बाहुबली भारतीय सिनेमा में नई क्रांति

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ऐसे समय में जबकि देश में राष्ट्रवादी विचारधारा का वर्चस्व अपने उरूज पर है, बाहुबली का इतना हिट होना एक और संकेत भी देता है। एक वरिष्ठ पत्रकार ने अपने फेसबुक पर लिखा ‘मनमोहन की जगह मोदी, अखिलेश की जगह योगी और अब दबंग की जगह बाहुबली, देश बदल रहा है।’ हम में से शायद ही कोई ऐसा शख्स हो जिसे बालीवुड और हालीवुड की फ़िल्में देखना न पसंद हो, मगर यदि आपको उनकी शूटिंग के पीछे की वास्तविक तस्वीर दिखा दी जाए तो आपका विश्वास उन फिल्मों पर से हट जाएगा। क्योंकि जो आप देखते हैं, असल में वैसा होता नहीं है। आ

जिजीविषा, तेरा नाम इजराइल!

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इजराइल। जीवटता, जिजीविषा और स्वाभिमान का जीवंत प्रतीक है। रेगिस्तान में खेती से लेकर तकनीकी, फौजी और भाषा के मामले में इजराइल ने जो मिसाल कायम की है उसका विश्व में दूसरा उदाहरण दुर्लभ है। दुनिया का छोटा तथा नवीन देश होने के बावजूद इजराईल ने हर क्षेत्र में एक मिसाल कायम की है।  इस दुनिया में मात्र दो ही देश धर्म के नाम पर अलग हुए हैं। या यूं कहे, धर्म के नाम पर नए बने हैं। वे हैं, पाकिस्तान और इजराइल। दोनों के बीच महज कुछ ही महीनों का अंतर हैं। पाकिस्तान बना १४ अगस्त, १९४७ के दिन। और इसके ठीक नौ महीने क

विश्वव्यापी भारतीय संस्कृति

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सारे विश्व से जो पुरातात्विक प्रमाण मिले हैं उससे साबित होता है कि भारतीय संस्कृति विश्व के हर कोने में फैली हुई थी। चाहे जापान हो या न्यूजीलैण्ड, यूरोप हो या अफ्रीका अथवा अमेरिकी प्रायःद्वीप- हर जगह भारतीय और उनकी संस्कृति पहुंची है। हर संस्कृति से उसका मेलजोल हुआ। वह सर्वव्यापी हो गई। समुंदर पार जाने या देशांतर के दौरान संस्कृति किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाती। वह सहजता और सरलता से सीमाओं को पार कर देती हैं। यहां तक कि सदियों या सहस्राब्दियों पूर्व उसने जो प्रभाव छोड़ा था वह भी सहजभाव बन जाता है। इसी

वो कागज की कश्ती, वो बारिश का पानी…

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बाजार की स्पर्धा ने मां-बाप और बच्चों के बीच दूरी पैदा कर दी है। बच्चे अकेले हो गए हैं। उनका अकेलापन मोबाइल, इलेक्ट्रानिक गेम और चैनल पूरा कर रहे हैं और हताशा में वे अनायास हिंसा को अपनाने लगे हैं। तितलियां अब भी गुनगुनाती हैं, आसपास मंडराती भी हैं, कागज भी है, कश्ती भी है, बारिश भी है; लेकिन बचपन खो गया है। कैसे लौटाये उस बचपन को? अखबारों में हमेशा की तरह खबरें पढ़ रहा था। ज्यादातर बेचैनी अखबारों से भी आती है। सामने आनेवाली खबर किस प्रकार से आपको बेचैन कर दे, कह नहीं सकते। ब्लू व्हेल गेम से सम्मोहित हो

विकास की अवधारणा और सोशल मीडिया

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पछले दो दशकों से इंटरनेट ने हमारी जीवनशैली को बदलकर रख दिया है। एक नये आभासी समाज और समुदाय का निरंतर निर्माण भी हो रहा है। हमारी जरूरतें, कार्य प्रणालियां, अभिरुचियां और यहां तक कि हमारे सामाजिक मेल-मिलाप और सम्बंधों के ताने-बाने को रचने में कंप्यूटर और इंटरनेट ही बहुत हद तक जिम्मेदार है।

धर्म और राजधर्म

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मानव सभ्यता के विकास के साथ ही धर्म और राजनीति एक-दूसरे के हाथ में हाथ डाले चल रही है। दोनों में संघर्ष भी शाश्वत है। धर्म बड़ा या राजनीति? राजनीति का माने राज्य की नीति या महज जोड़-तो़ड़ या कुटिलता? धर्म और राजधर्म का क्या अर्थ है? प्रस्तुत है विश्व भर के प्रमुख धर्मों के मुख्य सूत्रों और राजनीति पर प्रभाव का यह विहंगम अवलोकन।धर्म और राजनीति का चोली-दामन का सम्बंध है। धर्म का अर्थ महज कर्मकाण्ड नहीं है, अपितु वह नैतिकता का अधिष्ठान है। धर्म का अर्थ है आचार-व्यवहार, सदाचार की स्थापना, व्यक्ति और समाज के बीच एक

