भारतीय परिधानों पर विदेशी तड़का
भारत में भले ही पाश्चात्य संस्कृति के पहनावे का फैशन बढ़ गया है, परंतु भारत के पारंपरिक लिबास किसी भी तरह से पीछे नहीं हैं। वर्तमान में जो परिधान फैशन में हैं, वे अधिकतर भारतीय परिधानों पर विदेशी तड़के की तरह है।
भारत में भले ही पाश्चात्य संस्कृति के पहनावे का फैशन बढ़ गया है, परंतु भारत के पारंपरिक लिबास किसी भी तरह से पीछे नहीं हैं। वर्तमान में जो परिधान फैशन में हैं, वे अधिकतर भारतीय परिधानों पर विदेशी तड़के की तरह है।
आपकी फैशन आपके व्यक्तित्व से संबंधित होती है। वह लोगों को आपके बारे में, आपके विचारों के बारे में और आपके व्यवहारों के बारे में जानकारी देती है। फैशन किसी इंसान के व्यक्तित्व को परिभाषित करती है और ये देानों एक दूसरे के पूरक होते हैं।
पूर्वोत्तर में टैटू फैशन नहीं, परम्परा का अंग है। आधुनिकता के बावजूद कबीलाई युवक गोदवाना पसंद करते हैं। हालांकि, कबीलाई प्रतीकों की जगह आधुनिक प्रतीकों ने उसका स्थान ले लिया है। इससे पूर्वोत्तर में मरती जा रही इस प्रथा में नई जान आ गई है।
हजारों साल पहले से ही भारत सहित दुनिया के अनेक देशों में गोदना गुदवाने की प्रथा परंपरा के रूप में चली आ रही है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि पुरानी परंपरा ही अब नए लेटेस्ट वर्जन में टैटू के रूप में सामने आई है, जिसकी पूरी दुनिया दीवानी होती जा रही है।
सोलह श्रृंगार हमारी परम्परा और शरीर विज्ञान दोनों से जुड़े हैं। लेकिन आधुनिक समय में रोज-रोज इसे करना असंभव है। अब विशेष आयोजनों पर ही सोलह श्रृंगार किए जाते हैं, और तब नारी सुन्दर ही नहीं गरिमामयी देवी की भांति प्रतीत होती है।
आंतरिक सौंदर्य का नजराना हमें भगवान से स्वाभाविक रूप से मिला हुआ है। जरूरत है उसे पहचानने की, स्वीकार करने की और उसे और समृद्ध बनाने की। इससे बड़ा सौंदर्य और कोई हो ही नहीं सकता।
2019 के लोकसभा चुनाव की अभी जो तस्वीर उभरती है वह काफी धुंधली है। न किसी के पक्ष में लहर है न किसी के विपक्ष में। किंतु यही स्थिति 2019 के चुनाव तक रहेगी इसकी गारंटी नहीं है। 2014 में जो चुनावी मुद्दें थे, वे भी लगभग बदल चुके हैं। इसके प्रभावों के बारे में अभी कुछ कहना जल्दबाजी ही होगी।
मैं आईना...वैसे मेरा और आपका रिश्ता तो सदियों पुराना है। मुझे देखे बिना आपका एक दिन भी गुजरता नहीं, और मुझ से बातें किए बिना आपको चैन भी नहीं पड़ता। तो अगर कभी श्रृंगार में कोई कमीं रह जाए तो खरी-खोटी मुझे ही सुननी पड़ती है, और कभी आप अति सुंदर लगें तो डिठूला कभी-कभी आपके साथ मुझे भी लग जाता है। तो ऐसा है हमारा रिश्ता सदियों पुराना। आज इसी रिश्ते की एक कहानी सुनाने जा रहा हूं... मेरी और उसकी कहानी...
भारतीय सौंदर्य किसी प्रदर्शन का मोहताज नहीं है यह हमारे भीतर से ही उत्पन्न होता है, हमारी संस्कृति योग, ध्यान और अध्यात्म की है जिसका प्रभाव एक सच्चे भारतीय के चेहरे पर स्पष्ट झलकता है।
देश भर मे केरल ही ऐसा प्रदेश था, जहां पहले दिवाली नहीं मनाई जाती थी, क्योंकि मान्यता है कि बलि राजा केरल का था और विष्णु ने वामन अवतार लेकर उसका नाश किया था। लेकिन अब सबकुछ बदल चुका है। वहां भी घर-आंगन दीयों से सजे दिखाई देते हैं।
महाराष्ट्र की पैठणी साड़ी रंग, बेलबूटे और कारीगरी के लिए प्रसिद्ध है। पैठण के अलावा येवला भी इसका मुख्य केंद्र है। यह साड़ी महिलाओं को मोहक तो बना ही देती है, पुरानी होने पर बच्चियों के ड्रेस सिलवाने के काम भी आती है। फैशन और उपयोग दोनों साथ-साथ...
फैशन और सौंदर्य को जुदा नहीं किया जा सकता। जब दुनिया बर्बर अवस्था में थी तब प्राचीन भारत में एक समृद्ध संस्कृति थी। परिधानों, अलंकारों, सौंदर्य प्रसाधनों में हमारा कोई मुकाबला नहीं था। प्रस्तुत है फैशन शो के वैश्विक संदर्भ के साथ भारत में वस्त्रालंकारों, सौंदर्य के पैमाने एवं सौंदर्य-प्रसाधनों की एक झलक।