तांबे की गागर
तांबे के उस गागर सी थी सिया, जिसमें पानी केवल रखा भी रहे तो शुद्ध ही होता है। उसकी आंखों की चमक किसी पहाड़ी झील सी लगती थी और होंठों पर जब मुस्कुराहट आती तो लगता था कि मानो कई दिनों बाद बर्फ की ठंडक को तोड़ती पहाड़ की धूप खिली हो। उसके आने से ही तो इतनी रौशनी आई थी जीवन में कि हर एक क्षण किसी पूजा की थाली के दिये सा रौशन था।