अयोध्या : पर्यटन का अद्भुत विकास

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अयोध्या के वाह्य स्वरूप में तो बहुत परिवर्तन आये,  जीवन शैली भी बदली किन्तु चिंतन के पिण्ड में अयोध्या सुरक्षित और श्रद्धेय रही । जो रामजन्म भूमि की मुक्ति के सतत संघर्ष और देश वासियों के मन में उठती उन हिलोरों से स्पष्ट है जिसमें कमसेकम जीवन में एक बार अयोध्या यात्रा की इच्छा बसी होती है । इसी आंतरिक चेतना  शक्ति से रामलला बाबरी ढांचे में प्रगट हुये और फिर वहाँ मंदिर का मार्ग प्रशस्त हुआ । भव्य मंदिर का शिलान्यास हुआ और पूरे संसार का ध्यान एक बार पुनः अयोध्या की ओर आकर्षित हुआ । इसके बाद अयोध्या आने वाले श्रृद्धालुओं और जिज्ञासुओं की संख्या में गुणात्मक वृद्धि हुई । यह भी बहुत स्पष्ट है कि जन्मभूमि मंदिर निर्माण पूर्ण हो जाने के बाद अयोध्या आने वालों की संख्या असीम होगी । और इसके लिये अयोध्या तैयारी कर रही है । यह तैयारी दोनों ओर बहुत तीव्र है । मंदिर निर्माण की दिशा में भी और आगन्तुकों के "स्वागत" के लिये भी । 

टाइटैनिक और टाइटन गेट पनडुब्बी की जलसमाधी

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उनके पास चाहे कितना ही पैसा था पर आखिरी समय में केवल "जीवित रहने" और धरती पर वापस आने के लिए प्रार्थना कर रहे होंगे। जीवन अपने आप में कितना अनमोल है, इसे महत्व दें, इसके लिए आभारी रहें, अपनी ऊर्जा एवं धन को सकारात्मक कार्यों में खर्च करें। जब आपके पास बहुत ज्यादा पैसा हो तो उलटी सीधी हरकतों के बजाय अपने जीवन का अधिकतम लाभ उठायें गरीबों एवं जरूरतमन्दों की मदद करें..

उदयपुर में जनजाति समाज की हुंकार डीलिस्टिंग महारैली

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जो व्यक्ति अपने पूर्वजों की आस्था, संस्कृति, परम्परा, भाषा, व्यवहार छोड़कर अन्य धर्म में जा रहा है, तब उसे जनजाति के रूप में प्रदत्त अधिकार भी छोड़ना ही चाहिए क्योंकि उसे जनजाति होने का अधिकार उसके पूर्वजों और उसकी संस्कृति के आधार पर ही मिला है। इसी आधार पर संविधान में एससी के लिए आर्टिकल 341 में प्रावधान है, लेकिन यह बात एसटी के लिए आर्टिकल 342 में नहीं लिखी गई। इसका फायदा धर्मान्तरण कराने वाली ताकतें उठा रही हैं। धर्मान्तरण जनजाति समाज की संस्कृति को खत्म करने का षड़यंत्र है। धर्मान्तरण राष्ट्र के लिए भी खतरा है। धर्म बदलने वाले अपनी चतुराई से दोहरा लाभ उठा रहे हैं, जबकि मूल आदिवासी अपनी ही मूलभूत सुविधाओं के लिए जूझ रहा है।

आपातकाल और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ

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आपातकाल स्वतंत्र भारत के इतिहास में सबसे विवादास्पद एवं अलोकतांत्रिक काल कहा जाता है। आपातकाल को 48 वर्ष बीत चुके हैं, परन्तु हर वर्ष जून मास आते ही इसका स्मरण ताजा हो जाता है। इसके साथ ही आपातकाल में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की भूमिका भी स्मरण हो जाती है। संघ ने आपातकाल का…