आक्रमण का नया तरीका – घुसपैठ

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घुसपैठ कई तरह की है। सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक जैसे उसके कई आयाम हो सकते हैं। इसके प्रति सरकार और जनता दोनों को सतर्क रहने की आवश्यकता है। हमारी ढिलाई भविष्य की एक बड़ी और न सुलझने वाली समस्या को न्योता दे रही है इसे नहीं भूलना चाहिए।  मानव इतिहास इस वास्तविकता का साक्षी है कि हमारे राष्ट्रीय, राजनैतिक, सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक, शैक्षणिक, जीवन में उत्पन्न होने वाली समस्याओं का एकमात्र कारण घुसपैठ ही होता है। घुसपैठ का असर राष्ट्रीय, राजनैतिक, सामाजिक, धार्मिक व आर्थिक जीवन पर अवश्य ही पड़ता है। अनेक बार प

आतंकवाद का असली चेहरा

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किसी सामान्य लाइलाज महामारी की तरह ही आतंकवाद को भी हमने आज की एक वास्तविकता समझ कर स्वीकार कर लिया है। उसका कोई उपचार या निदान निकालें, पुराने घिसे-पिटे विफल हो चुके इलाज को छोड़ कर कोई जालिम उपाय ढूंढें, यह विचार भी कभी हमारे मन में नहीं आता। आतंकवाद तो केवल एक छलावा है। उसका असली स्वामी तो मानवाधिकार है।   शब्दों में बड़ी ताकत होती है। साथ ही, शब्द बड़ा छल कर सकते हैं। किसी भी कार्य या विषय को शब्दों में लपेटते ही उसका अर्थ पूरी तरह से बदला जा सकता है। शब्दों की व्याख्या भी ऐसे ही छलावा करती है। श

दीपावली

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दिवाली दे सुषमा निराली विश्व को नव ज्ञान दे। शांति दे इस विश्व को गौरवमयी पहचान दे। चिर पुरातन हिंद से विद्वानता का मान दे। प्रीति, वैभव, चेतना,यश हर हृदय को दान दे॥ दिवाली पर मानव हृदय में प्रकृति के प्रति प्यार हो। कष्ट का होवे निवारण आरोग्यमय संसार हो। प्रात: स्वागत गान गाए सांझ गाए आरती- दीप की शुभ रश्मियों का विश्व को उपहार हो। आओ एक इतिहास रचाएं। इस दुनिया में तम ही तम है दीवाली पर दीप जलाएं। नेहन्नीति की सुंदर सरगम मिल कर हम तुम सारे गाएं॥ विश्व गुरु भारत का सपना, आओ! हम साकार बनाएं दी

हिंदी पत्रकारिता के जनक

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एक जेब में पिस्तौल, दूसरी में गुप्त पत्र ‘रणभेरी’ और हाथ में ‘आज’ व ‘संसार’ जैसे पत्रों को संवारने, जुझारू तेवर देने वाली लेखनी के धनी पराड़करजी ने  जेल जाने, अखबार की बंदी, अर्थदण्ड जैसे दमन की परवाह किए बगैर पत्रकारिता का वरण किया| सरकार के विरोध में संपादकीय स्थान खाली छोड़ने के १९३० के उनके प्रयोग को १९७५ में आपात्काल के दौरान संपादकों की नई पीढ़ी ने दुहराया|

पुनरुत्थान की यशोगाथा

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३१ अगस्त २०११ का दिन जनता सहकारी बैंक के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखा जाएगा| १४ वर्षों के अविरत संघर्ष के बाद ३१ मार्च २०११ को समाप्त वित्त वर्ष में संचित हानि रु. १२५ करोड़ समाप्त होकर बैंक ने लाभ प्राप्त किया एवं लाभांश घोषित किया| संचालक मंडल के अध्यक्ष के रूप में कार्यरत श्री अरविंद केशव खलदकर ने श्री विजय भावे, श्री सदानंद जोशी, श्री सदानंद भागवत, एवं श्री जयंत काकतकर आदि के सहयोग से यह उपलब्धि प्राप्त की|

आधुनिकरण के प्रवाह में बदतर होते मजदूर

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आधुनिकीकरण एवं वैश्‍वीकरण ने देश में विषमता को बहुत तेजी से बढ़ावा दिया है| एक बहुत अमीर वर्ग है, जबकि दूसरा निर्धन बना मजदूर वर्ग है| असंगठित क्षेत्र में तो हालत और खराब है| हमें भारतीय माहौल के अनुरूप अपनी श्रम नीतियों को संशोधित करना चाहिए, ताकि ‘सबका साथ, सबका विकास’ जमीनी घोषणा बन सके|

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