माओवादियों के चंगुल में फंसी महिलाएं

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दंडकारण्य में कई वर्षो से आतंक का पर्याय बनी माओवादी नर्मदाक्का नामक महिला को आख़िरकार पुलिस ने गिरफ्तार करने में सफलता प्राप्त की हैं। उस पर हत्याकांड के इतने गंभीर अपराध दर्ज है कि उसे जमानत मिलना भी मुश्किल है। साथ ही, नर्मदाक्का का स्वास्थ्य ठीक नहीं है। जेल में कब तक वह रह पाएगी, यह कहना मुश्किल है। उनकी गिरफ्तारी से माओवादी गतिविधियों में भारी खलबली मच गई। वह माओवादी महिला मोर्चा की प्रमुख थीं

जैसा मौसम वैसा फैशन

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हर मौसम का अपना एक मिजाज होता है और हमारी कोशिश यह होनी चाहिए कि हम भी मौसम के हिसाब से अपना लिबास तय करें। अतः गर्मी में आप क्या पहनना पसंद करेंगे?

कभी ‘देवी’ तो कभी ‘दासी’ – अपने अस्तित्व को संघर्षशील है आज भी स्त्री

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मुद्दा ये है कि अब स्त्री को सम्मान सहित उसका बराबरी का स्थान देकर क्या- क्या हासिल हो सकता है। और ये मुद्दा किसी एक परिवार या किसी एक देश  का नहीं, वरण पूरे विश्व का है क्योंकि भले ही हमारी भाषा अलग हो , पहनावा अलग हो, जन्मभूमि अलग हो, देश अलग हो, संस्कृति अलग हो लेकिन आख़िरकार हम सभी एक ही अटूट सूत्र में बंधे हुए हैं और वो सूत्र है 'मानवता'।

संघर्ष से सफलता तक महिलाओं का सफर

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हिंदुस्तान मेलों और त्योहारों का देश कहा जाता है। विश्व परिपेक्ष्य में बदलते समय के अनुरूप हिंदुस्तान भी दिवसों का देश बनता जा रहा है। हिंदी दिवस, फादर्स डे, मदर्स डे, वैलेंटाइन डे और महिला दिवस इसी पंकि में आ चुका है। प्रत्येक वर्ष 8 मार्च को महिला दिवस मनाने…

भोग्य नहीं अब योग्य हूं

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आज की नारी समय की मांग के अनुरूप बनाने का प्रयास कर रही है। नगरीय, महानगरीय, भौतिकवादी और भूमंडलीय संस्कृति में महिला सशक्तिकरण का एक प्रभावशाली दौर चल रहा है।

अकेले ही थामी पालने की डोरी

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नन्हें शुभम ने रूआंसे होकर पूछा-"मम्मी सबके पापा साथ रहते हैं फिर मेरे क्यों नहीं ?" उसका प्रश्न सुनकर संगीता की आँखें भर आई थी पर आँसू गिराकर वह बच्चे के सामने स्वयं को कमजोर नहीं दिखाना चाहती थी,यदि वही हिम्मत हार गई तो बच्चे की परवरिश किस तरह कर…

अब नहीं चाहिए घूंघट

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कभी परम्पराओं के नाम पर तो कभी रीति-रिवाज़ और ढकोसलों के चलते महिलाओं को अब तक बहुत छला गया है। परन्तु अब स्त्री जाति को इन वाहियात प्रथाओं से मुक्ति हेतु अपनी लड़ाई खुद लड़नी होगी। उन्हें खुद ही घूंघट से बाहर निकलकर आगे बढ़ना होगा।

ध्येयनिष्ठ वंदनीय उषाताई

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वं. उषाताई चाटी का चले जाना यूं भी सेविकाओं के लिए किसी आघात से कम नहीं। वह बालिका के रूप में स्व. नानी कोलते जी की अंगुली पकड़ कर समिति की शाखा में आई और अपनी स्वभावगत विशेषताओं और क्षमताओं के कारण ६८ वर्ष पश्चात् संगठन की प्रमुख बन कर १२ वर्ष तक सभी का मार्गदर्शन करती रही। वं. मौसी जी ने सेविकाओं के सम्मुख तीन आदर्श रखे, मातृत्व-कतृत्व-नेतृत्व।वं. उषाताई जी ने ‘स्वधर्मे स्वमार्गे परं श्रद्धया’ पर चलने वाला जीवन जीया। उनका स्मरण अर्थात् ७८ वर्ष के ध्येयनिष्ठ जीवन का स्मरण। आयु के १२हवें वर्ष से

उत्तर प्रदेश में महिला सशक्तिकरण

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  उत्तर प्रदेश की योगी सरकार आधी आबादी के विकास के लिए दृढ़ संकल्पित है। राज्य में महिला बाल एवं विकास हेतु अनेक कल्याणकारी योजनाएं चलाई जा रही हैं। महिलाओं के आत्मसम्मान और अधिकारों की रक्षा के लिए भी नई सरकार ने कई कदम उठाए हैं। देश का सबसे

दो नावों पर सवार

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महिलाओं को सुपर वुमन बनने में और खुद को नजरअंदाज करने में महानता का अहसास होता है। यह सोच बदलनी होगी। कामकाजी महिला हो तो घर के सभी की मिलजुलकर काम करने की जिम्मेदारी बढ़ती है। इस नए परिवेश को अपनाए बगैर और कोई चारा नहीं है। प्रिया की सुबह की गहमागहमी, अफ

आंचल में अंगार सहेजने वाली सुलभा

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हमने ही आपात्कालीन परिस्थिति समाप्त कराई’ ऐसी डींग कइयों ने हांकी होगी, प्रशंसा बटोरी होंगी। जो आपात्काल के विरोध में खड़े हुए, भूमिगत हुए, जेल गए उन्हें यह पता है कि आपात्काल के विरोध में लड़ाई जीती गई इसका कारण है सुलभा शांताराम भालेराव जैसी साहसी

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