विश्वास के पंख
रमाशंकर जी से सराहना के शब्द सुन कर नैना का मनमयूर विश्वास के रंगीन पंख लगा खुशी से नाचने लगा था। एक परम्परागत साड़ी उद्योग को नैना ने एक आधुनिक फैशन उद्योग में जो बदल दिया था...
रमाशंकर जी से सराहना के शब्द सुन कर नैना का मनमयूर विश्वास के रंगीन पंख लगा खुशी से नाचने लगा था। एक परम्परागत साड़ी उद्योग को नैना ने एक आधुनिक फैशन उद्योग में जो बदल दिया था...
“तुम तो बस..भारतीय संस्कृति की प्रतिमूर्ति-सी, प्रस्तर शिला की तरह मौन, विषपाई नीलकण्ठ की भांति सारा गरल स्वयं ही पीती रहती हो और उस हलाहल की गर्मी से ही मैं विह्वल और अपराधी मानने लगता हूं अपने आप को।”
“अपने देश में मुफ्तखोरी का फैशन बहुत चल निकला है। अर्थात यदि कोई चीज मुफ्त में मिल रही हो, तो फिर उसके लिए हाथ, जेब और झोली के साथ ही दिल भी बेरहम हो जाता है।”
फैशन फिल्मों का अनिवार्य हिस्सा है। युवाओं में वहीं से फैशन चल निकलता है। पेहरावों में तो फिल्मों ने तरह-तरह के नए-नए प्रयोग किए, कुछ तो पीढ़ी-दर-पीढ़ी हावी रहे। फिल्मी गानों में भी झुमके से लेकर पायल तक और बिंदिया से लेकर कंगना तक छाये रहे। फिल्में पीढ़ियां जीती हैं, उनसे निकली फैशन लेकिन पीढ़ी के साथ ही बदल जाती है।
पेरिस फैशन बाजार को खजाने की गुफा कह सकते हैं, जो पर्यटकों और फैशन प्रेमियों दोनों को समान रूप से आकर्षित करता है। पेरिस शहर से फैशन के नए-नए स्वरूपों की शुरूआत हुई, जो बाद में सारी दुनिया में छा गई।
राज्य मराठी विकास संस्था और इचलकरंजी की डीकेटीबी संस्था के संयुक्त तत्वावधान में वस्त्रनिर्मिति पर ज्ञानकोश निर्माण करने का वृहद प्रकल्प आरंभ किया गया है। यह 9 खंडों में होगा, जिसमें से चार खंड प्रकाशित हो चुके हैं। वस्त्रोद्योग से जुड़े सभी के लिए यह ज्ञानकोश उपयोगी होगा।
दोष लडकियों के पहनावे में नहीं मर्दों की नजरों में हैं। पाबंदी तो पुरूषों की विकृत सोच एवं वहशी नजरिये पर लगनी चाहिए। जिस दिन समाज का हर एक मर्द अपने अंदर के जानवर पर पाबंदी लगा देगा, उस दिन महिलाओं के फैशन पर पाबंदी का मुद्दा ही खत्म हो जाएगा।
आजकल एक नया ट्रेंड युवाओं में देखा गया है, जिसमें वे अपने टैटू को प्रमुख रूप से दर्शाने के लिए एक विशेष प्रकार की टी-शर्ट्स की दुकानदारों से मांग करने लगे हैं। इसके अलावा अलग-अलग लोगो व मैसेज के टी-शर्ट भी लोकप्रिय है। यह आपकी अभिव्यक्ति को प्रकट करता है।
शहरी जनजीवन में नित-नए प्रयोग के चलते फैशन के जो अलग-अलग रंग दिखने लगे, उसमें इन वनवासियों के जीवन से जुड़े परिधान व गहने भी शरीक कर लिए गए हैं। वनवासी बालाएं भी संजने-संवरने में उतनी ही उत्सुक होती हैं, जितनी की शहरी बालाएं।
फैशन हर समय रहा है, कोई भी काल रहा हो, कोई भी युग रहा हो, उस समय के अनुसार फैशन हुआ करता था। सजने और संवरने की इच्छा मानव सभ्यता का अभिन्न अंग रही है। सदियों से, स्त्री हो या पुरुष, सब स्वयं को सुंदर दिखाना चाहते हैं, यही लालसा फैशन की जन्मदाता रही है।
भारत के आसपड़ोस के देशों में पश्चिमी पोशाकों के साथ भारतीय सभ्यता से प्रभावित परिधानों का अधिक बोलबाला है। इन परिधानों को स्थानीय परिस्थितियों एवं संस्कृति के अनुकूल बनाया गया है।
गणवेश व्यक्ति को रौबदार व्यक्तित्व देता है, उसमें देशभक्ति की भावना का संचार करता है, कठिनाइयों से जूझने की क्षमता का विकास करता है, समाज की रक्षा का दायित्वबोध देता है इसीलिए इसे पहनने वाला लोगों के सम्मान का पात्र होता है। आखिर रुबाब ही गणवेश की फैशन है।