सावित्रीबाई फुलेः स्त्री शिक्षा की अग्रणी प्रणेता
दुनिया में लगातार विकसित और मुखर हो रही नारीवादी सोच की ऐसी ठोस बुनियाद सावित्री बाई और उनके पति ज्योतिबा ने मिल कर डाली, जिसने भारत में महिला शिक्षा एवं सशक्तिकरण की नींव रखी।
दुनिया में लगातार विकसित और मुखर हो रही नारीवादी सोच की ऐसी ठोस बुनियाद सावित्री बाई और उनके पति ज्योतिबा ने मिल कर डाली, जिसने भारत में महिला शिक्षा एवं सशक्तिकरण की नींव रखी।
नई शिक्षा नीति का उद्देश्य ज्ञान आधारित जीवंत समाज का विकास रखा गया है जिसे प्राप्त करने के लिए विद्यालयों, महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों को पर्याप्त लचीला बनाया जाएगा। यह भारतीय शिक्षा पद्धति को राष्ट्रीय सांस्कृतिक चेतना के अनुरूप संपूर्ण शिक्षा व्यवस्था को लोकतांत्रिक बनाने के प्रयास की अभिव्यक्ति है।
लगभग 35 वर्षों बाद नई जीवनानुकूल शिक्षा प्रणाली आ रही है। नई शिक्षा नीति में ऐसे छात्रों का निर्माण होगा, जो भारत की जड़ों से जुड़े रहें और आधुनिकता के साथ भी कदम मिलाए। इसलिए इस नीति का स्वागत ही किया जाना चाहिए, क्योंकि यह आत्मनिर्भर भारत की दिशा में बढ़ा एक और महत्वपूर्ण कदम है।
शिक्षा के ढांचे से प्रशासनिक उलझाव खत्म कर एकीकृत स्वरूप देने का प्रावधान बहुत लंबे समय से प्रतीक्षित था। वह शिक्षा के जरिए भारत को महाशक्ति बनाने की प्रबल इच्छा को उद्घाटित करती है। इसका देश भर में स्वागत हो रहा है; जबकि कांग्रेस व वामपंथियों का निरर्थक रुदाली रुदन जारी है, जो समय के साथ अपने आप ठंड़ा पड़ने ही वाला है।
प्रस्तावित राष्ट्रीय शिक्षा नीति नए भारत के निर्माण की कार्ययोजना का प्रभावी प्रारूप है ...देश में शिक्षा की व्यवस्था संभालने वाली सभी संस्थाएं अपनी स्वायत्ता को क़ायम रखते हुए नई शिक्षा प्रणाली को लागू कर हम सबके सपनों के भारत को साकार कर सकती हैं।
१૪ से ३० साल की उम्र के अंतिम और खुले ओलंपिक समूह में, १૪ साल की अनन्या राणे ने चैंपियन ऑफ चैंपियंस एबासकिंग का खिताब हासिल किया और अपने देश का नाम ऊंचा किया। इनमें से कई बच्चों ने पिछले साल की जोहानिसबर्ग में पाई सफलता को दोहराया।
आज समाज को यह निर्णय लेना अत्यंत आवश्यक है कि वे बच्चों को अंकों और कृत्रिम सुख सुविधाओं के पीछे भागने वाली मशीन बनाना चाहता है या भावनाओं से ओतप्रोत आत्मशांति से युक्त संवेदनशील और सफल इंसानबनाना चाहता है।
डॉ. अच्युत सामंता उड़ीसा के शिक्षा-पुरुष हैं। उन्होंने अभावग्रस्त वनवासी छात्रों की सामान्य और टेक्नालॉजी दोनों की शिक्षा के लिए विशाल परिसर स्थापित किया, जो देश-विदेश के लिए अनूठा उदाहरण हैं। यह एक ज्ञानतीर्थ ही है, जहां आज हजारों छात्र शिक्षा ग्रहण कर सफलता के नए आयाम रच रहे हैं।
सन 2019 का चुनाव इस अर्थ में महत्वपूर्ण होने जा रहा है कि इसमें 21वीं सदी में पैदा होने वाला मतदाता भी हिस्सा लेगा। जाहिर है कि नया मतदाता पुराने भ्रमजालों से बचते हुए अपनी शर्तों पर मतदान करेगा। चूंकि उसकी प्राथमिकताएं और अपेक्षाएं अलग होंगी अतः उसका मत भी अपेक्षाकृत राष्ट्रविकास पर अधिक केन्द्रित होगा। कुछ ऐसा ही महत्व महाराष्ट्र में हिंदी भाषी मतदाताओं का भी है।
कुकुरमुत्ते की तरह उग रहे सी.बी.एस.ई, आई. सी. एस ई, आई.बी. समेत तमाम माध्यमों के विद्यालयों और गैर सरकारी महाविद्यालयों की खेती के बीच एक यक्ष प्रश्न देश भर के बुद्धिजीवियों के दिल में लगातार बना हुआ है कि वर्तमान शिक्षा पद्धति देश समाज और नौनिहालों के लि
सिद्ध विचारक तथा लेखक मा. रमेश पतंगे जी को उनकी पुस्तक ‘सामाजिक समरसता तथा डॉ. बाबासाहब आंबेडकर’ के लिए महाराष्ट्र राज्य सरकार का पुरस्कार प्रदान किया गया है। इस अवसर पर प्रस्तुत पुस्तक तथा समसामयिक विषयों पर उनसे हुए संवाद के कुछ अंश
जीवन में ज्ञान की आवश्यकता को नकारा नहीं जा सकता। बहुत सारी समस्याएं अज्ञान से ही पैदा होती हैं। इसीलिए कहा गया है- ‘नाणं पयासयरं।’ ज्ञान प्रकाश करता है। सचमुच यह एक बहुत मूल्यवती अनुभव-वाणी है। दुनिया में यदि महान कष्ट है तो वह अज्ञान ही है। ज्ञान के बिना आदमी अंधे के समान है।