श्रद्धा, भक्ति, विश्वास और संकल्प

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अंत:करण की उत्कृष्टता को "श्रद्धा" के नाम से जाना जाता है । उसका व्यावहारिक स्वरुप है -"भक्ति" । यों साधारण बोलचाल में दोनों का उपयोग पर्यायवाची शब्दों के रूप में होता है । फिर भी कुछ अंतर तो है ही । "श्रद्धा" अंतरात्मा की आस्था है । श्रेष्ठता के प्रति…

भक्ति आंदोलन के उन्नायक सन्त दादू

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भारत सदा से सन्तों की भूमि रही है। जब-जब धर्म पर संकट आया, तब-तब सन्तों ने अवतार लेकर भक्ति के माध्यम से समाज को सही दिशा दी। ऐसे ही एक महान् सन्त थे दादू दयाल। दादू का जन्म गुजरात प्रान्त के कर्णावती (अमदाबाद) नगर में 28 फरवरी, 1601 ई0 (फाल्गुन…

संकीर्तन द्वारा धर्म बचाने वाले चैतन्य महाप्रभु

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अपने संकीर्तन द्वारा पूर्वोत्तर में धर्म बचाने वाले निमाई (चैतन्य महाप्रभु) का जन्म विक्रमी सम्वत् 1542 की फागुन पूर्णिमा (27 फरवरी, 1486) को बंगाल के प्रसिद्ध शिक्षा-केन्द्र नदिया (नवद्वीप) में हुआ था। इनके पिता पण्डित जगन्नाथ मिश्र तथा माता शची देवी थीं। बालपन से ही आँगन में नीम के नीचे…

परमंहस बाबा राममंगलदास

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बाबा राममंगलदास उच्च कोटि के एक सिद्ध महात्मा थे। उनके मन में श्रीराम और श्री अयोध्या जी के प्रति अत्यधिक अनुराग था। उनका जन्म 13 फरवरी, 1893 को ग्राम ईसरबारा, जिला सीतापुर, उत्तर प्रदेश में हुआ था। पुत्र तथा पत्नी के अल्प समय में ही वियोग के कारण इनका मन…

सामाजिक समरसता के प्रेरक संत रविदास

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संत रविदास का जीवन मानव विवेक की पराकाष्ठा का सर्वोत्तम प्रतीक है। उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन सनातन धर्म के उत्थान तथा भारतीय समाज में उस समय फैली हुई कुरीतियों को खत्म करने में लगा दिया था। उनके शिष्यों में राजपरिवार में जन्मी मीराबाई से लेकर सामान्य जन तक शामिल थे।…

भगवान श्रीनाथजी के भक्त कुम्भनदास जी

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एक भक्त थे कुम्भन दास जी, गोवर्धन की तलहटी में रहते थे । एक बार की बात है कि भक्त कुम्भन दास जी भगवान श्रीनाथजी के पास गये जाकर देखा कि श्रीनाथजी अपना मुँह लटकाये बैठे हैं । कुम्भन दास जी बोले - प्रभु क्या हुआ है, मुँह फुलाये क्यों…

मनुष्य जीवन में त्याग का महत्व

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एक समय की बात है। एक नगर में एक  सुरेन्द्र नामक कंजूस व्यक्ति रहता था। उसकी कंजूसी सर्वप्रसिद्ध थी। वह खाने, पहनने तक में भी कंजूस था। एक बात उसके घर से एक कटोरी गुम हो गई। इसी कटोरी के दुःख में कंजूस ने 3 दिन तक कुछ न खाया।…

जल्दबाजी कर पगडंडियों में न भटकें !!

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"जीवन" एक वन है, जिसमें "फूल" भी हैं और "काँटे" भी । जिसमें "हरी-भरी सुरम्य घाटियाँ" भी है और "ऊबड़-खाबड़ जमीन" भी । अधिकतर वनों में वन्य पशुओं और वनवासियों के आने_जाने से छोटी-मोटी "पगडंडियाँ" बन जाती हैं । सुव्यवस्थित दीखते हुए भी ये जंगलों में जाकर लुप्त हो जाती…

चिरस्थायी संपदा – “चरित्र-निष्ठा”‼️

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"चरित्र" ही जीवन की आधारशिला है । "भौतिक" एवं "आध्यात्मिक" सफलताओं का मूल भी यही है । "विश्वास भी लोग उन्हीं का करते हैं, जिनके पास "चरित्र" रूपी सम्पदा है ।" वस्तुतः "चरित्र" मनुष्य की मौलिक विशेषता एवं उसका निजी उत्पादन है । व्यक्ति इसे अपने बलबूते विनिर्मित करता है…

तेरा विश्वास शक्ति बने, याचना नही

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हे प्रभो! मेरी केवल एक ही कामना है कि मैं संकटों से डर कर भागूँ नहीं, उनका सामना करूँ। इसलिए मेरी यह प्रार्थना नहीं है कि संकट के समय तुम मेरी रक्षा करो बल्कि मैं तो इतना ही चाहता हूँ कि तुम उनसे जूझने का बल दो। मैं यह भी…

सदा प्रसन्न रहिए, ईश्वर को याद रखिए‼️

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आप संसार के कर्मनिष्ठ महापुरुषों से शिक्षा ग्रहण कीजिए, अपने को धैर्यवान बनाइए, काम को खेल की तरह करिए, कठिनाइयों को मनोरंजन का एक साधन बना लीजिए । अपने मन के स्वामी आप रहिए, अपने घर पर किसी दूसरे को मालिकी मत गाँठने दीजिए। चिंता, शोक आदि शत्रु आपके घर…

प्रभु बिराजते है भक्ति के भाव में

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एक साधु महाराज श्री रामायण कथा सुना रहे थे। लोग आते और आनंद विभोर होकर जाते। साधु महाराज का नियम था रोज कथा शुरू करने से पहले "आइए हनुमंत जी बिराजिए" कहकर हनुमान जी का आह्वान करते थे, फिर एक घण्टा प्रवचन करते थे। एक वकील साहब हर रोज कथा…

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