ध्येयपूर्ति काश्रेष्ठ उपकरण

Continue Readingध्येयपूर्ति काश्रेष्ठ उपकरण

नम्रता, प्रमोद, शौर्य, ऋणस्वीकार आदि अनेक भावों का निर्माण करने वाली स्वर रचनाएं संघ के घोष को अधिकाधिक सार्थक बनाती हैं और स्वयंसेवक में भारतीय भावनाओं का जागरण करती हैं। इस प्रकार संघ ने अपनी ध्येय पूर्ति के लिए श्रेष्ठ उप

अनेक भाषाएं, सुरसमन्वय और जिंगल्स

Continue Readingअनेक भाषाएं, सुरसमन्वय और जिंगल्स

‘मिले सुर मेरा तुम्हारा ... ’’ के बाद हमने ‘‘बने सरगम हर तरफ से गूंजे बनकर। ’’ जिंगल बनाया। ‘‘मिले सुर .. ’’ पांच -छह सेकंड का था, लेकिन ‘‘बने सरगम ... ’’ १५ -२० सेकंड का। रामनारायण जी, हरिप्रसाद चौरसिया, अमजद अली खान, पंडित रविशंकर जी, पंडित भीमसेन जोशी, पंडित शिवकुमार शर्मा, जाकिर हुसैन जैसे बड़े -बड़े कलाकारों के साथ शास्त्रीय नृत्य के कलाकार भी थे। पर जो बात ‘‘मिले सुर ... ’’ में थी वह बात इसमें नहीं आ पाई।

बदलते साज

Read more about the article बदलते साज
OLYMPUS DIGITAL CAMERA
Continue Readingबदलते साज

;इलेक्ट्रोनिक इस्ट्रूमेंट या आधुनिक तकनीक हमारे वाद्यों के लिए, हमारे संगीत समाज के लिए बहुत ही खतरनाक है। दस इस्ट्रूमेंट बजा कर जो काम होता था वो आज एक मशीन करती है। इस कारण संगीत के क्षेत्र में बेरोजगारी बढ़ी है। वादकों की

संगीत में वाद्यों की, विशेषता

Continue Readingसंगीत में वाद्यों की, विशेषता

बिना वाद्य संगत के काव्य एकदम नीरस लगता है, गद्य हो जाता है और वहीं उसके साथ संगत हो जाए तो वह गीत बन जाता है और तो और श्रोता भी कहने लगता है कि वाह क्या बात है! यह साज भी गा रहा है। रतीय शास्त्रीय संगीत तीन विधाओं का समन्वि

उस्ताद बिस्मिल्ला खान

Continue Readingउस्ताद बिस्मिल्ला खान

शुभ कार्यों में घर के दरवाजे के पास बजने वाली शहनाई लोक वाद्य को शास्त्रीय संगीत के केंद्र में लाकर प्रतिष्ठित करने वाले महान प्रतिभा संपन्न संगीतकार उस्ताद बिस्मिल्ला खान की शहनाई के सुर आज भी रसिक जनों को मोहित कर लेते हैं।

न तुम हमें जानो…

Continue Readingन तुम हमें जानो…

पार्श्वगायन के क्षेत्र में बहुत स्पर्धा है। पहले जैसी ‘मोनोपली’ अब नहीं रही। रोज एक नई आवाज से पहचान होती है। फिल्म चली और गाने हिट हुए कि थोड़ेे दिन किसी गायिका का नाम जोर-शोर से सुनने में आता है। अल्प समय में ह

महान फिल्म संगीतकार

Continue Readingमहान फिल्म संगीतकार

संगीत की जैसे जैसे प्रगति होती गई फिल्म संगीत निर्देशक पश्चिमी वादनवृंद की स्वरसंगति और उनके द्वारा प्रयुक्त वाद्यों के प्रति सजग होते गए। पश्चिमी वादनवृंद की विभिन्न लय होती हैं और कुछ एकल वाद्य होते हैं, जबकि भारतीय व

फिल्मों में संगीत काबढ़ता शोर

Continue Readingफिल्मों में संगीत काबढ़ता शोर

उस समय एक फिल्म में एक गीतकार और एक संगीतकार होता था। अब ऐसा नहीं होता। अब फिल्म में गानों की संख्या कम होती है और गीतकार संगीतकारों की संख्या अधिक होती है। लगता है जैसे कोई प्रतियोगिता चल रही हो।  आठ साल पहले आशा भोंसले के प

वो समय हीअलग था…प्यारेलाल

Continue Readingवो समय हीअलग था…प्यारेलाल

वह समय ही अलग था। हमारी अन्य संगीतकारों के साथ प्रतियोगिता नहीं थी ऐसा मैं नहीं कहूंगा और किसी को भी नहीं कहना चाहिए। परंतु तब मन में कटुता नहीं थी। दूसरों के गानों को दबाने का या हिट ना होने देना का प्रयत्न नहीं किया जाता था। प्रत्

ब्रह्मपुत्र का सांस्कृतिक दूत

Continue Readingब्रह्मपुत्र का सांस्कृतिक दूत

भूपेन दा की कई असमिया फिल्मों को राष्ट्रीय पुरस्कार मिले हैं। इन फिल्मों को भारतीय फिल्मों की मुख्य धारा में लाने का काम उन्होंने किया है। हजार से भी अधिक काव्य रचनाएं उन्होंने की हैं, तथा उनकी लघु कथाएं भी मौलिक हैं। इस लोकप्रिय क

ऑरकेस्ट्रा का इतिहास

Continue Readingऑरकेस्ट्रा का इतिहास

भारतीय संगीत का और खास कर ऑरकेस्ट्रा का आगमन सन १९६० में हुआ। जब नये कलाकारों ने उन राहों को चुना जिन पर मंजे हुए गायक नहीं चले। एक नयी आजाद संगीत शैली का आगमन हुआ। नये फनकारों ने अपने गायन और आधुनिक संगीत वाद्यों का उपयोग करके लो

संगीत क्षेत्र का दीपस्तंभ!

Continue Readingसंगीत क्षेत्र का दीपस्तंभ!

स्वामी विवेकानंद के कथन के अनुसार ‘कला निरंतर सृजनशील ही होती है।’ मनुष्य का अन्य कलाओं की अपेक्षा संगीत कला के साथ नजदीक का रिश्ता है। संगीत दो प्रकार का होता है- कव्यसंगीत तथा वाद्यों पर बजाया जानेवाला संगीत। संगीत

End of content

No more pages to load