‘जिये सिंध’ आंदोलन के जनक जी . एम. सईद

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धर्म के आधार पर राष्ट्र का निर्माण करने की संकल्पना ही गलत है। अगर धर्म किसी राष्ट्र की नींव है तो क्या कारण है कि 45 अलग-अलग मुस्लिम राष्ट्र यूनो के सदस्य हैं। पाकिस्तान में मुसलमानों की जितनी संख्या है उससे अधिक भारत में है।

झमटमल वाधवाणी

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महान योगी, हिंदुत्व के निष्ठावान समर्थक, भारत माता के लाल, सिंधीयत के महान सुपुत्र दादा झमटमल वाधवाणी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। एक ही समय में अनेक महान कार्य वह सफलता पूर्वक करते थे। बाल्यकाल से ही साध्य किया हुआ यह कौशल दिन-ब-दिन प्रखर होता गया।

सिंधी समाज के राजनैतिक अधिकार

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विभाजन के बाद सिंधियों ने भारत माता की गोद में शरण ली। यह गोद तो सदा से हमारी थी, मगर अपने वतन सिंध से बिछ़डने का दुख हमें बेघर होने की अनुभूति देता था।

सिंधियों का राजनीति में स्थान

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आजादी! जिसकी हकदार संपूर्ण जनता थी न सिर्फ कांग्रेस। लेकिन कांग्रेस मात्र खुद को ही उसका अधिकारी मान बैठी। वह नई रचना में इतनी व्यस्त हो गई कि निर्वासित सिंधियों की ओर विशेष ध्यान देने का खयाल उसे नहीं आया और न ही कोई सिंधी कांग्रेसी नेता इतना प्रभावी था कि सिंधियों के लिए सरकार पर अपना प्रभाव डाल सके।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और सिंधी समाज

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RSS volunteers. (File Photo: IANS)
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जब भारत पर विभाजन की बिजली गिरी, तब सिंध प्रांत में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्य का आरंभ हुए केवल 9 साल ही बीते थे; लेकिन इतने कम समय में भी संघ ने वहां के सारे हिंदुओं के मन-मस्तिष्क में अपार लोकप्रियता प्राप्त कर ली थी।

सिंध को कौन बचाएगा?

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सिंधी हिंदुओं ने सबसे पहले इस्लाम का आक्रमण झेला। मुस्लमान आक्रमणकारियों को सिंध के हिन्दूे 400 वर्षों तक हराते रहे। कुछ बौद्ध भक्तों ने इस्लामिक आक्रमणकारियों का साथ दिया और उसके फलस्वरूप सिंध के हिन्दुओं की हार हुई।

संघ समर्पित किसनलाल मिगलानी

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किसनलाल मिगलानी उम्दा व्यक्तित्व के धनी हैं। उमर 64 वर्ष की है, पर हौसला युवाओं का है। उनके पूरे व्यक्तित्व में पंजाबी भाव झलकते हैं। बात करते वक्त चेहरे पर मुस्कान लाकर जोरदार आवाज में अपनी बात कहना उनका स्वभाव है। उनके सारे व्यक्तित्व से पंजाबी संस्कृति झलकती है।

बलिदानी शूरवीरों की भूमि सिंध

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भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई में ऐसी अनगिनत घटनाएं घटित हुई जिनमें अनेक सिंधी वीर धर्म की रक्षा करते करते शहीद हुए। स्वतंत्रता के बाद भी सिंधी वीरों ने आक्रमणकारियों का डट कर मुकाबला किया है और कइयों ने वीर गति प्राप्त की है।

बिखर कर फिर खड़ी हुई कौम

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सन 1947 में भारत का विभाजन एक ऐसा भूकम्प था, जिसने समृद्धशाली सिंधी जाति को तहस-नहस कर दिया। इस बंटवारे का सबसे अधिक प्रभाव सिंधी जाति पर प़डा, क्योंकि पंजाबियों को आधा पंजाब और बंगालियों को आधा बंगाल मिला, जबकि पूरे सिंध प्रांत को पाकिस्तान में मिला दिया गया।

सिंध हमारी जननी

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सिंध, हम समस्त सिंधियों (सिंध के सिंधी, हिंद के सिंधी एवं शेष विश्व के प्रवासी सिंधियों) की जननी है, मां है, माता है। क्योंकि, सभी सिंधियों की धमनियों में प्रवाहित रक्त, सिंध भूमि के अन्न एवं जल से निर्मित, माता सिंध के दूध से ही उत्पन्न हुआ है। अत: मां सिंध की सभी औलादों की नस्ल एक ही है- सिंधी प्रजाति।

सिंधु संस्कृति का संवाहक सिंधीयत

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सिंधु जन की अस्मिता सिंधीयत है। हम सिंधियों के रीति-रिवाज, सोच-विचार, व्यवहार, विचारधारा, शारीरिक मुद्रा, उठना-बैठना, रहन-सहन, खान-पान कुछ विशेष हैं, जिन्हें सिंधीयत कहा जाता है और यह अन्य समाजों से अलग है।

बिछोह के दर्द का एहसास

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हमारे राष्ट्रगीत की पंक्तियों को गौर से पढ़ेंगे तो पाएंगे कि हमारे राष्ट्र की संकल्पना का कुछ हिस्सा हमारे देश की भौगोलिक सीमा में अब नहीं है।

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