संगीत जो समां बांधता चला गया…- पं. आनंद भाटे

Continue Readingसंगीत जो समां बांधता चला गया…- पं. आनंद भाटे

स्वतंत्रता के बाद जीवन के हर क्षेत्र में आए बदलावों की अंधड़ ने संगीत को भी नहीं छोड़ा। शास्त्रीय संगीत तो था ही, पश्चिमी के साथ उसके फ्यूजन भी आए। भारतीय वाद्यों के साथ पश्चिम वाद्य भी घुलमिलकर काम करने लगे, टेक्नालॉजी ने बहुत कुछ आसान कर दिया, नई-नई दिशाएं खुलीं।  संगीत के क्षेत्र में आए परिवर्तनों पर प्रसिद्ध   गायक पं. आनंद भाटे से प्रसिद्ध संगीतकार अविनाश चंद्रचूड़ की हुई बातचीत के महत्वपूर्ण अंश

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस भस्मासुर या कल्पवृक्ष?

Continue Readingआर्टिफिशियल इंटेलिजेंस भस्मासुर या कल्पवृक्ष?

आपके व्यवहार के ‘पैटर्न’ यानि आवृत्ति की कुछ सेकंड में गणना, उसकी समालोचना और फिर उसके आधार पर कुछ निश्चित निष्कर्ष निकालना। सिर्फ निष्कर्ष निकाल कर रह जाना नहीं, बल्कि उस निष्कर्ष के आधार पर कुछ एक्शन लेना। यही तो है आर्टिफिशियल इटेलिजेंस। यह आदमी के लिए कल्पवृक्ष बनेगा अथवा उसकी नींव को ही हिला देगा?

संघ कार्य का क्रमशः विकसित होता आविष्कार

Continue Readingसंघ कार्य का क्रमशः विकसित होता आविष्कार

“संघ कार्य और विचार सर्वव्यापी और सर्वस्पर्शी बन रहा है, बढ़ रहा है। इसके पीछे मूल हिंदू चिंतन से प्रेरित युगानुकूल परिवर्तनशीलता और ‘लचीली कर्मठता’ ही शायद कारण है। हर चुनौती को अवसर समझ कर उसके अनुरूप प्रशिक्षण तथा संगठनात्मक रचना खड़ी करने की संघ की परम्परा भारत की उसी परम्परा का परिचायक है जो अपने मूल शाश्वत तत्व को बिना छोड़े बाह्य रचना एवं ढांचे में युगानुकूल परिवर्तन करता रहा है।

बैंकिंग क्षेत्र की विकास यात्रा-अतीत, वर्तमान एवं भविष्य

Continue Readingबैंकिंग क्षेत्र की विकास यात्रा-अतीत, वर्तमान एवं भविष्य

भारतीय बैंकिंग क्षेत्र की गौरवशाली परम्परा रही है; लेकिन वर्तमान में वह कठिन दौर से गुजर रहा है। सरकारी बैंकों में फंसे हुए कर्ज की समस्या विकराल है। डिजिटलाइजेशन के साथ धोखाधड़ी की घटनाएं भी बढ़ गई हैं। बैंकों के पास पूंजी की उपलब्धता घट गई है, जिसका अर्थव्यवस्था पर असर हो रहा है। सरकार ने बैंकों को उबारने के लिए इंद्रधनुष नाम से योजना बनाई है, लेकिन संकट कई गुना गहरा है।

भ्रष्टाचार के सात दशक… सुशासन है समाधान

Continue Readingभ्रष्टाचार के सात दशक… सुशासन है समाधान

स्वाधीनता के बाद देश के हर क्षेत्र में भ्रष्टाचार बेहद हावी हो गया है। अनगिनत घोटाले हुए हैं। इसके मूल में कहीं हमारे दृष्टिकोण में चूक तो नहीं? भ्रष्टाचार को कैंसर की तरह नहीं देखना चाहिए, जो फिर फिर लौटेगा। इसकी बजाय भ्रष्टाचार को मोटापे की तरह देखा जाना चाहिए। इसके विरुद्ध संघर्ष कठिन और धीमा होगा, किंतु लगातार प्रयास से यह मोटापा घट सकता है। यही भ्रष्टाचार से मुक्ति का मंत्र है।

७० साल में २० गुना वृद्धि

Continue Reading७० साल में २० गुना वृद्धि

1991 के बाद से देश आर्थिक सुधार की जिस राह पर आगे बढ़ा, उस पर संप्रग सरकार के दूसरे कार्यकाल के अलावा उसकी दौड़ तेज ही रही। यही वजह है कि देश की आर्थिक विकास दर 1947 की तुलना में 20 गुना से भी अधिक हो गई है। इससे भारत विश्व की छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है।

