हिंसक आंदोलन का लेखाजोखा
नक्सलली आंदोलन, उसके कार्यकर्ताओं की निष्ठा, संघर्षशीलता, गरीब आदिवासियों में उनकी पैठ के साथ-साथ उसके जनविरोधी स्वरूप को समझने के लिए स्व. पत्रकार प्रकाश कोलवणकर की यह मराठी किताब उपयोगी साबित होगी।
नक्सलली आंदोलन, उसके कार्यकर्ताओं की निष्ठा, संघर्षशीलता, गरीब आदिवासियों में उनकी पैठ के साथ-साथ उसके जनविरोधी स्वरूप को समझने के लिए स्व. पत्रकार प्रकाश कोलवणकर की यह मराठी किताब उपयोगी साबित होगी।
“सुमी, लौट आओ! अब मैं तुम्हें पलकों पर बिठा कर रखूंगा। पुलक, मेरे लाल- तुम दोनों के बिना मैं अधूरा हूं। ...समय के ताल में यादों के पत्थर डूब रहे हैं- गुड़ुप्, गुड़ुप् ...”
प्राचीन काल में मारीच और सुबाहू नाम के दैत्य सरदार अपनी राक्षसी सेना और महारानी ताड़का के साथ जंगल में रहते थे। जब कोई ऋषि मुनि, सन्यासी या कहें सनातन, वैदिक आर्य तप करता था, वे उसे तंग करते थे। कुछ सेक्युलर राजा, महाराजा उनके भी सहायक रहे होंगे, इसीलिए वे हिंदुत्व के पर्याय आर्य धर्म के सर्वनाश के लिए जंग करते थे।
‘निरीह’ मानवीय भावों के कुशल चितेरे, शब्दशिल्पी डॉ.दिनेश पाठक‘शशि’ का नव प्रकाशित कहानी संग्रह है। इस संग्रह में कुल बाईस कहानियां संग्रहीत हैं। ये सभी कहानियाँ आकाशवाणी से प्रसारण को ध्यान में रखते हुए रची गई हैं इसलिए इनका आकार, समय सीमा के अनुरूप है। इन कहानियों में ‘निरीह’ शीर्षित कहानी का क्रमांक दस है परन्तु कथा कृति की सभी कहानियों में कहीं न कहीं पात्र निरीहता की स्थिति में अवश्य द़ृष्टिगोचर होते हैं।
भारतीय सभ्यता लम्बे अरसे तक संघर्षों में फंसी रही, तो इसका एक कारण यह भी माना जाता है कि भारत ने सेमेटिक पंथो और भारतीय पंथों का कभी भी यथार्थ की खुरदुरी भूमि पर आकलन नहीं किया। हम अपनी उदात्तता का प्रक्षेपण अन्य पंथों पर करते रहे और उनके यथार्थ का सामना करने से अब भी बचते रहे हैं।
भरतमुनि ने नाट्यशास्त्र की नींव रखी और भगवान शिव अर्थात नटराज बन गए संपूर्ण भारतीय नृत्य के आराध्य दैवत। नटराज अर्थात नाट्य और उससे संबंधित कलाओं पर राज करने वाला, याने नटराज। नृत्यकला नाट्य के बिना अधूरी है और नाट्य नृत्यकला के बिना अधूरा है।
आप जो सुन रहे हैं उसकी तरंगें, उसके बोल, उसके वाद्यों की झंकारें अगर आपके मन मस्तिष्क तक नहीं पहुंचतीं और आपको आल्हादित नहीं करतीं तो आपका संगीत सुनना व्यर्थ होगा। अत: अच्छा संगीत सुनें, तानसेन ना सही पर कानसेन जरूर बनें।
ललित कला अकादमी के अध्यक्ष प्रसिद्ध शिल्पकार उत्तम पाचारणे नष्ट होती जा रहीं हमारी प्राचीन महान शिल्पकला के प्रति चिंतित हैं। इस धरोहर को बचाने के लिए प्राचीन शिल्पकला पर आधारित पाठ्यक्रम हमारी शिक्षा में शामिल किए जाने का उनका आग्रह है। इससे शिल्पकला को समाज का संरक्षण प्राप्त होगा और देश-दुनिया को भी इस कला के महान विश्वकर्मा मिलेंगे। हमारा स्वर्णयुग फिर लौट आएगा। उनसे कला क्षेत्र के विभिन्न पहलुओं पर हुई बातचीत के कुछ महत्वपूर्ण अंश प्रस्तुत हैं-
लौह पुरुष सरदार पटेल की विश्व की सबसे ऊंची प्रतिमा को देखना और उनके चरणों में शीश नवाना एक अद्भुत प्रसंग है। गुजरात सरकार ने देश-विदेश से आने वाले पर्यटकों के लिए बेहतरीन सुविधा उपलब्ध कराई है। जब से हमने मोबाइल में यू-ट्युब पर स्टैच्यू ऑफ यूनिटी की तसवीर…
चाहे बारिश कितना भी तूफान मचा दें; फिर भी बारिश का हर बरस इंतजार होता है। क्योंकि, बारिश है तो जीवन है। जीवन के विविध रंग है। प्यार-मुहब्बत, गीले-शिकवे, बचपन-यौवन, यहां तक कि बूढ़ापा भी बारिश है। देखिए, शायरों ने इसे इस अंदाज में अपनी शायरी में बांधा है कि दिल बाग-बाग-महाराजबाग हो जाता है।
डॉ. प्रमोद पाठक की हाल में प्रकाशित मराठी किताब ‘इस्लामी धर्मग्रंथांची ओळख’ (इस्लामी धर्मग्रंथों का परिचय) इस्लामी धर्मग्रंथों की जानकारी पाने के लिए उपयोगी प्रतीत होती है। इसमें आरंभ में ही पवित्र कुरान और हदीस (मुहम्मद पैगंबर की जीवनकथा और उनकी यादों का संकलन) में समाहित विविध विषयों का विस्तार से विवेचन, स्पष्टीकरण
जनजातीय विकास का रास्ता सुझाती ‘विश्व की जनजातियां’