अद्भुत गोवा

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गोवा के समुद्री किनारे तो अद्भुत हैं। मीरामार समुद्री तट यानी सुनहरी रेत का समुद्री किनारा। यहां के सनबाथ का अनुभव अवर्णनीय है। गोवा की सैर हमेशा सैलानियों की स्मृतियों में छायी रहती है। गोवा का नाम सुनकर ही मन चर्च और समुद्र किनारों की छवि बनाने लगता है परंतु गोवा के मंदिर भी अद्भुत हैं और इन मंदिरों ने ही गोवा की संस्कृति की रक्षा करने का कर्य किया है।  भारत १५ अगस्त १९४७ को स्वतंत्र हुआ फिर भी गोवा में पराधीनता कायम रही। उसके बाद कुछ काल शांति रही परंतु बाद में सन् १९५६ में गोवा लिबरेशन आर्मी की स्थ

प्रकृति के अनुपम सौंदर्य से लदा असम

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पूर्वोत्तर भारत प्रकृति के सौंदर्य से इतना लदाबदा है कि मन के कैनवास से वह चित्र कभी नहीं मिटेगा। पूर्वोत्तर के ये आठ राज्य हैं- असम, मेघालय, अरुणाचल, मणिपुर, नगालैण्ड, मिजोरम, त्रिपुरा और सिक्किम। हर राज्य की अपनी संस्कृति, अपना पेहराव और अपनी बोली-भाषाएं और खानपान है। इतनी विविधता तो अन्य किसी भी देश में नहीं मिलेगी। भीड़-भाड़ से दूर और प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर पूर्वोत्तर पर्यटकों को खूब पसंद आ रहा है तो इसकी ठोस वजह भी है। पूर्वोत्तर राज्यों का परिवेश, मौसम और आत्मीयता पर्यटकों को आकर्षित कर लेती ह

पर्यटन क्षेत्रों से समृद्ध महाराष्ट्र

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महाराष्ट्र इतिहास, अध्यात्म एवं संस्कृति से भरापूरा है और पर्यटन के अनोखे अवसर प्रदान करता है। प्रकृति ने इसे खूब सौगात दी है। यहां के समुद्र तट और अरण्य दोनों समान रूप से आकर्षक है। महाराष्ट्र पर्यटन की दृष्टि से बहुत समृद्ध है। परंतु ऐसा लगता है कि जितना आवश्यक है उतनी शासकीय मदद नहीं मिलती या फिर राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी के कारण प्रदेश पर्यटन के विकास में पिछड़ रहा है। यहां कई ऐतिहासिक किले हैं, पत्थरों में उकेरी हुई उत्कृष्ट चित्रकारी है, कास पठार जैसे अनेक स्थान हैं जो महाराष्ट्र में ‘वैली

ड्रैगन से शांति कब तक?

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चीन पूरे एशिया पर अपनी धाक बनाए रखने के लिए भारत को दूसरा फौजी सबक सिखाना चाहता है। आए दिन चीन की ओर से किसी न किसी सैनिकी कार्रवाई की खबर सुनाई देती रहती है। डोकलाम पर फिलहाल समझौता हो गया है, लेकिन यह शांति कब तक चलेगी?चीन भारत-भूटान-चीन के त्रिकोणीय जंक्शन के पास डोकलाम पर यथास्थिति को खतरनाक तरीके से बदलने पर क्यों आमादा था? सैन्य इतिहासकार इस प्रश्न के परिपे्रक्ष्य में द्वितीय भारत चीन युद्ध की आहट पा रहे हैं। इसके तमाम कारण भी हैं।  * चीनी वेस्टर्न थियेटर कमान (‘थिएटर कमान’ फौजी क्षे

हम चीन और पाक दोनों से एकसाथ लडने में सक्षम

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भारतीय सेना चीन और पाकिस्तान की सेनाओं से एकसाथ लड़ने में सक्षम है। डोकलाम पर चीन भले युद्ध की धमकियां दे रहा हो, लेकिन ऐसा करना उसके लिए कम से कम ८-९ माह संभव नहीं होगा। यही नहीं, अधिकतर चीनी सेना मैदानी प्रदेशों में है जिसे पहाड़ी इलाकों में लड़ने का अनुभव नहीं है। वियतनाम युद्ध में चीन की हार का एक कारण यह भी है। दूसरी ओर नागरिकों को भी चीनी माल का बहिष्कार कर युद्ध में योगदान करना होगा। पिछले कई दिनों से भारतीय और चीनी सेनाओं की एक-एक टुकड़ियां डोकलाम पठार क्षेत्र में एक दूसरे के सामने तैनात हैं। चीनी

वैश्विक आतंकवाद – जड़ें काटी जाएं, पत्ते नहीं

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वाद कोई भी हो, दुनिया को लाल या हरे रंग में रंगने के पीछे के पागलपन और स्वार्थों को निशाने पर लेना होगा। और कोई राह नहीं है। आवश्यकता है कि जड़ें काटी जाएं, सिर्फ पत्ते काटते जाने से कुछ नहीं होगा। ...जो इसे समझ रहे हैं, जो जाग रहे हैं उनकी ज़िम्मेदारी बहुत बड़ी है।  आतंकवाद की शुरुआत कहां से हुई कहना मुश्किल है। क्या इसकी शुरुआत ईसाई और मुस्लिम सत्ताओं के बीच एक हज़ार साल तक लड़े गए क्रूसेडों से मानी जाए, जब एक-दूसरे के शहर के शहर और गांव के गांव आग में भून डाले गए? या इसकी शुरुआत चंगेज़ खान, गोरी और गजनवी