अटल जी आंखें बोलती थीं

Continue Readingअटल जी आंखें बोलती थीं

“मैंने बड़े समीप से उन्हें देखा है। कब किस बात पर उनकी त्यौरियां चढ़ती-उतरती और कब उनकी आंखें अलग-अलग विषयों पर अलग अलग प्रकार से फैलतीं, सिकुड़ती व अलग-अलग आकार लेती हैं। उनकी आंखें ही सबकुछ मानो बोल देती थीं।”

पूरी संवेदना के साथ रुग्ण चिकित्सा

Continue Readingपूरी संवेदना के साथ रुग्ण चिकित्सा

अत्याधुनिक साधनों और टेक्नोलॉजी से अस्पतालों मे बहुत परिवर्तन आए हैं। जेनेरिक दवाओं का नया क्षेत्र विकसित हो रहा है, जो लोगों को सस्ती और उतनी ही प्रभावी दवाएं उपलब्ध कराता है। हरिलाल जयचंद दोशी घाटकोपर हिंदू सभा रुग्णालय नामक चैरिटेबल अस्पताल में जेनेरिक मेडिकल स्टोर के उद्घाटन के अवसर पर ट्रस्ट के श्री मगनभाई दोशी जी से हुई बातचीत के महत्वपूर्ण प्रस्तुत हैं-

बहुत हो गया कबूतर उड़ाना… – जी.डी. उपाख्य गगनदीप बक्षी

Continue Readingबहुत हो गया कबूतर उड़ाना… – जी.डी. उपाख्य गगनदीप बक्षी

रक्षा के क्षेत्र में भी स्वाधीनता के बाद भारी बदलाव हुए हैं। थोड़ा-बहुत काम हुआ है, बहुत कुछ करना बाकी है। शांति के कबूतर बहुत उड़ा चुके। अब ठोस कार्रवाई हो। प्रस्तुत है फौज, युद्ध, हथियार आदि मुद्दों परें पर प्रसिद्ध वरिष्ठ फौजी अधिकारी, विचारक, तथा लेखक मेजर जनरल (नि.) जी.डी. उपाख्य गगनदीप बक्षी से हुई विस्तृत बातचीत के महत्वपूर्ण अंश-

विडंबनाओं के देश में चुनौतियां

Continue Readingविडंबनाओं के देश में चुनौतियां

उदारता और सहिष्णुता, विदेशियों को शरण और वचनबद्धता जैसे उदात्त गुणों के अतिरेक के कारण भारत विडंबनाओं और चुनौतियों के देश में बदलता चला गया। नतीजा है, राजनीति का एक पक्ष आज भी समस्याओं को यथास्थिति में रखने की पुरजोर पैरवी करता है। ऐसी स्थितियों का सामना करने का आज समय आ गया है।

क्या हम सामाजिक दृष्टिसे अत्याधुनिक है?

Continue Readingक्या हम सामाजिक दृष्टिसे अत्याधुनिक है?

हम सब एक संक्रमण काल से गुजर रहे हैं। पिछले कुछ वर्षों में बदलावों की गति बहुत तीव्र रही है। इसका हमारे व्यवहारों के स्वरूप और जीवनशैली पर भी प्रभाव पड़ रहा है। तकनीकी क्रांति के कारण पिछले कुछ दशकों में भारतीय के रूप में हम प्रचंड वेगवान परिवर्तन अनुभव कर रहे हैं। इन बदलावों के केंद्र में मानवी जीवन है। इसलिए यह प्रश्न उभरना स्वाभाविक है कि न जाने कल की दुनिया कैसी होगी?

आधुनिकता से उत्पन्न सवालों के जवाब?

Continue Readingआधुनिकता से उत्पन्न सवालों के जवाब?

तकनीकी ज्ञान के उत्सर्जन के साथ हमारे जीवन के अधिकांश क्षेत्रों में बहुत तेजी से विकास हुआ है और हम आधुनिक बनते जा रहे हैं। लेकिन आज भी हम गरीबी, भुखमरी, आतंकवाद, जाति-जातियों  में द्वंद्व, अंधश्रद्धा, विषमता, धार्मिक द्वेष जैसे संकटों से जूझ रहे हैं। भारतीय समाज को लगी इस घुन को जिस दिन हम खत्म कर लेंगे उस दिन हम वाकई अत्याधुनिक हो पाएंगे।

End of content

No more pages to load