दो देशों कीजनता का संगीत
ऐतिहासिक रूप से संगीत कूटनीति और नेतृत्व का महत्वपूर्ण भाग रहा है, किंतु जितने प्रभावशाली ढंग से प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने जापान में इसका उपयोग किया वैसा बहुत कम ही होता है।
ऐतिहासिक रूप से संगीत कूटनीति और नेतृत्व का महत्वपूर्ण भाग रहा है, किंतु जितने प्रभावशाली ढंग से प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने जापान में इसका उपयोग किया वैसा बहुत कम ही होता है।
*****रेखा बैजल***** लेना न लेना अपने वश में नहीं होता। हमारे हाथों जो कृति होती है उसका वह अटल परिणाम होता है। लेकिन जब व्यक्ति अपनी गलती मानता नहीं तब वह परिणाम भगवान को कोसते हुए सहन करता रहता है। ग्रीष्म की धधकती धूप थी। उस धूप को झेलता हुआ विस्तृ
मेरे स्वर्गीय पिता श्री शिवनाथ मिश्र न्यायाधीश तो थे ही, जिन्होंने १९३६ से १९५६ तक मध्य प्रांत और विदर्भ को, और १९५६ से १९६७ तक नवगठित मध्य प्रदेश राज्य को अपनी सेवाएं दी। वे कानून के अलावा संस्कृत, हिंदी, अवधी, मराठी तथा उर्दू पर अच्छी पकड़ रखते थे।
आपके लिए संगीत क्या है?सबकुछ। संगीत मेरा ही एक हिस्सा है, मेरा ही एक अंग है, मेरा साथी है। जिस तरह हमारे हाथ पैर हमारे शरीर के अंग हैं उसी तरह संगीत भी मेरा एक हिस्सा है, कहना है प्रख्यात गायक तथा संगीतकार श्री शंकर महादेवन जी का. प्रस्तुत है संगीत के विभिन्न आयामों पर उनसे हुई बातचीत के प्रमुख अंश
‘हिंदी विवेक’ का यह संगीतमय दीपावली विशेषांक रसिक पाठकों के हाथ में देते हुए हमें हार्दिक प्रसन्नता हो रही है। इस विशेषांक का काम करते समय कर्मचारी वर्ग भी तल्लीन हो गया था। मानो संगीत की किसी महफिल में रंगत आ गई हो और स्थल-काल को भूल कर हम सु
रेडियो; बीते कल का हो, आज का, उसका आधार, उसके कार्यक्रमों की धुरी भारतीय फिल्म संगीत और उससे जुड़ी हस्तियां ही हैं। फिल्म संगीत के माध्यम से रेडियो ने और रेडियो के माध्यम से फिल्म संगीत ने विश्व भर में भारत की विजय पताका फहराई है।
कलाकार के चेहरे से जब रंग उतर जाता है तब यथार्थ आगे आ जाता है। उसका सामना करने का साहस जयमाला ने अभिनय और संगीत से ही प्राप्त किया। अपने स्वीकृत कार्य को अंतिम सांस तक करने का भाग्य उन्हें मिला।
मेरे जीवन में आए बदलाव में ‘इस्कॉन’ संगीत का अत्यंत मौलिक योगदान है। संगीत ध्यान है। साथ ही जीवन को सकारात्मक रूप में परिवर्तित करने का साधन भी है। मैंने इस संगीत को जब पहली बार सुना, साधकों को ‘हरे राम....हरे कृष्ण....हरे हरे’ की धुन पर झूमते देखा तब मैं उनकी ओर खिंचता चला गया। -मधुसूदन सिंगड़ोदिया
संगीत ईश्वर का दिया हुआ एक ऐसा दिव्य उपहार, एक ऐसा वरदान है जिसके माध्यम से इस भव जगत को भी पार किया जा सकता है।
“नई पीढ़ी को शास्त्रीय संगीत समझने में भी कुछ समय लगेगा। जो अच्छा और मौलिक होगा वह जरूर टिका रहेगा। मैं इस क्षेत्र में तुलना या प्रतियोगिता करने के लिए नहीं आई हूं। अच्छा काम करना ही मेरा उद्देश्य है।” किसी इंसान का पेशा और उसका शौक अलग-अलग हो सकता है। और कभी-कभी शौक व्यवसाय भी बन सकता है। आजकल भजन क्षेत्र में उभरते सितारे के रूप में सामने आनेवाली देवयानी मजूमदार के लिए यह बिलकुल सटीक बैठता है- प्रस्तुत हैं देवयानी के साथ हुई बातचीत के कुछ अंश।
स्वर, लय और ताल के साथ शब्दों के स्वरों की अदायगी की अनुभूति केवल भावों द्वारा ही स्पष्ट होती है। भावहीन संगीत का सांगीतिक जीवन में कोई स्थान नहीं है। विस्तार से देखा जाए तो किसी भी गायन, वादन और नृत्य शैली में भावों द्वारा ही नव रसों की उत्पत्ति होती है। विभिन्न गायन शैलियां एक-दूसरे से भिन्न होते हुए भी एक-दूसरे के पूरक हैं।
खां साहब पल भर के लिए भी स्वर संवेदन नहीं बिसरे थे जिसकी अनुभूति कई बार श्रोताओं ने अनुभव की है।... राग की विशालता परखना और उसे गहराई से गाना उनका स्वभाव था। संगीत जगत की अनंतता के प्रति उनकी अटूट आस्था थी। वे संगीत जगत की एक बहुमूल्य हस्ती थे, जिनकी चौंका देने वाली पेशकश अविस्मरणीय होती थी।