भारत में किसानों की आय हो रही है दोगुनी

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केंद्र सरकार द्वारा किए गए उक्त वर्णित कई उपायों के चलते फसलों और पशुधन की उत्पादकता में वृद्धि हुई है, संसाधनों के उपयोग में दक्षता आने से उत्पादन लागत में कमी आई है, फसल की सघनता में वृद्धि दर्ज हुई है, उच्च मूल्य वाली खेती की ओर विविधिकरण हुआ है, किसानों को उनकी उपज का लाभकारी मूल्य मिल रहा है एवं अतिरिक्त श्रमबल को कृषि क्षेत्र से हटाकर गैर कृषि क्षेत्र के पेशों में लगाया गया है। इस सबका मिलाजुला परिणाम यह हुआ है कि किसानों की शुद्ध आय में वृद्धि दृष्टिगोचर हो रही है। प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों रूप से किसानों की आय बढ़ती हुई दिखाई दे रही है।

कांग्रेस की हिंदू धर्म विरोधी मानसिकता उजागर

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गीता प्रेस के इस अत्यंत उदार व्यवहार के बाद भी कांग्रेस गीताप्रेस को सम्मान मिलने की तुलना गोडसे को सम्मान मिलने से करके अपनी ओछी और विकृत मानसिकता का परिचय दे रही है। इस सन्दर्भ में कांग्रेस नेता जयराम रमेश का ट्वीट आने के बाद सोशल मीडिया पर कांग्रेस की खूब आलोचना हो रही है। जनमत कह रहा है कि कांग्रेस तुष्टिकरण की राजनीति कर रही है। एक यूजर ने लिखा कि, ”जब कभी भविष्य में भारत में कांग्रेस की वर्तमान राजनैतिक दुर्गति पर शोध ग्रंथ लिखे जायेंगे तब उसमें जयराम रमेश जैसे स्वनामधन्य नेताओं के योगदान पर पूरा चैप्टर होगा।“मोर कैथोलिक देन द पोप” शिरोमणि जो वैयक्तिक रूप से एक म्युनिसीपैलिटी का चुनाव जीतने की भी हैसियत नहीं रखते।”

भारत के समृद्धशालियों एवं प्रतिभाओं का पलायन क्यों?

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धनाढ्य परिवारों का भारत से पलायन कर विदेशों में बसने का सिलसिला चिन्ताजनक है। ऐसे क्या कारण है कि लोगों को देश की बजाय विदेश की धरती रहने, जीने, व्यापार करने, शिक्षा एवं रोजगार के लिये अधिक सुविधाजनक लगती है, नये बनते भारत के लिये यह चिन्तन-मंथन का कारण बनना चाहिए। हेनले प्राइवेट वेल्थ माइग्रेशन रिपोर्ट 2023 की एक रिपोर्ट के अनुसार, अनुमानित 6,500 हाई- नेट-वर्थ इंडिविजुअल्स (एचएनआई) के 2023 में भारत से बाहर जाने की संभावना है, पिछले वर्ष की तुलना में यह करोड़पतियों के देश छोड़कर जाने की 7500 की संख्या भले ही कुछ सुधरी है, लेकिन नये बनते, सशक्त होते एवं आर्थिक महाशक्ति बनने की ओर भारत के लिये यह चिन्तन का विषय होना ही चाहिए कि किस तरह भारत की समृद्धि एवं भारत की प्रतिभाएं भारत में ही रहे।

भारतीय मूल्यों की संवाहक बन रही हैं जी-20 की बैठकें

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दुनियाभर से आए अतिथियों ने यहाँ भारत के आतिथ्य का अनुभव तो किया ही, उन्हें शांति एवं सह-अस्तित्व का संदेश देनेवाली भारतीय संस्कृति का दर्शन भी कराया गया। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस बात का विशेष ध्यान रखा कि विचार-विमर्श से निकले वैचारिक मंथन के साथ ही भारतीय विरासत के दर्शन कर भारतीय संस्कृति एवं उसके मूल्यों की प्रत्यक्ष अनुभूति भी जी-20 के विद्वान प्रतिनिधि अपने साथ लेकर जाएं। मुख्यमंत्री के आग्रह पर जी-20 के प्रतिनिधियों ने सांची और भीमबेटका जैसे विश्व विरासत के स्थल देखे। भारतीय ज्ञान-परंपरा के केंद्र के रूप में सुप्रसिद्ध उज्जैन में महाकाल के दर्शन भी किए। बाघ अभ्यारण्य में जैव विविधता के प्रति भारतीय दृष्टिकोण की अनुभूति भी दुनियाभर से आए लोगों ने की।

गीता प्रेस’ के सम्मान का विरोध करके क्या प्राप्त होगा?

