नोटबंदी का एक्स-रे

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ओशो और नोटबंदी की बात करना बड़ा अटपटा लगेगा। लेकिन ओशो के चिंतन की गहराई में उतरे तो इसमें सिद्धांत पकड़ में आ जाएगा। ओशो ने कहा है, जब बदलाव या नवनिर्माण होता है तब सब कुछ उल्टा-पुल्टा हुआ लगता है। अराजकता का माहौल बन जाता है। पुरानी इमारत ध्वस्त हो जाती

काले धन का कुचला फन

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प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने ८ नवम्बर की रात को ५०० और १,००० रुपये के नोट बंद करने का जो ऐलान किया, वह पी. वी. नरसिंह राव के समय भारत की अर्थव्यवस्था को खोलने के निर्णय के बाद का सबसे बड़ा आर्थिक निर्णय था। जिस देश में आधी से अधिक अर्थव्यवस्था अब भी नकदी

आर्थिक सुनामी, जनता, और मीडिया

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पिछले माह देश ने एक भयंकर सुनामी का सामना किया। यह सुनामी प्राकृतिक नहीं वरन् मानव निर्मित थी। काला धन रखने वालों के होश उड़ाने वाली थी। जी हां! यह सुनामी आर्थिक सुनामी थी। ८ नवम्बर की रात प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने एक पत्रकार परिषद में कड़े शब्दों में

आर्थिक क्रांति का प्रारंभ

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ऐसा लग रहा है कि स्वाधीनता के ६९ वर्ष बाद भारत के इतिहास में वास्तविक अर्थ में आर्थिक सुधारों और क्रांति का पर्व आरंभ हो चुका है। इसकी साक्ष्य है मोदी सरकार का एक अत्यंत महत्वपूर्ण कदम। ५०० और १००० रु. के नोटों का निर्मौद्रिकरण कर के उन्हें रद्द कर देना।

क्या यह सिर्फ सहकारी बैंकों की ही जरुरत है ?

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 पलाई सेन्ट्रल बैंक लि. तथा लक्ष्मी बैंक लि. के विफल होने से जमाराशियों के लिए बीमा कराने के सम्बंध में गंभीर विचार हुआ और उसके उपरांत २१ अगस्त को संसद में निक्षेप बीमा निगम (डीआईसी) विधेयक लाया गया। संसद में पारित होने के बाद वह दिसम्बर १९६३ से प्रभावी हुआ।

केंद्रीय बजट एवं राष्ट्रीय सुरक्षा

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सेना में १९८४ के बाद से आज तक एक भी नई तोप शामिल नहीं हुई है, भारतीय वायुसेना पुराने मिग २१ हवाई जहाज पर निर्भर है तथा नौ-सेना में पनडुब्बियों की संख्या निरंतर घटती जा रही है। इसका अर्थ है कि हमें सेनाओं के आधुनिकीकरण पर अधिक खर्च करना होगा। बढ़ती कीमतों एवं मुद्रा स्फीति को ध्यान में लें तो लगेगा बजट में रक्षा पर होने वाला खर्च लगातार घट रहा है।

दस साल की अधोगति

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वर्ष 2013 के विदा लेते समय देश की कुल स्थिति पर गौर करना लाजिमी है, क्योंकि अगले वर्ष 2014 में लोकसभा चुनाव आने वाले हैं और देश को अपनी सरकार चुननी है। पिछले दस वर्षों में कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए ने राजकाज चलाया है। यह मौका है कि मतदाता यूपीए के खाते का अवलोकन करें।

घटती आर्थिक वृद्धि दर

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स्वतंत्रता के बाद के तीन दशकों तक भारत की आर्थिक वृद्धि दर अन्य एशियाई देशों की तुलना में इतनी कम (लगभग 1.5 प्रतिशत) बनी रही कि अर्थशास्त्रियों ने उसे ‘हिंदू रेट ऑफ ग्रेथ’ जैसा नाम देने में भी संकोच नहीं किया।

निक्षेप बीमा क्यों सिर्फ सहकारी बैंकों की आवश्यकता है?

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पलाई सेन्ट्रल बैंक लि. तथा लक्ष्मी बैंक लि. के विफल होने से जमा राशियों पर बीमा देने के सम्बन्ध में गम्भीर विचार हुआ और उसके उपरान्त 21 अगस्त 1961 को संसद में ‘निपेक्ष बीमा निगम’ (डी.आई.सी.) बिल लाया गया। संसद में बिल के मंजूर होने के बाद 7 दिसम्बर 1961…

बजट और आम जनता

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भारत वर्ष में यह कानूनन अनिवार्य है कि हर वर्ष आय और व्यय का एक बजट बनाया जाये और उसके अनुरूप वर्ष भर काम किया जाये। हम सब भी अपने-अपने परिवार में बजट बनाते हैं।

गरीब विरोधी आर्थिक फैसला

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सरकार ने वैश्विक निवेशकों के लिए खुदरा क्षेत्र को खोलने का निर्णय लिया है। इस नीति के तहत विदेश की बड़ी-बड़ी कंपनियां मल्टी ब्रांड खुदरा क्षेत्र में 51 फीसदी और सिंगल ब्रांड खुदरा क्षेत्र में 100 फीसदी निवेश कर सकेंगी। इसका मतलब यह हुआ कि मल्टी ब्रांड में वे किसी भारतीय कंपनी के साथ मिलकर स्टोर चला सकेंगी जिसमें उनकी 51 फीसद हिस्सेदारी होगी। जबकि सिंगल ब्रांड में विदेशी कंपनियां पूर्ण स्वामित्व वाले स्टोर खोलने में सक्षम होंगी।

उपभोक्ता संरक्षण कानून के 25 वर्ष

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24 दिसम्बर 1986 को राष्ट्रपति ने उपभोक्ता संरक्षण कानून को अपनी मंजूरी दी थी। इस तरह इस कानून ने अपने अस्तित्व के 25 साल पूरे कर लिए।

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