संघ की संकल्पना

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संघ दो स्तंभों पर खड़ा है, सिद्धांत और स्वयंसेवक। इसमें स्वयंसेवक का मह़त्व बहुत अधिक है, इसलिए अधिक है कि वह संघ अपने जीवन में जीता है। संघ जीने वाले ऐसे लाखों स्वयंसेवक सारे देशभर में हैं। उनके संपर्क में आने वाले लोग उनके व्यवहार से संघ को समझते हैं। राष्ट्रिय स्वयंसेवक संघ की कथा एक बीज का वटवृक्ष कैसे बना इसकी कथा है। बीज डॉ. हेडगेवार जी का जीवन है और वृक्ष है पूरे देशभर में और विश्व में फैला संघकार्य। अपने-आप में यह एक अचंभे में डालने वाली घटना है। विश्व का सब से बड़ा एनजीओ है आरएसएस। डॉ. केशव बली

ध्येयनिष्ठ वंदनीय उषाताई

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वं. उषाताई चाटी का चले जाना यूं भी सेविकाओं के लिए किसी आघात से कम नहीं। वह बालिका के रूप में स्व. नानी कोलते जी की अंगुली पकड़ कर समिति की शाखा में आई और अपनी स्वभावगत विशेषताओं और क्षमताओं के कारण ६८ वर्ष पश्चात् संगठन की प्रमुख बन कर १२ वर्ष तक सभी का मार्गदर्शन करती रही। वं. मौसी जी ने सेविकाओं के सम्मुख तीन आदर्श रखे, मातृत्व-कतृत्व-नेतृत्व।वं. उषाताई जी ने ‘स्वधर्मे स्वमार्गे परं श्रद्धया’ पर चलने वाला जीवन जीया। उनका स्मरण अर्थात् ७८ वर्ष के ध्येयनिष्ठ जीवन का स्मरण। आयु के १२हवें वर्ष से

संतोष है! खुद पर विश्वास रखने का – प्रशांत कारुलकर

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प्रशांत कारुलकर कंस्ट्रक्शन उद्योग का वह नाम है जिसने युवावस्था में ही अपनी बुद्धिमत्ता तथा ज्ञान के आधार पर व्यावसायिक बुलंदी को प्राप्त कर लिया है। अपने व्यवसाय का सम्पूर्ण ज्ञान होने के साथ-साथ प्रशांत सामाजिक संज्ञान भी रखते हैं। मृदुभाषी, सफल उद्योगपति तथा सदैव फॅशनेबल वेष परिधान करने वाले प्रशांत कारुलकर ने हिंदी विवेक से अपने व्यवसाय तथा वर्तमान सामाजिक परिस्थिति व युवाओं को मार्गदर्शन करने वाला वार्तालाप किया। प्रस्तुत है, उस वार्तालाप के कुछ अंश- जब आपने व्यवसाय शुरू किया तो आपके मन में कौन स

मुस्लिमों में भी राष्ट्रभक्ति की उफनती लहरें हैं – इन्द्रेश कुमार

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मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के जरिए सुधारवाद का एक बड़ा आंदोलन खड़ा हुआ है। मुल्ला-मौलवियों द्वारा फैलाई गई गलतफहमियों को दूर करने से लेकर तुलसी, गोरक्षा और राम मंदिर पर भी मु. रा. मंच के सलाहकार तथा मार्गदर्शक मा. श्री इन्द्रेश कुमारजी ने बेबाक खुलासा किया। प्रस्तुत है उनके साथ हुई प्रदीर्घ बातचीत के महत्वपूर्ण अंश-  वैश्विक आतंकवाद के कारण लोगों के मन में मुसलमानों के प्रति जो नफरत और भय की भावना है वह देश की एकता व सार्वभौमिकता के लिए कितनी खतरनाक है? पिछले कई वर्षों से विश्व के अनेक क्षेत्रों में हिंसा के

भारतीय दिवालिया और ॠण शोधन अक्षमता बोर्ड

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नामचीन उद्योगपति विजय माल्या के द्वारा बैंकों का कर्ज डुबा देने के समाचार कई दिनों तक सुर्खियों में रहे। जिन बैंकों का पैसा कार्पोरेट्स में डूबा है उनके लिए सरकार ने एक नया कानून बनाया है, इससे बैंकों को एनपीए से राहत मिल सकेगी। एक बात तो सभी मानेंगे कि मा. प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदीजी के नेतृत्व में भारत सरकार एक के बाद एक बड़े फैसले ले रही है। मन्शा साफ हो, इच्छाशक्ति हो और कुछ कर गुजरने का माद्दा हो तभी एक के बाद एक बड़े फैसले लिए जाते हैं। इतने बड़े-बड़े फैसले राजनैतिक नफा-नुकसान देखने वाले नहीं ले सकते।&n

इस्लाम में स्वर्ग और नरक

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मुहम्मद पैगंबर की तरह प्रत्येक धर्म संस्थापकों ने मनुष्य के पारलौकिक जीवन और स्वर्ग-नरक की संकल्पनाओं को रचा है। शायद उसका लक्ष्य केवल इतना ही था कि जनसाधारण सन्मार्ग पर चलें और दुष्कृत्यों से दूर रहें। आज की कसौटी तो यही है कि मानवता, आपस में भाईचारा और सहिष्णुता कायम करने से पृथ्वी पर ही स्वर्ग आ जाएगा। हजारो वर्षों पूर्व से ही प्रत्येक धर्म में मानव के मरणोत्तर अस्तित्व एवं उसके पारलौकिक जीवन के विषय में विविध मत रहे हैं एवं आज भी हैं। इसके अनुसार जीवितावस्था में जिसका जैसा व्यवहार हो उसे उसी के अनु

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