मां का दूध और दूध का बैंक
मां के दूध को अमृत की संज्ञा दी गई है। अमृत! जिसे पीकर इंसान अजरामर हो जाता है। मां के दूध में वे सभी कारक मौजूद होते हैं, जो बच्चों को सभी पौष्टिक तत्व प्रदान करते हैं जिससे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।
मां के दूध को अमृत की संज्ञा दी गई है। अमृत! जिसे पीकर इंसान अजरामर हो जाता है। मां के दूध में वे सभी कारक मौजूद होते हैं, जो बच्चों को सभी पौष्टिक तत्व प्रदान करते हैं जिससे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।
उनके माथे की बड़ी सी गोल लाल बिंदी, चमचमाती मुस्कराहट, नौ गज की साड़ी और स्नेहभरी आवाज को सुनने के बाद ये विश्वास करना बहुत ही मुश्किल था कि ये वही औरत है, जिसे उसके पति ने उस वक्त घर से धक्के मारकर निकाल दिया था, जब वो गर्भवती थी।
जननी और जन्मभूमि को स्वर्ग से श्रेष्ठता की कड़ी में जिन माताओं ने अपने नौजवान पुत्रों को स्वतंत्रता की बलिवेदी पर “इदं न मम्, इदं राष्ट्राय स्वाहा:” कह कर मातृभूमि को स्वतंत्र करने न्यौछावर कर दिया उन माताओं की अन्तरमन की भावना को समझना, उनकी वेदनाओं को उतनी ही तीव्रता से अनुभव करना शायद वर्तमान में असंभव सा लगता है।
एक बात अक्सर बताई जाती है। ईश्वर ने यह सुंदर विश्व निर्माण किया है। पेड़-पौधें, पशु-पक्षी, पहाड़-खाइयां, नदी-घाटियां, समुंदर आदि आदि सब कुछ।
मेरी मां के बारे में जब मैं सोचती हूं तब एक सत्य घटना याद आती है। कई साल बीत जाने के बाद भी वह घटना ज्यों के त्यों मेरे मानस पटल पर आज भी अंकित है।
इस विश्व में नारी के अनेक रूप हैं। कभी वह पत्नी है, कभी बेटी है। कभी बहन है, कभी भाभी है। इन सभी रूपों में सब से पूजनीय रूप है मां का। मां की महिमा व्यक्त करते समय अपने शास्त्रों, धर्म और नीति के ग्रंथों ने कोई कंजूसी नहीं की है। भारत में जननी को जनक से श्रेष्ठ माना गया है।
मंदिर में भगवान की आराधना करने के पूर्व, उस मूर्ति की पूजा करने के पूर्व हमारे आसपास होने वाली और जिन्हें हम भूल गए हैं उस मां की पूजा करें। उसे आपका धन नहीं चाहिए, आपका प्रेम चाहिए। आपके बचपन से ही उसने आप पर प्रेम की वर्षा की है। घर से बाहर निकलने के पूर्व उसके पास जाकर ‘मां कैसी हो?’ इतना ही पूछें, उसे सब कुछ मिल जाएगा।
दुनिया को मां शब्द गाय (गोवंश) ने दिया है, क्योंकि बछड़ा जन्म लेते ही ‘मां’ पुकारता है और भारत के ॠषियों-मुनियों और देवों ने ‘गावो विश्वस्म मातर:’ की घोषणा की। इसके गूढ़ार्थ समझने की आज विशेष आवश्यकता है।
हमारी भारतीय संस्कृति में ‘स्त्री’ किसी भी रूप में हो सदा पूजनीय मानी गई है। बालिका, कन्या, पत्नी और माता, बहन आदि विविध रूप सदा वंदनीय हैं। स्त्री के विविध रूपों में माता रूप सर्वोच्च माना गया है। श्री महाभारत में मातृशक्ति का दर्शन अनेक बार अनेक रूपों में प्राप्त होता है।
मानवीय जीवन में कृतज्ञता भाव का स्थान असाधारण है। आज मनुष्य प्रगति पथ पर तेजी से मार्गक्रमण की बातें करता है, मगर विद्यमान मनुष्य जीवन जिन समस्याओं ने घिरा दिखाई देता है उससे पता चलता है कि वह कृतज्ञता का भाव भूल कर पशुतुल्य बन गया है।
मिश्रा जी शाम को जब दफ्तर से लौटे तो उन्होंने देखा कि उनका बेटा बड़ा ही परेशान सा होकर घर के बाहर बैठा हुआ है। उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरने के साथ उन्होंने पूछा कि क्या हुआ, बहुत दुखी लग रहे हो? उनके बेटे ने कहा कि अब आपकी बीवी के साथ मेरा गुजारा होना बहुत मुश्किल है।
संत बिनोवा भावे ने अपनी जीवनी में एक स्थान पर लिखा है, “प्रत्येक जीवधारी के लिये उसकी मां ही प्रथम ईश्वर है!” इस सृष्टि में मां पहला व्यक्तित्व है, जो अपने शिशु को जन्म देने के साथ साथ उसे जीवनयापन, आस्था-विश्वास और संस्कारशीलता के गुण प्रदान करती है!