स्वामी स्मरणानन्द जी का जीवन प्रेरणास्त्रोत – नरेंद्र मोदी

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भारत की विकास यात्रा के अनेक बिंदुओं पर, हमारी मातृभूमि को स्वामी आत्मास्थानंद जी, स्वामी स्मरणानंद जी जैसे अनेक संत महात्माओं का आशीर्वाद मिला है जिन्होंने हमें सामाजिक परिवर्तन की नई चेतना दी है। इन संतों ने हमें एक साथ होकर समाज के हित के लिए काम करने की दीक्षा दी है। ये सिद्धांत अब तक शाश्वत हैं और आने वाले कालखंड में यही विचार विकसित भारत और अमृत काल की संकल्प शक्ति बनेंगे।मैं एक बार फिर, पूरे देश की ओर से ऐसी संत आत्माओं को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं। मुझे विश्वास है कि रामकृष्ण मिशन से जुड़े सभी लोग उनके दिखाए मार्ग को और प्रशस्त करेंगे। ओम शांति।

सामाजिक परिवर्तन में संस्थाओं की महत्वपूर्ण भूमिका है – डॉ. मोहन भागवत जी

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सरसंघचालक जी ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि आज हम हर काम आउटसोर्स करते हैं, ठेका निकालते हैं. जो काम हमें स्वयं करना चाहिए उसकी अपेक्षा हम ठेका देकर अन्य लोगों से करते हैं. घर के सामने कूड़ा उठाने के लिए लोगों को रखते हैं, जो अपना काम है उसके लिए व्यवस्था निर्माण करते हैं. उसी प्रकार देश का कार्य करने के लिए भी नेताओं को ठेका देते हैं और अपेक्षा करते हैं कि उन्हें सभी काम करने चाहिए, यह व्यवस्था ठीक नहीं है.

सक्षम होंगी तभी सुरक्षित होंगी बेटियां

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कुछ चुनिंदा विद्यालयों में छात्र-छात्राओं को आत्मरक्षा के गुण भी सिखाए जाते है लेकिन यह सभी विद्यालयों एवं महाविद्यालयों में अनिवार्य किया जाना चाहिए, जिससे वे शारीरिक व मानसिक रुप से अपनी आत्मरक्षा करने में समर्थ हो और उनका मनोबल बढ़े। जागरुकता की दृष्टि से राष्ट्रीय स्तर पर आत्मरक्षा अभियान चलाना आवश्यक है।

राम मंदिर से बढ़ती समृद्धि और समरसता

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500 वर्षों की प्रतीक्षा के बाद हुए राम मंदिर के पुनर्निर्माण ने न केवल भारतीय समाज की सांस्कृतिक और धार्मिक आधारशिला को मजबूत किया है बल्कि उसकी प्राण प्रतिष्ठा ने सम्पूर्ण देश में अभूतपूर्व समृद्धि और समरसता का मार्ग प्रशस्त किया है। आज पुनर्निर्मित भव्य राम मंदिर न केवल धार्मिक या ऐतिहासिक संदर्भ में महत्वपूर्ण बन गया है, बल्कि यह समृद्धि, समरसता और एकता के प्रतीक के रूप में भी स्थापित हो गया है।

अयोध्या और अबुधाबी का शांति संदेश- मधुभाई कुलकर्णी

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भारत के अयोध्या और अरब के अबुधाबी में सर्वधर्म समभाव एवं सहिष्णुता के प्रतीक बने हिंदू मंदिर पूरी दुनिया को ‘एकं सत् विप्रा: बहुधा वदन्ति’ और ‘वसुधैव कुटुंबकम’ का संदेश दे रहे हैं। यदि मजहबी टकराव, कट्टरता, आतंकवाद, हिंसा और युध्द से बचना है तो सनातन संस्कृति में निहित सहअस्तित्व के  विचारों को आत्मसात करना ही होगा।

