माता अर्थात् राष्ट्रनिर्माता

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 अन्य देशों में एकात्म भावना के संस्कार नहीं होने के कारण क्या हो सकता है यह रूस के उदाहरण से हम देख सकते हैं। प्रतिस्पर्धा की भावना के कारण एवं आधुनिकता की अलग कल्पना के कारण स्त्री घर से इतनी बाहर आई कि घर परिवार के बंधन टूटते गए।

भारत की वीरांगनाएं-

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भारत की विरांगनाओं को भी समय-समय पर अपनी प्रजारूपी संतानों की रक्षा हेतु हमने चण्डिका रूप धारण करते देखा है। किसी ने अपनी कायर पुरुष संतानों को वाक्बाणों से प्रताड़ित कर युध्द के लिए प्रेरित किया तो किसी ने सीधे खड्ग धारण कर युध्दभूमि पर अपना रणकौशल दिखा कर अमृतमय मृत्यु का वरण किया है।

भारतीय नारी अर्द्धनारीश्वर की पूर्ण अवधारणा

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हिन्दू परम्परा के परिवारों में सामान्यतः पितृसत्तात्मक समाज ही होते हैं, किंतु इसके साथ साथ सदा से यह स्थापना भी रही कि नारी प्रथम प्रणाम की अधिकारी है। इसके फलस्वरूप ही लिखा गया कि

शायर निदा फाज़ली

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मशहूर शायर निदा फाज़ली हिंदी, उर्दू और गुजराती में लिखते थे। वे देश में एकात्मता के उद्घोषक थे। भारत का विभाजन उन्हें मंजूर नहीं था। विभाजन के बाद उनके माता-पिता पाकिस्तान चले गए, लेकिन उन्होंने हिंदुस्तान में ही रहना पसंद किया। उनके जाने से सूनापन तो आया; लेकिन उनकी शायरी एकात्मता और भाईचारे की रौनक जगाती ही रहेगी।

विश्वविद्या की राजधानी

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महामना पं. मदनमोहन मालवीय ने आधुनिकता एवं प्राचीनता को समेटे एक अनूठे विश्वविद्यालय की स्थापना की। सन् 1916 में बसंत पंचमी के दिन महात्मा गांधी की मौजूदगी में ‘बनारस यूनिवर्सिटी’ का शिलान्यास किया गया। बाद में सन् 1942 में महात्मा गांधी के ही सुझाव पर मालवीय जी ने इस विश्वविद्यालय का नाम ‘काशी हिन्दू विश्वविद्यालय’ रखा, जो बीएचयू के संक्षिप्त नाम से भी प्रसिद्ध है। इस वर्ष इसे 100 साल पूरे हो रहे हैं। इस महान कार्य के लिए केंद्र की भाजपा सरकार ने मालवीय जी को मरणोत्तर ‘भारत रत्न’ अलंकार से भी सम्मानित किया है।

हेडली के जवाब से तो विरोधियों की आंखें खुलें

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गुजरात के निवृत्त पुलिस उपमहानिरीक्षक डी.जी. बंजारा को लश्कर-ए-तैयबा तथा अन्य पाकिस्तानी आतंकवादी संगठनों के विरुध्द कठोर कार्रवाई किए जाने के कारण कांग्रेस तथा वामपंथियों ने बलि चढ़ा दिया। तत्कालीन केन्द्र सरकार ने उनको जेल में डाल दिया। मुंबई की लश्कर-ए- तैयबा की आत्मघाती दस्ते की सदस्य इशरत जहां तथा उसके तीन आतंकवादी साथियों को गुजरात में आतंकवादी हमले के लिए जाते समय बंजारा की टीम ने रोकने का प्रयत्न किया। उनकी योजना को असफलत करते समय हुई मुठभेड़ में उनको मार गिराया।

गद्दारी के गढ़ तोड़े जाएं

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देश में जेएनयू और ऐसे ही वामपंथी ज़हर में रचे-पगे दूसरे संस्थानों में भी बदलाव के लिए देशवासियों की इच्छाशक्ति तैयार हो रही है। सामान्य देशवासियों की मांग है कि शिक्षा संस्थानों में फैल रही इस ज़हरीली हवा की रोकथाम की जाए। दूध पीकर विष उगलना अब स्वीकार्य नहीं है। ...बोलने की आज़ादी देश से गद्दारी करने का लाइसेंस नहीं है।

‘इसीस’ के खतरे को ऐसे रोकें

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वैश्विक आतंकवादी संगठन ‘इसीस’ से भारत को भी खतरा है। गुमराह युवक धार्मिक कट्टरता के चलते भ्रमजाल में फंस जाते हैं। उन्हें इससे बचाने के जिस तरह उपाय करने की जरूरत है, वैसे ही आतंकवादी घटनाओं की संभावना के बारे में गुप्तचर तंत्र को मजबूत करने की भी जरूरत है। ‘इसीस’ इंटरनेट के जरिए प्रचार पर अंकुश रखना भी आवश्यक है।

फिर दूसरा रोहित न हो!

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रोहित वेमुला सरीखे समाज के निम्म वर्ग के तरुणों को गलत राह दिखाने का काम जिन लोगों ने किया वे ही वास्तव में उसकी आत्महत्या के लिए जिम्मेदार हैं। तथाकथित प्रगतिशील वामपंथी एवं सेक्यूलर लोग अब उसकी आत्महत्या पर राजनीति की रोटी सेंक रहे हैं। ....वास्तव में किसी भी विद्यार्थी को विश्वविद्यालय में आत्महत्या करनी पड़े यह राष्ट्रीय पाप समझना चाहिए। हमें बच्चों को पुरुषार्थी बनाना है और उस तरह के परिवर्तन हमारी शिक्षा व्यवस्था में करने पड़ेंगे ताकि और कोई रोहित न बने।

कमजोर होतीमहिला आंदोलन की धार

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स्वतंत्रता आंदोलन की तरह ही अपने अधिकारों के लिए महिलाओं ने बड़े पैमाने पर आंदोलन किए हैं। ‘इंसान’ के रूप में जीने का अधिकार पाने के लिए शुरू हुई यह ल़ड़ाई घर की दहलीज पार गई थी। अस्तित्व के संघर्ष ने आगे अस्मिता का रूप ले लिया। साक्षर होने के बाद महिलाओं ने समान हक प्राप्त करने की ल़ड़ाई भी जीती। सावित्रीबाई ङ्गुले, रमाबाई रानड़े आदि ने महिला आंदोलन के बीज बोए।

परिश्रमी ठमा

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नदी का मुख आरम्भ में छोटा होता है पर सागर से मिलते समय वह विशाल हो जाती है। ठीक उसी प्रकार ठमा का कार्यक्षेत्र बढ़ता गया। ...ठमा का व्यक्तित्व ‘बिंदु से लेकर सिंधु’तक ङ्गैला। एक छोटे से कस्बे की शांत, सौम्य ठमा भारत के भ्रमण पर निकली। यह कोई कल्पित कहानी नहीं है, यथार्थ है, जिसे वनवासी कल्याण आश्रम ने गढ़ा।

देह धरे को दण्ड

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इसका नाम कुछ भी हो सकता है, वह किसी भी जाति, वर्ग या समुदाय की हो सकती है, यहां तक कि उसकी उम्र कुछ भी हो सकती है; पर हां, इस आलेख की केंद्रीभूत पात्र होने के नाते उसका केवल स्त्री होना आवश्यक है। इस आलेख को पढ़ने वालों को अप

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