मारीशस के तुलसी अरुण-मृदुल सेवक सुखदाता
अरुणजी का अवसान मारीशस में एक युग की समाप्ति है, किन्तु भारत भी अससे अछूता नहीं रहा है। अरुणजी ने जिस प्रकार से बीसवी शताब्दी के उत्तरार्ध तथा इक्कीसवी सदी के प्रारंभ में समय की आवश्यकता के अनुरूप समाज को श्रीराम चरित से जोड़ने का सद्प्रयास किया, वह अभिनंदनीय तो है ही, किन्तु अनुकरणीय भी है।