आंदोलन के सिपाही

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श्रीराम जन्मभूमि के लिए संघर्षरत कई ऐसे आंदोलनकारी हैं जिनका योगदान महत्वपूर्ण रहा है। जिनमें संत परमहंस रामचन्द्र दास, संघ के वरिष्ठ प्रचारक महेश नारायण सिंह, विश्व हिन्दू परिषद के संपर्क अधिकारी मोरोपंत पिंगले, महंत अवैधनाथ, अशोक सिंहल, विनय कटियार, गिरिराज किशोर, साध्वी ऋतंभरा, उमा भारती आदि शामिल हैं।

कानूनी पेंचों में राममंदिर

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कानून की पुरपेंच गलियों से होते हुए आखिरकार वह समय आ गया जब रामलला की गर्भ गृह में प्राण प्रतिष्ठा की जाएगी। पांच सौ सालों के संघर्षों का यह लम्बा इतिहास है। कितनी कानूनी लड़ाईयां लड़ने के बाद भक्तों को रामलला के दर्शन मिलेंगे, चलिए डालते हैं कानूनी विवादों पर एक नजर-

श्रीराम मंदिर तक का सफर

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अयोध्या के इतिहास के पन्नों को पलट कर देखें तो पता चलता है कि भगवान राम के पूर्वज, वैवस्वत (सूर्य) के पुत्र वैवस्वत मनु ने अयोध्या की स्थापना की। वहीं 100 वर्ष ईसा पूर्व उज्जैन के चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य ने श्रीराम जन्मभूमि पर काले रंग के पत्थर के 84 खंबों पर विशाल मंदिर का निर्माण करवाया था। गुप्त महाकाव्य कवि कालिदास ने रघुवंश में कई बार अयोध्या का उल्लेख किया है।

अयोध्या का कायाकल्प

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अयोध्या अपने साथ कई प्राचीन इतिहासों को समेटे हुए है। तैत्तिरीय आरण्यक, वाल्मीकि रामायण, महाभारत, ब्रह्माण्ड पुराण अग्निपुराण तथा बौद्ध ग्रंथों में भी अयोध्या का उल्लेख है। पुराणों से लेकर अब तक के सफर में अयोध्या ने बहुत उतार-च़ढ़ाव देखे हैं। कई विषम परिस्थितियों को झेलते हुए अयोध्या ने अब तक का सफर पूरा किया।

राष्ट्र का आदर्श स्तम्भ राममंदिर

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जन-जन में राम और घर-घर में श्रीराम व्याप्त करने के लिए विहिप द्वारा जन अभियान चलाया जा रहा है। राम के आदर्श को अपनाकर सुख और शांति के मार्ग पर चल सकते है।  श्रीराम ने अपने चरित्र से सबको शिक्षा दी। सब में राम हो,सब में रामत्व हो।

राष्ट्र सम्मान की पुन:प्रतिष्ठा

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राम मंदिर का निर्माण सिर्फ कानूनी लड़ाई से नहीं हुआ बल्कि जनसहयोग से भी हुआ है। भले ही लोगों के मत अलग-अलग हों पर मंदिर निर्माण को लेकर देशवासियों के मत एक थे। एक लम्बे संघर्ष, कठिन प्रयास के बाद ही आखिरकार राम मंदिर का निर्माण हुआ और बस अब इतंजार है तो कपाट खुलने का।

लोकाभिमुख धर्मज्ञ राजा

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मर्यादा पुरुष श्रीराम की महिमा अपरम्पार है। एक आदर्श और नीतिगत जीवन जीने के लिए श्रीराम के आदर्श को अपने जीवन में उतारना होगा। भगवान राम केवल शस्त्र ही नहीं बल्कि शास्त्र के भी ज्ञाता थे। उनके जीवन के आदर्श हमारे लिए अमृत कलश के समान हैं। 

रामराज्य की संकल्पना

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‘दैहिक दैविक भौतिक तापा, रामराज नहिं काहुहि ब्यापा’ श्रीराम आदर्श पुरुष थे। राम राज्य में न कोई अल्पायु था और न वहां की प्रजा दरिद्र ही थी। सभी प्राणियों में संतोष का भाव था। एक सुंदर और नीतिगत जीवन, आदर्श व्यवहार, धर्म की रक्षा, राजा और प्रजा दोनों करते थे।

वनवासियों के राम

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महल से वन तक के सफर में भगवान राम के साथ कई मुसीबतें आइर्ं लेकिन राम ने लंका पर विजय वनवासियों के सहारे पाई। जब एक स्त्री को रावण द्वारा ले जाते हुए देखा तो जटायु ने पुष्पक विमान पर सवार रावण पर हमला बोल दिया। जटायु के बाद वनवासी महिला शबरी ने राम को सुग्रीव के पास भेजा। राम को इस वन की यात्रा में वनवासियों का साथ किस तरह मिला आपको इस आलेख में विस्तृत जानकारी मिलेगी।

व्यक्ति में रामत्व होना जरूरी

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मनुष्य को अपने जीवन में प्रभु राम के आदर्श पर चलना चाहिए। जब तक व्यक्ति में रामत्व नहीं आता, जीव में जड़ता बनी रहती है। परिस्थितियां कैसी भी हों, हमें अपने विवेक को धारण करना चाहिए। अपनों से छोटों के दुर्गुणों को छिपाना चाहिए और उन्हें उचित सीख देनी चाहिए। धर्म की रक्षा के लिए तत्पर रहना चाहिए। हर किसी को उसके श्रम के अनुरूप उसका उचित पारिश्रमिक देना चाहिए। प्रभु राम के कई ऐसे गुण हैं जिन्हें हम अपने जीवन में उतार कर एक आदर्श जीवन की कल्पना कर सकते है।

आदर्श लोक तंत्र को समर्पित श्रीराम

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श्रीराम आदर्श हैं तो रामायण हमारी संस्कृति है। जीवन के पथ पर इनके आदर्शों का अनुकरण ही हमारा मार्गदर्शन करते हैं जो बताते हैं कि एक पिता, पति, भाई, सखा और राजा के रुप में मानवीय आचरण और व्यवहार कैसा होना चाहिए। रामायण के पन्नों को पलट कर देखें तो राजा होने के पश्चात भी राम मन-वचन-कर्म से लोकतांत्रिक थे।  

दिव्य आदर्श का भव्य मंदिर

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अयोध्या पुन: अपने अलौकिक स्वरूप को प्राप्त करने जा रही है, भगवान श्रीराम पुन: अपने मंदिर में विराजमान होने जा रहे हैं, भारत का आदर्श पुन: प्रस्थापित होने जा रहा है, अब भारतवासियों का यह कर्तव्य है कि इस आदर्श का हमेशा चिंतन करें और उसे अपने जीवन का अंग बनाकर उसके अनुरूप चलने का पूर्ण प्रयत्न करें।

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