भारत से इंडिया तक
शर्माजी कल बहुत दिनों बाद मिले। चेहरे का उत्साह ऐसा था मानो पूर्णिमा का चांद। मन बल्लियों से भी अधिक उछल रहा था। जैसे सावन की फुहार से सूखे ठूंठ में भी जान पड़ जाती है,
शर्माजी कल बहुत दिनों बाद मिले। चेहरे का उत्साह ऐसा था मानो पूर्णिमा का चांद। मन बल्लियों से भी अधिक उछल रहा था। जैसे सावन की फुहार से सूखे ठूंठ में भी जान पड़ जाती है,
यह बात विचारणीय है कि पिता के मरने पर यदि बेटे के सिर पर पगड़ी बांधी जाती है, तो सास के बाद उसकी बहू के सिर पर पल्लू क्यों नहीं रखा जाता? शर्माजी के गांव वालों ने एक रास्ता दिखाया है। इस पर विचार होना चाहिए।
“अपने देश में मुफ्तखोरी का फैशन बहुत चल निकला है। अर्थात यदि कोई चीज मुफ्त में मिल रही हो, तो फिर उसके लिए हाथ, जेब और झोली के साथ ही दिल भी बेरहम हो जाता है।”
लीजिए साहब, राष्ट्रपति चुनाव फिर आ गए| हमारे प्रिय शर्मा जी राष्ट्रपति को भारतीय लोकतंत्र की आन, बान और शान मानते हैं| इसलिए वे बड़ी उत्सुकता से इसकी प्रतीक्षा करते हैं|
‘कांग्रेस मुक्त भारत दल’ की संचालन समिति वाले कई बार वहां गए, पर राहुल बाबा से भेंट नहीं हुई। इससे उनका निश्चय और द़ृढ़ हो गया कि जब बाबा देश को ‘कांग्रेस से मुक्त’ कराने में इतनी रुचि ले रहे हैं, तो चाहे एक महीना लगे या एक साल, पर अध्यक्ष हम उन्हें ही बनाएंगे, किसी और को नहीं।
किसी राजनीतिक विश्लेषक ने कहा है कि दिल्ली का रास्ता लखनऊ से होकर जाता है; पर काफी समय से कांग्रेस के लिए लखनऊ के ही रास्ते बंद हैं। ऐसे में अपने बलबूते पर वह दिल्ली कैसे पहुंचे? जीवन-मरण जैसा यह बड़ा प्रश्न मैडम जी के सामने है। वे कई साल से कोशिश में हैं कि राहुल बाबा थोड़ा संभल जाएं और कुछ समझ जाएं; पर जो समझ जाए, वह पप्पू कैसा?
“कन्हैया जैसे नेता धूमकेतु की तरह होते हैं, जो कुछ समय तक आकाश में अपनी चमक बिखेर कर लुप्त हो जाते हैं। इसलिए लाल और नीले के मिलन के सपने देखना छोड़ कर उसे अपनी पढ़ाई और राजनीतिक भविष्य की चिंता करनी चाहिए।”
ब चपन में एक कहानी पढ़ी थी। एक व्यापारी औरअध्यापक यात्रा कर रहे थे। रास्ते में जंगल भी थे और सुनसान गांव भी। व्यापारी ने समय काटने के लिए अध्यापक से बात करनी चाही। उसने कहा कि एक बात के सौ रुपये लगेंगे। व्यापारी कहीं से अच्छे-खासे नोट कमाकर ला रहा था। जेब गरम होने के कारण उसने अध्यापक के हाथ पर सौ रुपये रख दिए।
किसी कवि ने लिखा है - दुनिया में आदमी को मुसीबत कहां नहीं वो कौन सी जमीं है जहां आसमां नहीं॥ न पंक्तियों पर अपनी अमूल्य टिप्पणी देने से पहले मैंयह कहना चाहूंगा कि मुसीबत और परेशानी के बीच एक छोटा सा अंतर है। कोई मुसीबत को भी परेशानी
भारतीय जीवन परंपरावादी है। हमारे ऋषि-मुनियों ने बहुत सोच-विचार कर, ज्ञान-विज्ञान और समय की कसौटी पर सौ प्रतिशत कस कर कुछ परंपराओं का निर्माण किया।
दो महीने के शोर और संघर्ष के बाद लोकसभा चुनाव के परिणाम आ गये हैं। दिल्ली में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में देशभक्तों की सशक्त सरकार बनने जा रही है।
दिल्ली में केजरी ‘आपा’ के नेतृत्व में ‘झाड़ू वाले हाथ’ की सरकार बनी, तो ‘मोदी रोको’ अभियान में लगे लोगों की बांछें खिल गयीं। राहुल बाबा की खुशी तो छिपाये नहीं छिप रही थी।