साधो ये जग बौराना

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अचानक मां दहाड़ मार कर रो दी, क्योंकि उसके कुछ और बच्चों ने मौत को गले लगा लिया था। हमारी जेब में तीन फोन थे, एक लैफ्ट का, एक राइट का, एक लैफ्टाइट का। तीनों बज रहे थे। उस मां की आंखों के आंसू न जाने कैसे हमारी आंखों तक पहुंच गए। ‘साधो ये जग बौराना” कहकर रोते हुए हम उस मां के चरणों में झुक गए...

बाधा बनते छद्म पर्यावरण आंदोलन

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छद्म पर्यावरण संगठनों की पूरी एक श्रृंखला है, जिन्हें समर्थक संस्थाओं के रूप में देशी-विदेशी औद्योगिक घरानों ने पाला-पोसा है। ऐसे संगठन हमारे आर्थिक विकास की गति को रोक रहे हैं। उन्हें खोजकर उन पर अंकुश लगाया जाना चाहिए।

युद्धपिपासु नेता व मासूमों की बलि

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अमेरिका-ईरान के बीच संघर्ष के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और ईरान के सर्वेसर्वा अयातुल्ला खुमैनी की युद्धोन्मत्त मानसिकता जिम्मेदार है। अमेरिका विश्व का दरोगा बनना चाहता है, जबकि ईरान मध्ययुगीन जिहादी मानसिकता का गुलाम है। यदि युद्ध छिड़ा तो भारत पर इसके दुष्परिणाम अवश्य होंगे।

पर्यावरण चेतना के लोकनायक

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पर्यावरण चेतना की समझ, नागरिकों को उनके कर्तव्यों का बोध कराती है तथा मार्गदर्शन करती है। पर्यावरण चेतना, इतिहास और पर्यावरण के लिए अनेक महानुभावों ने स्वयं को समर्पित कर दिया।

उपभोगशून्य स्वामी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी

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हिंदी विवेक मासिक पत्रिका द्वारा प्रकाशित कर्मयोद्धा ग्रंथ का विमोचन केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह द्वारा किया गया। प्रस्तुत आलेख इस अवसर पर उनके द्वारा दिए गए उद्बोधन का शब्दांकन है।

नागरिकता कानून विरोध की राजनीति?

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नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ देशभर में हुए हिंसक आंदोलन मोदी सरकार के खिलाफ एक सुनियोजित साजिश थी। कुत्सित राजनीति के हथियार के तौर पर विरोध के अधिकार का खतरनाक इस्तेमाल किया गया। इसे समझना जरूरी है।

पर्यावरण की रक्षा और वैश्विक संस्थाएं

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पर्यावरण की रक्षा के लिए पूरे विश्व में विभिन्न सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाएं कार्यरत हैं। यह एक तरह से जनता का संयुक्त अभियान है। इसलिए कि आने वाली भयावह स्थिति से निपटने के लिए अभी से सार्थक कदम उठाना जरूरी है।

जेएनयू पूरा देश नहीं

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सोशल मीडिया और नागरिक पत्रकारिता के कारण यह सच सभी के सामने आ रहा है कि सीएए के समर्थन करने वालों की संख्या अत्यधिक है और जेएनयू में जो हो रहा है वह दिखावा मात्र है। जेएनयू पूरा देश नहीं है।

पर्यावरण या इंसान : किसका कद ऊंचा?

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सृष्टि के हर जीव को जीने का सुंदर वातावरण मिले, यही पर्यावरण की परिभाषा है। किंतु विकास की अति लालसा और औद्योगिकरण की तथाकथित प्रगति के लिए मनुष्य ने प्रकृति को ही गुलाम बनाने का संकल्प किया है। मनुष्य के मन में यह अहंकार पैदा हुआ है कि वह अपनी बुद्धि के बल पर प्रति-सृष्टि पैदा कर सकता है।

जनजाति के लिए प्रकृति ही धर्म है

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पश्चिमी सभ्यता की चकाचौंध में अपने देश की प्राचीन सभ्यता से कहीं भटकने का डर हमें अस्वस्थ कर रहा है। ऐसी स्थिति में केवल जनजाति समाज और उसकी आदर्श पर्यावरण पूरक जीवनशैली ही हमें फिर से अपने मूल मार्ग पर लाने के लिए सक्षम  है।

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