जिंदगी के सफर में गुजर जाते हैं जो मकाम राजेश खन्ना (1942 से 2012 तक)
भारतीय फिल्मों के सौ वर्षों के इतिहास में यूं तो कई अभिनेता हुए लेकिन इन अभिनेताओं में कुछ तो चंद ...
भारतीय फिल्मों के सौ वर्षों के इतिहास में यूं तो कई अभिनेता हुए लेकिन इन अभिनेताओं में कुछ तो चंद ...
हिन्दी फिल्मों में कई वर्षों तक बिहार की संस्कृति को ‘डाउन मार्केट’ अर्थात न्यून आंका जाता था। हिन्दी फिल्म जगत ...
भारतीय फिल्मों का सौंवा वर्ष चल रहा है। भारतीय फिल्म के जनक दादासाहेब फाल्के ने सिनेमा के उत्कर्ष के लिए ...
देवमणि पांडेय के ताजा गजल संग्रह ‘अपना तो मिले कोई’ की गजलो से गुजरते हुए मेरी काव्य चेतना के बैक ...
इसी महीने भारतीय सिनेमा के सौ साल पूरे हो रहे हैं। सन् 1912 ई. में दादा साहब फालके ने ‘राजा ...
तमाम आर्थिक और तांत्रिक समस्यांओ को पार करते हुए 21 अप्रैल 1913 में धुंडिराज गोविंद फालके अर्थात दादा साहेब फालके ...
‘मनोरंजन और प्रबोधन’ (जितना संभव हो) का समन्वय स्थापित करने वाला दूसरा कोई सिनेमा न होगा। उसके गीत, संगीत, नृत्य, ...
बेहद अमीर हो या सिग्नल पर भीख मांगने वाला गरीब हो, बालक हो या युवा हो, महिला हो या पुरुष ...
इसीलिए मैंने आम आदमी की तरह समाजकंटक समझ कर हिकारत से देखे जाने वाले वाले लोगों के भी वोट प्राप्त ...
इस रंग बदलती दुनिया में धर्म के बजाय धन का महत्व सभी सीमाएं पार कर रहा है। जैसे बहुत-से गुंडे ...
अब तो चारों ओर उपग्रह चैनलों की ही गूंज है, फिर भी कई बार अच्छी कल्पनाओं का अभाव ही महसूस ...
उससे और उसके चित्रों से साबका साल-दर-साल होता रहा। उसके चित्रों की प्रदर्शनियां भी विशाल-से-विशालतर होती गईं। कई बार जहांगीर ...
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