी कहानी...

भारतीय सौंदर्य का दर्शन कराने वाली फैशन

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भारतीय सौंदर्य किसी प्रदर्शन का मोहताज नहीं है यह हमारे भीतर से ही उत्पन्न होता है, हमारी संस्कृति योग, ध्यान और अध्यात्म की है जिसका प्रभाव एक सच्चे भारतीय के चेहरे पर स्पष्ट झलकता है।

अंधेरे पर उजाले की जीत

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देश भर मे केरल ही ऐसा प्रदेश था, जहां पहले दिवाली नहीं मनाई जाती थी, क्योंकि मान्यता है कि बलि राजा केरल का था और विष्णु ने वामन अवतार लेकर उसका नाश किया था। लेकिन अब सबकुछ बदल चुका है। वहां भी घर-आंगन दीयों से सजे दिखाई देते हैं।

पैठणी के नए अवतार

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महाराष्ट्र की पैठणी साड़ी रंग, बेलबूटे और कारीगरी के लिए प्रसिद्ध है। पैठण के अलावा येवला भी इसका मुख्य केंद्र है। यह साड़ी महिलाओं को मोहक तो बना ही देती है, पुरानी होने पर बच्चियों के ड्रेस सिलवाने के काम भी आती है। फैशन और उपयोग दोनों साथ-साथ...

फैशन और सौंदर्य

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फैशन और सौंदर्य को जुदा नहीं किया जा सकता। जब दुनिया बर्बर अवस्था में थी तब प्राचीन भारत में एक समृद्ध संस्कृति थी। परिधानों, अलंकारों, सौंदर्य प्रसाधनों में हमारा कोई मुकाबला नहीं था। प्रस्तुत है फैशन शो के वैश्विक संदर्भ के साथ भारत में वस्त्रालंकारों, सौंदर्य के पैमाने एवं सौंदर्य-प्रसाधनों की एक झलक।

कुछेक गज की साड़ी

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“कुछेक गज की साड़ी में कितना कुछ समाया  होता है! बचपन में मां का आंचल, बड़े होने पर मां की साड़ियां पहनकर एक सौंदर्य रमणा स्त्री दिखने की इच्छा, और वक्त के बीतते, किसी के नाम की साड़ी पहनना, सजना- संवरना, और फिर जीवन का सबसे खूबसूरत पल- किसी नन्हीं सी जान को अपनी इसी साड़ी के आंचल से सुरक्षित रखना, बिल्कुल जैसे मां किया करती थीं...”

भारतीय महिलाओं के सोलह श्रृंगार का महत्व

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समय बदलने के साथ कुछ श्रृंगार प्रसाधन प्रचलन से बाहर हो गए और कुछ की जगह आधुनिक श्रृंगार प्रसाधनों ने ली। इसके बावजूद सोलह श्रृंगार का महत्व आज भी बरकरार है। श्रृंगार के इन सभी प्रसाधनों का अपना एक विशेष महत्व है। केवल खूबसूरती में चार चांद लगाने के लिहाज से ही नहीं, बल्कि स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से भी ये बेहद महत्वपूर्ण हैं। जानिए क्या है आधुनिक युग के प्रचलित 16 श्रृंगार और उनके फायदे-

सौंदर्य और फैशन प्राकृतिक उमंग है

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प्रकृति ने हमें जो सौंदर्य दिया है उसकी अभिवृद्धि करना ही फैशन है। वह समाज के हर स्तर से गुजरती है। व्यक्ति की संस्कृति, उसकी परंपरा और उसके विचारों का प्रतिबिंब उसमें होता है। अकेले फैशन शब्द में ही सारी दुनिया का कला-कौशल समाया है।

बंगलों से झोपड़ी तक

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फैशन अपने भीतर की वह अनुभूति है जो मनुष्य को जीवन की शक्ति देती है, आत्मविश्वास देती है- फिर चाहे वह छोटा हो या बड़ा, युवा हो या बुजुर्ग, राजा हो या रंक। फैशन एक परिवर्तन है, जो किसी चीज का मोहताज नहीं है। जो भी अपने पास है उसके जरिए स्वयं को अभिव्यक्त करने का माध्यम है वह!

बदलता हुआ शॉपिंग ट्रेंड

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ऑनलाइन शॉपिंग आज की दौड़ती जिंदगी की एक जरूरत बन गई है। इसके कई फायदे और कुछ नुकसान भी हैं, लेकिन यदि सावधानी बरती जाए, तो यह एक सुखद अनुभव भी हो सकता है। अत: सावधान रहें और खरीदारी का खूब आनंद लें। कल ही मेरी एक सहेली का फोन आया। कह रही थी, ‘क्या बात है बड़े दिन हुए हम गंजीपुरा नहीं गए खरीददारी करने, कब चलोगी?’ मैंने कहा, ‘हां भई दिवाली है अब तो जाना बनता ही है, चलो दो तीन दिन में हो आते हैं’ और हमने फोन रख दिया। लेकिन फोन रखने के बाद मैं सोच में पड़ गई। कुछ साल पूर्व हर त्यौहार क

लो आ गई स्टाइलिश ठंड

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      ठंड आते ही धूप सुनहरी लगने लगती है। कुनकुना पानी नहाते समय आरामदायक लगता है, और रात को सोते वक्त रजाई हमारी सबसे अच्छी सहेली बन जाती है। लेकिन इन सब के अलावा ठंड में सुंदर दिखने के लिए हमारे पास ढेरों तरीके भी उपलब्ध हो जा

फैशन की शुरुआत गांवों से…

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गांव की मिट्टी की खुशबू कौन भूल सकता है भला? गांवों की बात ही निराली होती है। चाहे वह मिट्टी की सौंधी खुशबू हो, या फिर गांव की बोली, या वहां का पहनावा। वैसे भारत जैसे कृषि प्रधान देश में गांवों की संख्या भी अधिक है। हर गांव का रंग एक दूसरे से अलग और निर

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