‘माय होम इंडिया’ अपनत्व का एक सेतु
‘माय होम इंडिया’ स्वयंसेवी संस्था है, जिसका संकल्प पूर्वोत्तर भारत और शेष भारत के बीच पारस्परिक भाईचारे और अपनत्व की भावना को और सशक्त बनाना है।
‘माय होम इंडिया’ स्वयंसेवी संस्था है, जिसका संकल्प पूर्वोत्तर भारत और शेष भारत के बीच पारस्परिक भाईचारे और अपनत्व की भावना को और सशक्त बनाना है।
बच्चा... हर मां का प्यार और पापा का गुरुर होता है। बच्चा... जो माता पिता की दुनिया बदल देता है। बच्चा... जिसका जन्म होते ही उसके मांता पिता अपनी खुद की जिंदगी की अपेक्षा सिर्फ उसके लिए जीते हैं। उसे अपनी जान से भी ज्यादा संभालते हैं। उसे पाल पोसकर बड़ा करते हैं।
जन सेवा के विभिन्न कार्यों से जुड़े मनसुखभाई गगलाणी उर्फ बिस्कुट काका वनवासी कन्याओं के सामूहिक विवाह भी करवाते हैं।
चालीस साल पहले जब मैं झाबुआ में कलेक्टर था तो हमने लोगों के लिए रोजगार देने की योजना बनाई। लेकिन उसमें जन सहभागिता नहीं थी। सब कुछ हम ही निर्णय लेते थे।
देह दान के द्वारा महर्षि दधीचि ने समाज कल्याण का अप्रतिम कार्य किया था। उन्हीं के वंशज डॉ. दुर्गा प्रसाद दधीचि ने वर्तमान समय में रोगियों की सेवा हेतु ‘महर्षि दधीचि हास्पिटल’ को ‘संकल्प’ ट्रस्ट को दान करके उसी ऋषि परम्परा को आगे बढ़ाया है। ट्रस्ट द्वारा संचालित ‘श्रीमती पानबाई डायलेसिस सेन्टर’ किडनी के रोगियों का जीवन रक्षक बना हुआ है।
‘नौकरी करने के लिए नहीं, नौकरी देने के लिए हम पैदा हुए हैं। उद्योग में सफलता प्राप्त करें। अपना छोटाबड़ा उद्योग स्थापित करें और सफल बनें। सम्मान से जीयें। नौकरी मांगते रहने की अपेक्षा नौकरी देने वाले बनें।’ यह संदेश है श्री मिलिंद कांबले का।
महाराष्ट्र के तटवर्ती इलाकों में बसा है ठाणे जिला। इस जिले का नाम सामने आते ही ग्रामीण वनवासी इलाका याद आ जाता है। मुंबई जैसा महानगर करीब होते हुए भी जिले के वनवासी, गरीब ग्रामीण कष्टों से भरा जीवन जीने को बाध्य है।
भिवंडी से 3040 किलोमीटर दूर है मोहंडूल नामक गांव। वहां के आदिवासी पाडा (बस्ती) से सन 2000 में मेरा सम्बंध आया। इस सम्बंध का जरिया था मेरा एक अध्यापक मित्र। उसका नाम है शरद ठाणगे। मुंबई के मालाड की एक स्कूल में शरद और मैं साथसाथ काम करते थे।
पुट्पर्ती के श्री सत्य साईबाबा अपनेआप में एक चमत्कार थे। उन्होंने जनसेवा को जो विशाल रूप दिया उसकी कोई मिसाल नहीं है। स्वास्थ्य, शिक्षा, ग्राम विकास, पेयजल आपूर्ति आदि क्षेत्रों में हुआ कार्य चकित करने वाला है। इस सेवा का एकमात्र उद्देश्य केवल जनता कल्याण था।
विनियोग परिवार जीवदया, जीवरक्षा, संस्कृति रक्षा के कार्य में पिछले 19 वर्षों से निरंतर संलग्न है। उनके प्रयत्नों से ही गोरक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय काम हुआ और कई राज्यों में गोरक्षा कानून बने। अन्य जीवों की रक्षा के भी प्रयास सतत चलते रहते हैं। वे संस्कृति की रक्षा के लिए भोगवादी संस्कृति के प्रति समाज जागरण में भी लगे हैं। विनियोग परिवार के अध्यक्ष श्री राजेंद्र जोशी के साथ हुई बातचीत के महत्वपूर्ण अंश:
‘अर्फेाा घर’ फरिवार में सेवा को उफकार नहीं, दायित्व समझा जाता है। यह एक ऐसा यज्ञ है जहां आहुति डालना हर भारतवासी का कर्तव्य है। हम सभी समाज के ऋणी हैं और इस फ्रकार के लोगों और संस्थाओं की सहायता कर हम अर्फेाा ऋण उतार सकते हैं।
स्वामी विवेकानन्द का जीवन कार्य, जिसको पूरा करने के लिए ही वे अमरिका गये थे और जिसे पूरा करने की एक कार्य योजना उनके मन में उभर रही थी।