बाधा बनते छद्म पर्यावरण आंदोलन

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छद्म पर्यावरण संगठनों की पूरी एक श्रृंखला है, जिन्हें समर्थक संस्थाओं के रूप में देशी-विदेशी औद्योगिक घरानों ने पाला-पोसा है। ऐसे संगठन हमारे आर्थिक विकास की गति को रोक रहे हैं। उन्हें खोजकर उन पर अंकुश लगाया जाना चाहिए।

पर्यावरण चेतना के लोकनायक

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पर्यावरण चेतना की समझ, नागरिकों को उनके कर्तव्यों का बोध कराती है तथा मार्गदर्शन करती है। पर्यावरण चेतना, इतिहास और पर्यावरण के लिए अनेक महानुभावों ने स्वयं को समर्पित कर दिया।

पर्यावरण की रक्षा और वैश्विक संस्थाएं

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पर्यावरण की रक्षा के लिए पूरे विश्व में विभिन्न सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाएं कार्यरत हैं। यह एक तरह से जनता का संयुक्त अभियान है। इसलिए कि आने वाली भयावह स्थिति से निपटने के लिए अभी से सार्थक कदम उठाना जरूरी है।

जनजाति के लिए प्रकृति ही धर्म है

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पश्चिमी सभ्यता की चकाचौंध में अपने देश की प्राचीन सभ्यता से कहीं भटकने का डर हमें अस्वस्थ कर रहा है। ऐसी स्थिति में केवल जनजाति समाज और उसकी आदर्श पर्यावरण पूरक जीवनशैली ही हमें फिर से अपने मूल मार्ग पर लाने के लिए सक्षम  है।

जलशुद्धिकरण का ब्रह्मास्त्र ’सी टेक’

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केवल जल का संरक्षण ही नहीं बल्कि उपयोग किए गए जल का शुद्धिकरण कर उसे पुनः प्रयोग में लाकर जल संकट को काफी हद तक कम किया जा सकता है। जल संकट पर मात करने के लिए ’सी टेक’ तकनीक ब्रह्मास्त्र साबित होगी।

डम्पिंग ग्राउंड बना कचरों का पहाड़

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भारत में कचरे की समस्या खतरनाक स्तर पर पहुंच गई है और इसे काबू में करना बहुत जरूरी है। वर्तमान समय में भारत के हर नगर में कचरे के अंबार देखे जा सकते हैं।

आबोहवा को क्या हो गया है?

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आबोहेवा का मिजाज बदल गया है और मौसम रूठ गए हैं। मनुष्य इसका दोषी है। जिस तेजी से हम जंगलों को काट कर हरियाली मिटा रहे हैं, जल, थल और आसमान में जहर भर रहे हैं, अपनी सदानीरा नदियों को प्रदूषित कर रहे हैं, उस सबका परिणाम है यह। नए भारत में इसे सुधारने के लिए हमें कदम उठाने होंगे।

प्लास्टिक प्रदूषण पर हो संगठित प्रहार

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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की दुनिया में ऐसे बहुत से आविष्कार किए गए, जो मनुष्य जीवन को सरल एवं बेहतर बनाने के उद्देश्य से किए गए लेकिन समय के साथ-साथ वही मानव जीवन के लिए एक बड़ा संकट बन गए।

तबाही और सवाल छोड़ गया है ‘फानी’

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चक्रवाती तूफानों के नाम रखने की भी एक दिलचस्प प्रक्रिया है। अलग-अलग देश तूफानों के नाम सुझा सकते हैं। बस शर्त यह होती है कि नाम छोटे, समझ में आने लायक और ऐसे हों जिन पर सांस्कृतिक रूप से कोई विवाद नहीं हो। फानी तूफान का नामकरण बांग्लादेश की ओर से किया गया है और बांग्ला में इसका उच्चारण फोनी होता है और इसका मतलब सांप है।

वृक्ष तपश्चर्या

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महाराष्ट्र के पश्चिमी घाट का महेन्द्र पर्वत वन क्षेत्र पौराणिक संदर्भों के अनुसार महर्षि परशुराम की  तपस्थली रहा था और उसके विकसित तथा संरक्षित करने का उन्होंने दीर्घकालीन कठिन कार्य किया था। इसको ही तत्कालीन समाज तपश्चर्या कहता था। हाल ही में सम्पन्न एक अपराध-अन्वेषण में यह स्पष्ट हुआ है…

मैं कटना नहीं चाहता…

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पेड़ सिसक कर कह रहा है, “ मनुष्य का अस्तित्व हमारे सह- अस्तित्व से ही है। अत: मुझ पर आश्रित पंछियों, कीटकों से लेकर मनुष्य तक के लिए मैं कटना नहीं चाहता...।” क्या आप हमारी बात सुनेंगे? अगर मैं आपसे पूछूं कि आज दुनिया में सब से तेज गति से…

वनों की आत्मकथा

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“आज जब मानव वन महोत्सव मनाता है, पर्यावरण दिवस मनाता है और वन्य जीवों को सुरक्षित रखने के अभियान चलाता है, तो हमें आशा की एक धुंधली किरण दिखाई देती है। हमें ऐसी अनुभूति होती है कि मनुष्य संभवतः सजग हो रहा है। कभी-कभी ऐसा भी लगता है कि वह…

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