माहेश्‍वरी धर्म

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माहेश्वरी धर्म के अनुयायियों को माहेश्वरी कहते हैं। इसे कभी-कभी मारवाड़ी या राजस्थानी भी लिखा जाता है। मान्यता के अनुसार माहेश्वरियों की उत्पत्ति भगवान महेश के कृपा-आशीर्वाद से ही हुई है इसलिए ‘श्री महेश परिवार’ (भगवान शिव, माता पार्वती एवं ग

शख्सियतशिक्षा – संस्कार सेतु- डॉ. संजय मालपाणी

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बच्चों को चित्रकला तो सिखाई; लेकिन चरित्र-कला सिखाना भूल गए; जीवशास्त्र तो सिखाया; लेकिन जीवनशास्त्र को हमने अनदेखा कर दिया। बच्चे हमारे साथ समय बिताना चाहते हैं लेकिन हम स्वयं समय नहीं दे पाते और फिर समस्याएं खड़ी होने पर जनरेशन गैप का बहाना बनाते हैं।

अखिल भारतीय माहेश्‍वरी महासभाद्वारा निर्धारित आचार संहिता

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एक समय था जब हमारा सामाजिक वायुमंडल, आचार-विचार आदर्श था। उसी परंपरा का दृष्टांत है कि छोटे-बड़े का भेद व्यवहार में प्रत्यक्षतया दृष्टिगोचर न हो इसके लिए, पंचायतों द्वारा रीति-रिवाज बंधे हुऐ थे, यथा पहरावनी में ११ से अधिक वेश न हों। मिलनी, बारातियों की स

इचलकरंजी का माहेश्‍वरी समाज

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5०-6० साल पहले इचलकरंजी एक छोटासा गांव था। ३०- ४० हजार बस्ती का यह गांव साड़ी के लिए मशहूर था। हैन्डलूम तथा पावरलूम का एक मशहूर स्थान था। इचलकरंजी के अधिपति स्व. श्री नारायणरावजी घोरपडे ने इस गांव के विकास का सपना देखा और उद्योग करने वाले अनेक व्यक्तियों को प्रोत्साहित किया।

माहेश्‍वरी महिलाओं का राष्ट्रीय कार्य में योगदान

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मूत ममता प्रचंड क्षमता नारी तुझपर संसार गर्विता नारी विश्व की जननी है। बालकों को जन्म देना, उनका पालन पोषण करना, उन्हें संस्कारक्षम बनाना एवम् शिक्षा देना, परिवार की रक्षा करने का कार्य नारी ही करती है। परिवार की नींव है नारी। किस

भारत को प्रतिष्ठा दिलाने वालासमर्पित समाज

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काहा जाता है कि माहेश्वरी समाज भगवान शिव से उत्पन्न हुआ, यह समाज मूलत: क्षत्रिय है, पर महेश ने उन्हें वैश्य बनाया। राजस्थान का यह समाज केवल भारत में ही नहीं; बल्कि सारी दुनिया में बसा है।

 नेतृत्व करने की मनीषा हो- श्यामसुंदर जाजू

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माहेश्वरी समाज के सफल व्यक्तियों में से एक श्यामसुंदर जाजू से हुई बातचीत के कुछ प्रमुख अंश

‘नेत्रदान’ अभियान को समर्पित समाजसेवी -रमेश लाहोटी

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मेश लाहोटी का जन्म पुणे में ही हुआ है और इसी कारण उनकी जन्मभूमि और कर्मभूमि दोनों पुणे ही है। पुणे के सामाजिक, सांस्कृतिक वातावरण का परिणाम और संस्कार बचपन से ही उन पर हुआ। घर से मिले उत्तम संस्कारों के कारण सामाजिक कार्य की ओर उनका

मानवता की अनुपम पहचान – मधु माहेश्‍वरी

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मेरा जन्म एक सुसंस्कारित परिवार में हुआ। मेरे माता-पिताजी ने मुझे पहला संस्कार यही दिया कि-

सरलता व स्नेहासिक्त मधुरता के प्रतीकः स्व.बल्लुजी

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बल्लुजी आदर्श स्वयंसेवक के गुणों से सम्पन्न थे। जीवन भर एक अविचल, अविरल साधना करने वाला भारत-माता का साधक और महानायक हम सभी के नेत्रों में अश्रुओं का महासागर छोड़ विदा हो गया। उनका वाक्य आज भी कानों में गूंज रहा है- न हारा हूं, और न हारूंगा। और, ऐसे संन्यस्त लोग हारते भी कहां हैं!

समाज के अस्तित्व हेतु समझौता आवश्यक-हीरालाल मालू

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कोल्हापुर जिले का एक गांव जयसिंगपुर। राजर्षि शाहू महाराज ने ब्रिटिशों के नगर का ढांचा बनाने वाले अधिकारियों को बुलाया और इस शहर की योजना बनाई। यह निर्मिति उन्होंने जयसिंग राजे भोसले की स्मृति में की। उस समय राजर्षि शाहू महाराज द्वारा किया गया यह काम ऊंचे दर्जेका और सराहनीय है। जयसिंगपुर के हीरालाल मालू से हुई बातचीत के प्रमुख अंशः

सुख बांटते चलो- विठ्ठल मणियार

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आजतक के अपने जीवन सफर के बारे में आप क्या कहना चाहेंगे? हम मूलत: राजस्थान के हैं। परंतु एक सौ दस साल से पुणे में ही रहते हैं। मेरा जन्म पुणे में ही हुआ। राजस्थान सूखाग्रस्त इलाका है। पेट पालने के लिए मेहनत करनी पड़ती है; इसलिए हमारा समाज यहां-वहां बिखर

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