 वोक कल्चर भारतीय संस्कृति पर आक्रमण

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किसी भी देश की अपनी एक विचारधारा होती है अपनी एक संस्कृति होती है, लेकिन जब इस पर वोक कल्चर हावी होने लगे तो संस्कृति दरकने लगती है। वोकिज्म की अजगरी बांहों में युवा पीढ़ी समाने लगी है और उनकी विचारधारा भी विषाक्त होने लगी है। अब वे ‘हेलोवीन’ पार्टी मना रही है। ‘वोक’ संस्कृति की आड़ में कहीं हमारी संस्कृति पर प्रहार तो नहीं। 

महिला अधिकारों एवं कानूनों का दुरुपयोग

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महिलाओं के उत्पीड़न, उनकी सुरक्षा और अधिकार के लिए कानून तो बनाए गए है लेकिन बड़ी संख्या में महिलाएं इस कानून का दुुरुपयोग करने लगी हैं। झूठे मामले में वो अपने पति या ससुराल वालों को यौन उत्पीड़न, दहेज प्रताड़ना या घरेलू हिंसा में फंसा देती है। इसलिए अब समय की मांग है कि झूठे आरोप लगाने वाली महिलाओं को भी दंडित किया जाए।

महिलाओं के लिए सरकारी योजनाएं

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महिलाओं को सशक्त और आत्मनिर्भर बनाने हेतु वर्तमान नरेंद्र मोदी सरकार ने कई योजनाएं चलाई हैं, जिसमें लखपति दीदी योजना, ड्रोन योजना, सहायता का सीधा हस्तांतरण, मुद्रा लोन योजना, उज्जवला गैस योजना आदि शामिल है। इन योजनाओं के अंतर्गत महिलाओं की दशा और दिशा दोनों में बदलाव आ रहा है।  

पत्रकारिता में महिलाओं की दशा और दिशा

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पत्रकारिता के क्षेत्र में महिलाओं की संख्या तो बढ़ी है लेकिन अभी भी वो हाशिए पर है। लेकिन कई ऐसी जुझारु पत्रकार हैं जो अपनी कार्य-कुशलता के बल पर अपने अधिकारों के लिए आवाज बुलंद करती हैं और उन क्षेत्रों में जाकर साहसिक रिर्पोटिंग करती हैं जहां पुरुषों का क्षेत्र  माना जाता था।  

नशे की अजगरी बांहों में महिलाएं

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फैशन के नाम पर सिगरेट, शराब, ड्रग्स का नशा करना और इसके साथ ही तस्करी एवं अन्य अपराधिक गतिविधियों में महिलाओं की संख्या में लगातार वृद्धि होना चिंता की बात है। संवेदनशील भारतीय महिलाएं संवेदनहीन व दिशाहीन होकर विकृति की ओर बढ़ती जा रही है।

राष्ट्रीय पत्रकारिता का मापदंड प्रस्थापित करती पुस्तक ‘मुद्दा’

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लेखन के विविध प्रकारों में से पत्रकारिता को सर्वथा उपयुक्त माना जाता है. पत्रकारिता से राष्ट्रीय विचारधारा को बल मिलना चाहिए. समाज को जागरूक कर उसे सही दिशा देना ही वैचारिक पत्रकारिता है. यही कार्य विगत एक दशक से अमोल पेडणेकर अपनी लेखनी से सतत करते आ रहे है. दिग्भ्रमित, फेक न्यूज और गुमराह करनेवाली पत्रकारिता के दौर में अमोल पेडणेकर द्वारा लिखित पुस्तक ‘मुद्दा’ सही अर्थों में राष्ट्रीय पत्रकारिता का मापदंड कही जा सकती है.

लव जिहाद: राष्ट्रीय व धार्मिक संकट

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समय-समय पर मैंने हिन्दी विवेक पत्रिका के पाठकों के समक्ष उस समय के सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक क्षेत्र में होने वाली गतिविधियों से मेरे मन में जो कम्पन पैदा हुआ उसे प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। इसके साथ ही मैंने विभिन्न विषयों पर नियमित लिखता रहा। मुझे अपने बारे में या अपने अन्दर के विचारों को लेखों के रुप में पाठकों के सामने प्रस्तुत करने का अवसर मिला। उन लेखों के संकलन का बिन्दु पुस्तक है।

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