इनर लाइन परमिट
स्वतंत्र भारत का हिस्सा है, फिर भी वहां से मिजोराम, नागालैण्ड और अरुणाचल प्रदेश में जाने के लिए इनर लाइन परमिट (आंतरिक यात्रा अनुमति पत्र) लेना पड़ता है। यह सिर्फ सुनने के लिए आसान है, पर यह परमिट प्राप्त कर
स्वतंत्र भारत का हिस्सा है, फिर भी वहां से मिजोराम, नागालैण्ड और अरुणाचल प्रदेश में जाने के लिए इनर लाइन परमिट (आंतरिक यात्रा अनुमति पत्र) लेना पड़ता है। यह सिर्फ सुनने के लिए आसान है, पर यह परमिट प्राप्त कर
वर्तमान दिल्ली शासन द्वारा पूर्वोत्तर के संदर्भ में संवेदनशील तथा समृद्ध प्रयास किए जा रहे हैं। वैदेशिक विषयों की दृष्टि से जो ‘लुक ईस्ट’ को विस्तारित कर ‘एक्ट ईस्ट’ की नीति का रूप दिया गया है उसमें पूर्वोत्तर की इन सात बहन राज्यों की अपनी महती भूमिका होगी।
पूर्वोत्तर में जो पहाडी राज्य है उसमें ईसाइयों की संख्या ज्यादा होने के कारण और असम जैसे समतल भूमिवाले राज्य में मुस्लिमों की संख्या ज्यादा होने के कारण यहां के भूमिपुत्रों के मन में शंका हमेशा रहती है। अपने अस्तित्व का संकट अनवरत
पूर्वोत्तर के राज्य आर्थिक दृष्टि से तो विशेष श्रेणी में आते ही हैं, राजनीतिक दृष्टि से भी संविधान ने उन्हें विशेष हैसियत प्रदान की है। इसकी शुरुआत अनुच्छेद ३७१(क) से की गई है, जिसमें नगालैंड को विशेष स्थिति में चिह्नि
इस समझौते का देश के अन्य अलगाववादी अंदोलनों पर भी प्रभाव पडेगा। वर्तमान में जम्मू-कश्मीर में सत्ता में काबिज सरकार कें बडे दल ‘‘पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी’’ ने इस समझौते को महत्वपूर्ण कहा है। यह समझौता सफल हो गया तो देश के अन्य अलगाववादी गुटों को ऐसा समझौता करने के लिए प्रोत्साहन मिलेगा। इसके लिए यह समझौता एक नमूना हो सकता है।
चूने की डिबिया में ‘हाथी’ भर कर लाना या मगध के मल्ल ‘अजिंक्य’ को ‘परास्त’ कर देना वैष्णव संत शंकर देव के लिए सामान्य सी बात थी। कूचबिहार दरबार की ये दोनों कथाएं रंजक और उपदेशक दोनों हैं।
कैप्टन लिस्टर पहले राजकीय एजेंट बने। उन्होंने उ.तिरतसिंह को बर्मा में ‘‘सरीम तेना’’ जेल में भेजने का आदेश दिया। बाद में कोलकाता की ब्रिटिश कौंसिल ने निर्णय बदलकर उ.तिरतसिंह को ढ़ाका की जेल में भेजा। वहां एक घर में उन्हें नजरबंद रखा गया। सन १८३४ में उनका देहान्त हुआ।
लाचित बरफुकन देशभक्त और वीर अहोम सेनापति था। उसने शराईघाट में विशाल मुगल सेना से अभूतपूर्व लड़ाई कर गुवाहाटी को बचा लिया। इस वीर सेनानायक को सही श्रद्धांजलि तभी होगी जब हम भी उनके जैसे निःस्वार्थ देशप्रेम, कर्तव्यनिष्ठा,
‘अपनी जीर्ण देह को नमस्कार कर रानी मां (गाईदिनल्यू) भगवती के साथ आकाशमार्ग से चली गई। तिनवांग (परमेश्वर) के दरवाजे पर उसका स्वागत करने जादोनांग, रामगुनगांग और अन्य कई लोग एवं महात्मा खड़े थे।’’
स्वेदनशील गीतकार, कर्णप्रिय संगीतकार, दबंग पत्रकार, महान लेखक, अद्भुत राजनीतिक, फिल्मकार भूपेन हाजरिका अपनी हर भूमिका में एकदम फिट बैठते थे। जो भी करते थे दिल से..., अपने लिए..., अपनों के लिए...। और अचानक ५ नवम्बर २०११ को ब्रह्मपुत्र का यह बेटा ब्रह्मपुत्र में समा गया।
६०-६२ साल से असम में प्रचारक के रूप में कार्यरत हैं। जिस समय में पूर्वोत्तर में खुले आम इंडियन डॉग्ज गो बॅक जैसे पोस्टर दीवारों लगाए जाते थे उस समय शेष भारत से वहां जाकर रहना कितना जोखिमभरा रहा होगा। संघ के
विकास की दूरगामी सोच रखकर काम हों यह सोच राजनीतिक नेता, तथा शेष भारतीय समाज में निर्माण होना अंत्यत जरूरी है। पूर्वोत्तर के विशालहृदयी नागरिक इससे मन: पूर्वक प्रतिसाद देंगे। सबकी कोशिश से, स्वर्ग से सुंदर पूर्वोत्तर को शांत