स्वतंत्रता के 75 साल बाद भी भारतीयकरण शेष है

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आजादी के 7 दशकों के बाद भी देश के तंत्र का भारतीयकरण करना शेष है। स्वदेशी, स्वभाषा और स्वाभिमान किसी भी राष्ट्र की स्वतंत्रता के मुख्य स्तंभ होते हैं। जब तक इनके आधार पर हम अपना शासन तंत्र नहीं बदलते तब तक तो राज्य को सुराज्य में बदलना संभव नहीं होगा। जब तक भारत स्वदेश, स्वभाषा और स्वाभिमान के साथ उठकर विश्व के सामने खड़ा नहीं हो जाता, तब तक स्वतंत्रता प्राप्ति का अर्थ और लक्ष्य अधूरा ही रहेगा।

हम सब एक ही है ! – डॉ. मोहन जी भागवत

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डॉ. मोहन जी ने कहा, हिंदू- मुस्लिम एक हैं इसका कारण हमारी मातृभूमि एक है। पूजा- पद्धति अलग होने के कारण हमें अलग नहीं किया जा सकता। सभी भारतीयों का डीएनए एक है। भाषा, प्रदेश और अन्य विषमताओं को छोड़कर सभी भारतीयों को एक होकर भारत को विश्व गुरु बनाने का समय आ गया है। भारत विश्व गुरु बनने के बाद विश्व सुरक्षित होगा।

राष्ट्रनिर्माण का उत्तरदायित्व

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स्वतंत्रता का 75 वां वर्ष किसी देश के लिए महोत्सव का अवसर होने के साथ आत्मनिरीक्षण का भी समय होता है। यह इसलिए आवश्यक है, क्योंकि दासता से मुक्ति संघर्ष हमें सही दिशा में काम करने के लिए अभिप्रेरित करेगा। भारत राष्ट्र के संदर्भ में सबसे महत्वपूर्ण बिंदु यह ध्यान…

भारत के राष्ट्रत्व का अनंत प्रवाह

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भारतीय दर्शन, भारत की राष्ट्र की अवधारणा अपने आप में समृद्ध और सम्पूर्ण है। इस प्रकार यह पुस्तक किसी भी राष्ट्र का भारतीय दर्शन समझाने वाले चिन्तक या जिज्ञासु के पुस्तकालय के लिए अत्यावश्यक है। मैं तो यहां तक कहूंगा कि यह पुस्तक सभी विभूषित विद्वानों और तथाकथित विद्वानों को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा भेंट की जानी चाहिए, ताकि उनकी आंखों और मस्तिष्क में जमी धूल कुछ तो साफ़ हो।

समान नागरिक संहिता की अनिवार्यता

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भाजपा ने अपने घोषणापत्र में वादा किया था कि ‘समान नागरिक संहिता’ का मसौदा सर्वोत्तम परंपराओं पर आधारित है और आधुनिक समय के साथ उनका सामंजस्य स्थापित करता है। यहां लैंगिक समानता तब तक नहीं हो सकती, जब तक भारत समान नागरिक संहिता नहीं अपनाता, जो सभी महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करता है। बिल्कुल ऐसी ही बात न्यायमूर्ति प्रतिभा एम. सिंह ने हाल में मीणा याचिका की सुनवाई करते हुए कही है। उन्होंने कहा कि विवाह, तलाक, उत्तराधिकार आदि के कानून सबके लिए समान होने चाहिए।

नए विधेयकों पर पेगासस की छाया

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कांग्रेस सहित विपक्ष निहित राजनीतिक स्वार्थों के कारण जनसंख्या नियंत्रण विधेयक के विरोध में है और संसद के मानसून सत्र में उसका भूत निकलने का डर उसे सता ही रहा था कि दिल्ली उच्च न्यायालय ने देश में समान नागरिक संहिता की वकालत करते हुए केंद्र को इसे लागू करने के लिए समुचित कदम उठाने के लिए कह दिया।

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी

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उत्तराखंड के नवनियुक्त मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी की आयु मात्र 45 वर्ष है। इनकी कैबिनेट में कुल 11 मंत्री हैं। सभी आयु एवं राजनीतिक और प्रशासनिक अनुभव में मुख्यमंत्री जी से काफी वरिष्ठ हैं। विधानसभा चुनाव में मुश्किल से 9 माह का वक्त बचा है। ऐसे में अभी तक का सबसे युवा मुख्यमंत्री का चयन कर भारतीय जनता पार्टी ने उत्तराखण्ड का पूरा राजनीतिक परिदृश्य ही बदल डाला है।

चुनाव परिणाम के स्पष्ट संदेश

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जिला पंचायत चुनाव को भले हम आप विधानसभा चुनाव की पूर्वपीठिका न मानें, लेकिन, आत्मविश्वास का यह माहौल योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में भाजपा को पूरे उत्साह से विधानसभा चुनाव में काम करने को प्रेरित करेगा। किसी भी संघर्ष में, चाहे वह चुनावी हो या फिर युद्ध का मैदान, परिणाम निर्धारित करने में आत्मविश्वास और उत्साह की सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका होती है। यह स्थिति भविष्य की दृष्टि से भाजपा के पक्ष में जाती है और स्वाभाविक ही विपक्ष के विरुद्ध।

विरासत के आधार पर स्वतंत्र भारत का विकास

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स्वतंत्रता के 75वें वर्ष में अगर हर भारतीय यह निश्चय कर ले कि वह अपनी हर कृति के केंद्र में अपने राष्ट्र को रखेगा, उस कृति का परिणाम अगर राष्ट्रहित में नहीं है तो वह कृति नहीं करेगा तो भारत को विकसित और सुखी राष्ट्र बनने से कोई नहीं रोक सकता।

गली गली में : राजधानी दिल्ली

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दिल्ली तप ही रही थी शाहीन बाग से, विधान सभा चुनावों से, जेएनयू से, ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में शामिल होने से, निर्भया के न्याय से और कोरोना से। ...ये तपिश धीरे-धीरे बढ़ती गई और पहुंचती गई दिल्ली से देश की हर गली तक।

स्वतंत्रता के प्रेरणादायी स्वर

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 क्या आपने सृष्टि के गीतों को सुना है ? सृष्टि में होने वाली एक छोटी सी हलचल भी संगीत को जन्म देती है। ये संगीत ही तो है, जो सृष्टि में जड़ और चेतन के भेद का आभास कराती है। इसी भावना को जब हम कैद करते हैं शब्दों में... रूप देते हैं अक्षरों का... तो वो संगीत ही काव्य बन जाता है।

स्वतंत्रता के साढ़े छह दशक कहां से कहां तक पहुँचे हम

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स्वतंत्रता शब्द सुनते ही एक अलग प्रकार का आनंद होता है, इस आनंद को अभिव्यक्त करने का सभी का अलग-अलग अंदाज हो सकता है।

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