पेट्रोल के आंसू

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पेट्रोल की खुदरा कीमतों में पांच रुपये प्रति लीटर की हालिया बढ़ोतरी ने आम आदमी की खाली जेब भी काट ली। सुरसा के मुंह की तरह बढ़ती महंगाई से त्रस्त जनता को मनमोहन सरकार ने ‘कहां जाई का करी’ की स्थिति में खड़ा कर ‘पेट्रोल’ के आँसू रोने पर विवश कर दिया है।

जब मंदिर था तो विवाद किस बात का?

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अयोध्या विवाद फिर चर्चा में है। सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडफीठ के निर्णय को स्थगित कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि जमीन की मालकियत के दावेदार तीन फक्षों में से किसी ने भी बंटवारे की मांग नहीं की है, फिर भी अदालत ने यह बंटवारा कर दिया यह आश्चर्यजनक है। जिन फक्षों में बंटवारा हुआ वे हैं-

व्यक्ति-पूजा की राजनीति

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फांच राज्यों में हुए विधान सभा चुनाव किस बात की ओर संकेत करते हैं? क्या सत्ताधारियों का भ्रष्टाचार, भाईभतीजावाद, जनता फर जबरन निर्णय लादने या जनता की आवाज न सुनने, सत्ता फर काबिज लोगों के खिलाफ रोष अथवा गठबंधन व फार्टी संगठनों के बीच आफसी खींचतान आदि ने फांसा फलट दिया? हर चुनाव में ये कारण होते ही हैं।

पहाड़ी बटेर

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पहाड़ी बटेर याने लम्बी पूंछ वाला तित्तर। वह गौर तित्तर (Grey Partridge)से छोटा दिखता है। उसकी चोंच और पैर लालिमा लिए होते हैं। उसकी लम्बाई 25 सेे मी होती है।

आठवां फेरा बेटी का!

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संतोष नाम सुना होगा आपने। यह नाम लड़के का हो सकता है, तो लड़की का भी। नाम भले ही एक हो, लेकिन लड़के या लड़की को यह नाम देनेे के पीछे की मानसिकता एक नहीं हो सकती।

ओसामा के खात्मे के बाद

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1 मई 2011 यह दिन भी 9/11 या 26/11 जैसा सब के ध्यान में रहने वाला साबित होगा। वैसे वह पहले भी था ही। उस दिन रूस में साम्यवादी क्रांति होकर जारशाही नष्ट हो गई थी और मजदूरों के नेता कहे जाने वाले (जो पहले क्रांतिकारियों के नेता और बाद में क्रूर कर्मा साबित हुए) लेनिन, स्तालिन आदि का राज आया।

ओसामा, ओबामा और मनमोहन सिंह

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ओसामा बिन लादेन और अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा का नाम एक साथ लेना उचित है, क्योंकि वे दोनों एक-दूसरे के कट्टर दुश्मन थे। ओसामा बिन लादेन को जीवित अथवा मृत पकड़ने का आदेश अमेरिका ने दिया था। एक मई को ओसामा मारा गया। इस पर ओबामा की टिप्पणी थी-‘जस्टिस हैज बीन डन’-‘न्याय किया गया।’

राजनीति तो मंच है समाज सेवा का

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भारतीय जनता पार्टी को कई कर्मठ राजनेता दिये हैं। इन्हीं नेताओं में से एक हैं‡ मुंबई के चारकोप विधान सभा क्षेत्र के विधायक योगेश सागर। बचपन से संघ की विचारधारा और कार्यशैली में रचे-बसे योगेश ने एक नगरसेवक से विधायक बनने का लंबा सफर तय किया है। उनसे ‘हिन्दी विवेक’ के प्रतिनिधि विजय वर्मा से हुई बातचीत के अंश -

फैसा बड़ा या खेल?

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भारतीय क्रिकेट फ्रेमियों के सिर से अभी क्रिकेट वर्ल्ड कफ का बुखार उतरा भी नहीं था कि आईफीएल की शुरुआत हो गयी। हालांकि इसका फ्रचार करने की शुरुआत टीवी चैनलों ने वर्ल्ड कफ के दौरान ही कर दी थी।

अभूतपूर्व

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सुना है भारत सरकार फिल्म वालों से नाराज है। नाराजगी का कारण यह बताया जाता है कि गत वर्ष एक फिल्म में भारत की गरीबी को व्यापक रूप से दिखाया गया। सरकार को लगता है कि इससेे विदेशों में भारत की छवि खराब होती है। लेकिन मेरी समझ में यह असली कारण नहीं है-

शर्मनाक! शर्मनाक!!

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क्या केंद्र में सरकार है? इस प्रश्न का उत्तर ‘हां’ या ‘ना’ दोनों में है। ‘हां’ इसलिए कि मौनीबाबा मनमोहन सिंह प्रधान मंत्री हैं और ‘ना’ इसलिए कि सब तरफ गड़बड़झाला है।

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