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विरोधियों की मानसिकता देखिए कि वे गीता प्रेस के सम्मान को स्वातंत्र्यवीर सावरकर और नाथूराम गोडसे से जोड़कर एक यशस्वी प्रकाशन के संबंध में भ्रम और विवाद खड़ा करना चाहते हैं। ओछे राजनीतिक स्वार्थ के चलते  स्वातंत्र्यवीर सावरकर के प्रति चिढ़ ने नेताओं को इतना अंधा कर दिया है कि उन्हें इस महान क्रांतिकारी के संबंध में न तो महात्मा गांधी के विचार स्मरण रहते हैं और न ही पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के विचार एवं कार्य। वितंडा खड़ा करने में आनंद लेनेवालों को समझना होगा कि तथ्यों के घालमेल से सच नहीं बदल जाएगा। सच यही है कि गीता प्रेस के प्रति प्रत्येक भारतीय के मन में अगाध श्रद्धा है। गीता प्रेस ने अपनी अब तक की अपनी यात्रा में भारतीय संस्कृति की महान सेवा की है।

क्यों आवश्यक है समान नागरिक संहिता?

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राष्ट्र का कोई भी व्यक्ति, वर्ग, सम्प्रदाय, जाति जब-तक कानूनी प्रावधानों के भेदभाव को झेलेगा, तब तक राष्ट्रीय एकता, एक राष्ट्र की चेतना जागरण का स्वप्न पूरा नहीं हो सकता। समान नागरिक संहिता दरअसल एक देश एक कानून की अवधारणा पर आधारित है। यूनिफॉर्म सिविल कोड के अंतर्गत देश के सभी धर्मों, पंथों और समुदायों के लोगों के लिए एक ही कानून की व्यवस्था का प्रस्ताव है। भारत के विधि आयोग ने 14 जून 2023 को  राजनीतिक रूप से अतिसंवेदनशील इस मुद्दे पर देश के तमाम धार्मिक संगठनों से सुझाव 30 दिनों के अंदर आमंत्रित किए हैं।

कांग्रेस क्यों कर रही है हिन्दू संस्कृति का अपमान

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महात्मा गांधी श्रीमद् भगवतगीता को अपनी मां मानते थे, ऐसे में उस श्रीमद् भगवतगीता के नाम पर स्थापित प्रेस को गांधी शांति पुरस्कार देना बहुत ही सटीक निर्णय है। सोचिए जिस संस्थान का उद्देश्य यह हो कि भगवान की सेवा में कभी भी किसी तरह का विघ्न न आए और समाज के अंतिम व्यक्ति तक धर्म की पुस्तकें पहुँचें। उसका बेजा विरोध करना संकीर्ण मानसिकता की देन है। राजनीति करने के कई दूसरे मुद्दे हो सकते है, लेकिन गीता प्रेस पर उंगली उठाकर एक बार फिर कांग्रेसियों ने भारत, भारतीयता और भारतीय संस्कृति का अपमान किया है। 

औरंगजेब-टीपू सुल्तान से मुसलमानों को हमदर्दी क्यों?

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क्या यह अच्छा नहीं होता कि औरंगज़ेब और टीपू सुल्तान जैसे कट्टर एवं मतांध शासकों को नायक के रूप में स्थापित करने या ज़ोर-जबरदस्ती से बहुसंख्यकों के गले उतारने की कोशिशों की बजाय मुस्लिम समाज द्वारा रहीम, रसखान, दारा शिकोह, बहादुर शाह ज़फ़र, अशफ़ाक उल्ला खां, खान अब्दुल गफ़्फ़ार खान, वीर अब्दुल हमीद एवं ए.पी.जे अब्दुल कलाम जैसे साझे नायकों व चेहरों को सामने रखा जाता? इससे समन्वय, सहिष्णुता एवं सौहार्द्रता की साझी संस्कृति विकसित होगी। कट्टर एवं मतांध शासकों या आक्रांताओं में नायकत्व देखने व ढूँढ़ने की प्रवृत्ति अंततः समाज को बाँटती है। यह जहाँ विभाजनकारी विषबेल को सींचती है, वहीं अतीत के घावों को कुरेदकर उन्हें गहरा एवं स्थाई भी बनाती है।

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