सबलता से होगा महिला सशक्तिकरण

Continue Readingसबलता से होगा महिला सशक्तिकरण

महिलाओं को मानसिक रूप से सशक्त और आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होने के साथ ही सकारात्मक, मितभाषी और मित्रवत बने रहना चाहिए, वरना उनमें और पुरुषों में फर्क ही क्या रह जाएगा। महिलाओं के इसी गुण की वजह से ही तो उन्हें ‘देवी’ की संज्ञा दी जाती है।

महिला उद्यमिता का विकास

Continue Readingमहिला उद्यमिता का विकास

नारी की महान शक्ति स्रोत को पहचान कर ही भारत ने उसे सदा नमन किया है। वर्तमान सरकार ने भारतीय स्त्री को आर्थिक, शैक्षिक तथा भावनात्मक रूप से स्थिर और उन्नत बनाने के लिए सदैव ही प्रयास किए हैं और कई सहायता योजनाएं जारी की हैं।

दुबला मन, मोटा तन

Continue Readingदुबला मन, मोटा तन

अकसर लोग किसी की नज़र लग जाने से अपने आपको दुबला हुआ मान लेते हैं, पर इन मोटों को तो किसी की नज़र भी नहीं छूती। क्योंकि, तन तो मोटा हो गया, जिसने मन को दुबला बना दिया।

बलात्कार की मानसिकता और उसका निदान

Continue Readingबलात्कार की मानसिकता और उसका निदान

रेप’ या ’बलात्कार’... एक ऐसा शब्द, जो बोलने या सुनने में तो बहुत छोटा-सा लगता है, लेकिन इसकी पीड़ा कितनी लंबी और दुखदायी हो सकती है, इसका अंदाजा सिर्फ और सिर्फ वही लगा सकती है, जिसके साथ यह बर्बरता होती है। बाकी लोग बस इसके बारे में तरह-तरह की बातें ही कर सकते हैं।

कानून निर्माण में महिलाओं का योगदान

Continue Readingकानून निर्माण में महिलाओं का योगदान

वैदिक काल से लेकर आज तक महिलाओं ने अपने-अपने क्षेत्रों में अभूतपूर्व काम किया है। सामाजिक प्रश्नों पर आंदोलनों के साथ-राजनीति में भी वे अगुवा रहीं। वे महिलाओं व बच्चों की सुरक्षा के उपाय लागू करने और कानून बनाने में सहायक रही हैं। भारतीय संस्कृति की उदारता के कारण यह संभव हो पाया है।

माओवादियों के चंगुल में फंसी महिलाएं

Continue Readingमाओवादियों के चंगुल में फंसी महिलाएं

दंडकारण्य में कई वर्षो से आतंक का पर्याय बनी माओवादी नर्मदाक्का नामक महिला को आख़िरकार पुलिस ने गिरफ्तार करने में सफलता प्राप्त की हैं। उस पर हत्याकांड के इतने गंभीर अपराध दर्ज है कि उसे जमानत मिलना भी मुश्किल है। साथ ही, नर्मदाक्का का स्वास्थ्य ठीक नहीं है। जेल में कब तक वह रह पाएगी, यह कहना मुश्किल है। उनकी गिरफ्तारी से माओवादी गतिविधियों में भारी खलबली मच गई। वह माओवादी महिला मोर्चा की प्रमुख थीं

जैसा मौसम वैसा फैशन

Continue Readingजैसा मौसम वैसा फैशन

हर मौसम का अपना एक मिजाज होता है और हमारी कोशिश यह होनी चाहिए कि हम भी मौसम के हिसाब से अपना लिबास तय करें। अतः गर्मी में आप क्या पहनना पसंद करेंगे?

कभी ‘देवी’ तो कभी ‘दासी’ – अपने अस्तित्व को संघर्षशील है आज भी स्त्री

Continue Readingकभी ‘देवी’ तो कभी ‘दासी’ – अपने अस्तित्व को संघर्षशील है आज भी स्त्री

मुद्दा ये है कि अब स्त्री को सम्मान सहित उसका बराबरी का स्थान देकर क्या- क्या हासिल हो सकता है। और ये मुद्दा किसी एक परिवार या किसी एक देश  का नहीं, वरण पूरे विश्व का है क्योंकि भले ही हमारी भाषा अलग हो , पहनावा अलग हो, जन्मभूमि अलग हो, देश अलग हो, संस्कृति अलग हो लेकिन आख़िरकार हम सभी एक ही अटूट सूत्र में बंधे हुए हैं और वो सूत्र है 'मानवता'।

संघर्ष से सफलता तक महिलाओं का सफर

Continue Readingसंघर्ष से सफलता तक महिलाओं का सफर

हिंदुस्तान मेलों और त्योहारों का देश कहा जाता है। विश्व परिपेक्ष्य में बदलते समय के अनुरूप हिंदुस्तान भी दिवसों का देश बनता जा रहा है। हिंदी दिवस, फादर्स डे, मदर्स डे, वैलेंटाइन डे और महिला दिवस इसी पंकि में आ चुका है। प्रत्येक वर्ष 8 मार्च को महिला दिवस मनाने…

भोग्य नहीं अब योग्य हूं

Continue Readingभोग्य नहीं अब योग्य हूं

आज की नारी समय की मांग के अनुरूप बनाने का प्रयास कर रही है। नगरीय, महानगरीय, भौतिकवादी और भूमंडलीय संस्कृति में महिला सशक्तिकरण का एक प्रभावशाली दौर चल रहा है।

अकेले ही थामी पालने की डोरी

Continue Readingअकेले ही थामी पालने की डोरी

नन्हें शुभम ने रूआंसे होकर पूछा-"मम्मी सबके पापा साथ रहते हैं फिर मेरे क्यों नहीं ?" उसका प्रश्न सुनकर संगीता की आँखें भर आई थी पर आँसू गिराकर वह बच्चे के सामने स्वयं को कमजोर नहीं दिखाना चाहती थी,यदि वही हिम्मत हार गई तो बच्चे की परवरिश किस तरह कर…

अब नहीं चाहिए घूंघट

Continue Readingअब नहीं चाहिए घूंघट

कभी परम्पराओं के नाम पर तो कभी रीति-रिवाज़ और ढकोसलों के चलते महिलाओं को अब तक बहुत छला गया है। परन्तु अब स्त्री जाति को इन वाहियात प्रथाओं से मुक्ति हेतु अपनी लड़ाई खुद लड़नी होगी। उन्हें खुद ही घूंघट से बाहर निकलकर आगे बढ़ना होगा।

End of content

No more pages to load