वेद व्यास एवं शिष्य जैमिनी
इस संस्कृत श्लोक का अर्थ है कि स्त्री चाहे मां, पुत्री या बहन ही क्यों ना हो, उनके साथ एक आसन पर नहीं बैठना चाहिए। क्योंकि इन्द्रियां बहुत चंचल एवं बलवान हैं। भलो-भलों को फुसला कर उन्हें पथभ्रष्ट करने की क्षमता रखती हैं।
इस संस्कृत श्लोक का अर्थ है कि स्त्री चाहे मां, पुत्री या बहन ही क्यों ना हो, उनके साथ एक आसन पर नहीं बैठना चाहिए। क्योंकि इन्द्रियां बहुत चंचल एवं बलवान हैं। भलो-भलों को फुसला कर उन्हें पथभ्रष्ट करने की क्षमता रखती हैं।
दीपावली का त्योहार हमारे जीवन में उमंग एवं खुशी लेकर आता है। लेकिन यह न भूलें कि दीपावली प्रकाश का पर्व है; आगजनी और विस्फोटों का नहीं। धन के प्रदर्शन का नहीं, श्री लक्ष्मी की पावन पूजा का है।
सुदीर्घ नाट्य परम्परा को समाहित करते हुए भी रंगमंच में नित नए प्रयोग करते रहने से नवीनता, रोचकता एवं उनकी ग्राह्यता बनी रहती है। दर्शक भी तभी पुनः हिंदी थियेटर की ओर मुड़ेंगे, जिससे आर्थिक समस्या का भी समाधान हो जाएगा और हिंदी रंगमंच पुनः अपना गौरव प्राप्त करेगा।
भरतमुनि ने नाट्यशास्त्र की नींव रखी और भगवान शिव अर्थात नटराज बन गए संपूर्ण भारतीय नृत्य के आराध्य दैवत। नटराज अर्थात नाट्य और उससे संबंधित कलाओं पर राज करने वाला, याने नटराज। नृत्यकला नाट्य के बिना अधूरी है और नाट्य नृत्यकला के बिना अधूरा है।
आप जो सुन रहे हैं उसकी तरंगें, उसके बोल, उसके वाद्यों की झंकारें अगर आपके मन मस्तिष्क तक नहीं पहुंचतीं और आपको आल्हादित नहीं करतीं तो आपका संगीत सुनना व्यर्थ होगा। अत: अच्छा संगीत सुनें, तानसेन ना सही पर कानसेन जरूर बनें।
सुख और दुख, प्रेम और विरह, उल्लास और त्योहार, तत्वज्ञान और रहस्य- इस तरह सभी मूड के सदाबहार गानों को लक्ष्मीकांत- प्यारेलाल की जोड़ी ने संगीतबद्ध किया। फिल्मी संगीत का एक युग उनके नाम है। जब तक फिल्में बनती रहेंगी तब तक यह युगल याद आता रहेगा।
साधारण सा सफेद कुरता पायजामा, भाल पर लाल टीका और व्यक्तित्व में चुंबक सा आकर्षण यह परिचय है श्री वीरेन्द्र याज्ञिक का, जिनके बगैर मुंबई का हर धार्मिक आयोजन अधूरा सा लगता है। उनके सानिध्य में आने वाला हर व्यक्ति स्वयं को पारस के स्पर्श का अनुभव करने लगता है।
छायावाद और प्रगतिवाद के कवि चन्द्रकुंवर बर्त्वाल को प्रकृति के प्रति रागपरक रहस्य चेतना और गहन लगाव के कारण भारत का कीट्स भी कहा गया है। उनका जन्म उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले के मालकोटी ग्राम में हुआ था। उनका यह शताब्दी वर्ष है। उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि उनके संपूर्ण साहित्य को नए सिरे से प्रकाशित करके उसका नया पाठ तैयार किया जाए।
भारतीय मजदूर संघ के संस्थापक दत्तोपंत ठेंगडी की अगले वर्ष जन्म शताब्दी है। उनके अथक परिश्रमों और एकात्म समाज चिंतन से ऐसा मजदूर संगठन खड़ा हो गया है, जो इस समय देश का प्रथम क्रमांक का श्रम संगठन है। उनका व्यक्तित्व एक ‘महान श्रम पुरुष’ है, जिनके पदचिह्नों का सदा आभास होता रहेगा।
लैंडर विक्रम की हार्ड लैडिंग की घटना भारत के चंद्र मिशन पर नाकामी की एक हल्की सी छाया अवश्य छोड़ती है, लेकिन अब तक के अंतरिक्ष अभियानों के बल पर भारत ने जो मुकाम हासिल किया है वह हमें भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के संस्थापक डॉ. विक्रम साराभाई की अवश्य याद दिलाता है।
गांधीजी के विचारों-सिद्धांतों को आधुनिक समय के साथ समन्वय करते हुए देखना होगा। ऐसा होने पर ही व्यक्ति, समाज व राष्ट्र में अनुकूल परिवर्तन की हम अपेक्षा रख सकते हैं। यह बहुत छोटी चीज लगेगी। लेकिन, जैसा कि गांधीजी कहते थे, छोटी-छोटी बातें ही हमें परिपूर्ण बनाती हैं और परिपूर्णता कोई छोटी बात नहीं होती।
ललित कला अकादमी के अध्यक्ष प्रसिद्ध शिल्पकार उत्तम पाचारणे नष्ट होती जा रहीं हमारी प्राचीन महान शिल्पकला के प्रति चिंतित हैं। इस धरोहर को बचाने के लिए प्राचीन शिल्पकला पर आधारित पाठ्यक्रम हमारी शिक्षा में शामिल किए जाने का उनका आग्रह है। इससे शिल्पकला को समाज का संरक्षण प्राप्त होगा और देश-दुनिया को भी इस कला के महान विश्वकर्मा मिलेंगे। हमारा स्वर्णयुग फिर लौट आएगा। उनसे कला क्षेत्र के विभिन्न पहलुओं पर हुई बातचीत के कुछ महत्वपूर्ण अंश प्रस्तुत हैं-