युग प्रवर्तक साहित्यकार नरेंद्र कोहली

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भारतीय ज्ञान, परंपरा, संस्कृति और आध्यात्मिकता से परान्गमुख साहित्यकारों के खेमें भिन्न-भिन्न मंचों से पश्चिम के अनुकरण को आधुनिकता सिद्ध करने की होड़ में ताल ठोंक रहे थे। ऐसे में नरेंद्र कोहली जी ने अपांक्तेय रहकर अपने लेखन में भारतीय पौराणिक एवं ऐतिहासिक चरित्रों के माध्यम से वर्तमान समय की गुत्थियां सुलझाते हुए आधुनिक समाज की नींव रखने में श्रेयष्कर भूमिका निभाई। साहित्य के द्वारा भारतीय जनमानस में भारतीय महापुरुषों को स्थापित करने का श्रेय कोहली जी को जाता है।

वित्तीय बदलावों से होगा सुधार

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नए वित्त वर्ष में सरकार ने आर्थिक क्षेत्र में अनेक बदलाव किये हैं, जिनका सीधा प्रभाव नौकरीपेशा, आमजन और बुजुर्गों पर पड़ा है। हालांकि,ये बदलाव लोगों के वित्तीय जीवन में बेहतरी लाने के लिये किये गए हैं। भविष्य निधि और आयकर के तहत किये जाने वाले बदलावों से सरकार की आय में इजाफा होगा, जिससे सरकार विकास केंद्रित कार्यों को अमलीजामा पहना सकेगी।

पत्रकारिता के शिखर पुरुष आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी

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‘प्रताप’ के संपादक गणेश शंकर विद्यार्थी जी एवं केसरी के संपादक लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक जी, आचार्य द्विवेदी जी को ही सर्वश्रेष्ठ संपादक मानते थे। यही कारण था कि जब कोई व्यक्ति पत्रकारिता सीखने के उद्देश्य से लोकमान्य अथवा विद्यार्थी जी के पास जाता था तो वे उसे आचार्य द्विवेदी जी के पास यह कहकर भेज देते थे कि पत्रकारिता की बारीकियां सीखनी हैं तो केवल आचार्य द्विवेदी जी ही सबसे उपयुक्त गुरु हो सकते हैं।

तुलादान ने बढ़ाया मुख्यमंत्री का मान

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समस्त महाजन संस्था के मैनेजिंग ट्रस्टी एवं भारतीय जीवजंतु कल्याण बोर्ड के सदस्य गिरीश भाई शाह ने बताया कि तुलादान को प्रोत्साहित करने के लिए समस्त महाजन संस्था ऐसे कार्यक्रम नित्य करती रही है। ऐसा देखा गया है कि जिन्होंने भी तुलादान में हिस्सा लिया है ऐसे दानवीरों की कीर्ति चारों दिशाओं में फैली है और उनकी यश पताका सदैव फहराती रही है। उनमें से एक,अपने यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी भी हैं, जब वह गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तब उन्होंने भी तुलादान किया था और उन्ही के पदचिन्हों पर चलते हुए गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रुपाणी ने भी तुलादान कर गोवंश एवं पशुधन संरक्षण के लिए अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

शताब्दी का जश्न मनाएंगे मुठ्ठीभर कम्युनिस्ट?

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छत्तीसगढ़ में केंद्रीय सुरक्षा बल के जवानों की निर्मम हत्या की हालिया घटना भी उन कम्युनिस्ट और वामपंथियों के तबाहकारी कारनामों का एक और उदाहरण है, जो देश की कीमत पर अराजकता को बढ़ावा देने में विश्वास रखते हैं। बहरहाल, घटते समर्थन को देखते हुए वो दिन दूर नहीं, जब कम्युनिस्ट और वामपंथी कुनबे की तरह नक्सलियों को भी उनकी असली जगह दिखा दी जाएगी।

गृहयुद्ध की आग में झुलसता म्यांमार

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इन सारे सवालों से जुड़ा सवाल है कि भारत चुप क्यों है? इस समय भारत उतनी शिद्दत के साथ सैन्य शासन के विरुद्ध क्यों नहीं बोल रहा, जैसा 1988 में बोलता था? सवाल यह भी है कि उससे हमें मिला क्या? हमारे रिश्ते खराब हुए, जिनका लाभ चीन को मिला। म्यांमार में चीन की दिलचस्पी किसी से छिपी नहीं है।

दक्षिणी राज्यों में अपनी-अपनी जीत के दावे

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केरल में इस बार भाजपा के नेतृत्व वाले राजग गठबंधन ने राज्य की कई सीटों पर लड़ाई को त्रिकोणीय बना दिया है और पहली बार राज्य में उसकी सशक्त उपस्थिति को नजरंदाज नहीं किया जा सकता।

असम में भाजपा फिर मारी बाजी

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कुल मिलाकर असम के विधानसभा चुनाव हेतु मतदान के तीनों चरण संपन्न हो जाने के बाद भाजपा नीत गठबंधन आत्मविश्वास से लबरेज़ दिखाई दे रहा है और कांग्रेस नीत महागठबंधन (महाजोत) इस उम्मीद में ख़ुश हो रहा है कि 2 मई को होने वाली मतगणना उसे सत्ता की दहलीज तक पहुंचा सकती है, लेकिन, इसमें दो राय नहीं हो सकती कि मतों का समीकरण भाजपा के पक्ष में है।

बंगाल में भाजपा का उदय

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गृहमंत्री अमित शाह की रैली एवं रोड शो में उमड़ी जबरदस्त भीड़ और मेदिनीपुर व उसके आस-पास के 50 विधानसभा सीटों पर अच्छा-खासा प्रभाव रखने वाले शुवेंदु अधिकारी समेत लगभग 10 विधायकों एवं अनेक सांसदों का बीजेपी में शामिल होना आगामी विधानसभा चुनाव की तस्वीरें साफ़ करता है।

नवोन्मेष की प्रत्यक्ष मिसाल आबा साहब पटवारी

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आबा साहब संघ स्वयंसेवक थे। समाज से हर वर्ग से जुड़े रहना ही उनके जीवन का सार था। ‘संगठन गढ़े चलो, सुपंथ पर बढ़े चलो, भला हो जिसमें देश का वो काम सब किए चलो।’ इस संघगीत को आबा साहब ने अपने जीवन में उतार लिया था। वे सदैव इसी मार्ग पर चले।

इतनी मौतों का दोषी कौन?

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देश में कोरोना पीड़ित लोगों के, संक्रमित लोगों के और मृत्यु के आंकड़े दिन-प्रतिदिन बढ़ते जा रहे हैं। इन आंकड़ों के अलावा और भयावह स्थिति तो तब उत्पन्न होती है जब अपने आस-पास के लोगों की रोज मिलने वाली मृत्यु की खबरें सुनाई देती हैं। समाचारों में यह दिखाया जाता कि किस प्रकार एक ही चिता पर तीन-चार शवों का एक ही साथ अंतिम संस्कार किया जा रहा है। मरने वाले व्यक्ति के अंतिम दर्शन करना भी परिवार के सभी लोगों के लिए मुमकिन नहीं हो रहा है। दिल दहला देने वाली इतनी भयावह परिस्थिति उत्पन्न हुई कैसे? कोरोना पीड़ितों का और मृत्यु का आंकड़ा इतना बढ़ा कैसे? समाज के रूप में हमसे कहां चूक हो गई?

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