प्रधान मंत्री उज्ज्वला योजना की सफलता

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‘‘गांव में रहने वाली तीन करोड़ से ज्यादा महिलाओं की जिंदगी उज्ज्वला योजना ने हमेशा-हमेशा के लिए बदल दी है। उन्हें सिर्फ गैस कनेक्शन नहीं मिला, उन्हें सुरक्षा मिली है, सेहत मिली है, परिवार के लिए समय मिला है।’’ - प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी

कचरे के ढेरों से बढ़ता प्रदूषण

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शहरी कचरे को ठिकाने लगाने के अवैज्ञानिक तरीकों के कारण शहरों के आसपास कूड़े के पहाड़ के पहाड़ खड़े हो गए हैं। इनसे निकलती लैंडफिल गैसों से जनजीवन ही नहीं, अन्य उपकरण भी संकट में पड़ गए हैं। कचरे से बिजली निर्माण के प्रयोग शैशवावस्था में ही हैं, बहरहाल केंचुओं के माध्यम से औद्योगिक कचरे से खाद निर्माण का प्रयोग सफल हुआ है। ऐसे प्राकृतिक उपाय करने के अलावा और कोई विकल्प नहीं है।

नारों से आगे नहीं बढ़ा स्वच्छता अभियान

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हम भारतीय केवल उत्साह, उन्माद और अतिरेक में स्वच्छता के नारे तो लगाते हैं, लेकिन जब व्यावहारिकता की बात आती है तो हमारे सामने दिल्ली के कूड़े के ढेर जैसे हालात होते हैं जहां गंदगी से ज्यादा सियासत प्रबल होती है। तीन साल से जारी स्वच्छ भारत अभियान का यही हाल फिलहाल दिख रहा है।

स्वच्छ भारत: अभियान नहीं, आदत बने

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प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी भारत स्वच्छ चाहते हैं। आप और हमें भी चाहिए। लेकिन घर के सामने आने वाली कचरा गाड़ी में कचरे की थैली डालने के अलावा और कुछ करने की हमारी इच्छा नहीं होती, न हम कुछ करने को तैयार होते हैं। यदि ऐसा ही रहे तो कैसा होगा भारत स्वच्छ? जनता जब तक आंतरिक मन से कार्योन्मुख नहीं होती तब तक यह सपना अधूरा ही रहेगा।

पर्यावरण के लिए संकल्पित ‘सीईटीपी’

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इस सीईटीपी की कुल क्षमता २७ एमएलडी है (१२ एमएलडी क्षमता का प्लांट १९९७ में स्थापित किया गया है और १५ एमएलडी प्लांट की अतिरिक्त क्षमता २००६ में परिचालित की गई।) यह केंद्र लगातार सभी निर्धारित मानदंडों को लगातार पूरा कर रहा है

स्वच्छता का महत्व तब और अब

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बात चाहे नदियों के संरक्षण की हो, पर्यावरण की हो अथवा बरसात के पानी से अशुद्धियां निकाल कर जल आपूर्ति की, इन सब में आधुनिक भारत प्राचीन भारत से बहुत कुछ सीख सकता है।

मोदी युग में पर्यावरण संरक्षण

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मोदी सरकार ग्रीन क्लीयरेंस, वनारोपण, स्वछता अभियान एवं गंगा सफाई पर पिछली सरकारों से काफी बेहतर काम कर रही है। औद्योगिकी प्रदूषण का मानकीकरण व उसकी निगरानी पहले से बेहतर हुई है। वर्ष २०१९ तक हर गांव, शहर, कस्बे को साफ रखना, टॉयलेट बनवाना, पीने के पानी की व्यवस्था तथा कचरा निस्तारण की व्यवस्था करना आदि का लक्ष्य रखा है।

हिंदू संस्कृति और पर्यावरण

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हिंदुत्व में हर व्याधि का समाधान दे सकने वाली शक्ति और क्षमता है परंतु इसके लिए पहले हम हिंदुओं को उस जीवन दर्शन के अनुसार जीना होगा। दुनिया का पथ प्रदर्शन करना अतीत में भी हमारा पावन कर्तव्य रहा है और हर परिस्थिति में हमें वही कार्य करना है ताकि निकट भविष्य में विश्‍व पर्यावरण का संकट टाला जा सके।

प्लास्टिक और ई-कचरे का संकट

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नई-नई खोजों के साथ हमने प्लास्टिक और ई-उपकरणों की शृंखला खड़ी कर दी है; लेकिन इनसे उत्पन्न होने वाले कचरे के संकट का समाधान नहीं खोजा। यदि सृष्टि को बचाना है तो हमें इसका जवाब खोजना ही होगा।

स्वच्छता में निवेश का अर्थशास्त्र

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स्वच्छ भारत मिशन के स्वच्छाग्रह ने राष्ट्र की कल्पना को ठीक उसी तरह आकृष्ट किया है, जिस तरह दशकों पहले महात्मा के सत्याग्रह ने किया होगा। यह तेजी से एक जनांदोलन का रूप ले रहा है। अब हमारी बारी है कि अपना कर्तव्य निभाएं।

शुचिता चिंतन

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अंतरात्मा की प्रेरणा का सबब कही जा सकने वाली स्वच्छ जीवन पद्धतियों का अनुसरण व मार्गदर्शन प्राप्त करने की दिशा में निरंतर प्रयासरत रहना ही सफल मानव जीवन का भाव है। जीवन के हर क्षेत्र में शुचिता के बिना यह संभव नहीं है।

सभी मावल्यांग से सबक लें

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: भारत-बांग्लादेश की सीमा के करीब बसा मेघालय का मावल्यांग गांव भारत ही नहीं, एशिया का सब से स्वच्छ गांव माना जाता है। देश के अन्य गांव भी इससे सबक लें तो गांवों में गंदगी का वर्तमान साम्राज्य ही खत्म होगा और तब भारत स्वच्छ होने में देर नहीं लगेगी।

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