पूनम अगरवाल : चित्रों के बहाने रूपांतरण और आत्मपरीक्षण

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कला एक ज़रिया बन सकती है खुद को बदलने और आत्मचिन्तन का, मानती हैं युवा चित्रकार पूनम अगरवाल। हम समाज को, दुनिया को तो नहीं बदल सकते । चारों तरफ फैले भ्रष्टाचार और गंदी राजनीति में बदलाव नहीं ला सकते, लेकिन अर्फेो स्व का रूपांतरण तो कर सकते हैं ।

पर्यावरण और अविष्कार

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प्रकृति सबसे बड़ी निर्माता भी है और नवनिर्माता भी। निर्माण का यह खेल प्रत्येक क्षण खेला जाता है। इस दुनिया में अभी तक लाखों लोगों ने जन्म लिया है और हर सेकंड़ में लोग जन्म ले रहे हैं। परंतु कोई भी एक दूसरे जैसा नहीं है।

जलवायु परिवर्तन और हम

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‘जलवायु परिवर्तन’ आज पृथ्वी पर मंडराता हुआ सबसे गहरा संकट है; जिसके प्रति अधिकांश लोगों में पर्याप्त जागरूकता नहीं है। आइये जानते है जलवायु परिवर्तन को।

कोकण से अपार संभावनाएं

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समुद्र को पीछे हटाकर परशुराम ने कोकण, अपरांत की भूमि का निर्माण किया। कोकण को प्राकृतिक सौंदर्य का वरदान प्राप्त है। कोकण अगर पृथक देश होता तो संभवतः पूरे कोकण की अर्थव्यवस्था केवल पर्यटन पर ही आधारित होती।

पर्यावरण संरक्षण : भारतीय दृष्टिकोण

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पर्यावरण का संकट आज जब विश्व के सामने गहराता जा रहा है, तब विद्वज्जनों को उसकी चिन्ता सता रही है। यह चिन्ता सर्वव्यापी नहीं है और न सब गंभीरतापूर्वक इस विषय पर चिन्तन तथा विचारमंथन कर रहे हैं।

बलात्कार व कानूनी प्रावधान

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पिछले दिनों देश की राजधानी दिल्ली में, चलती बस में एक छात्रा के साथ हुए सामुहिक बलात्कार ने पूरे देश की सोयी हुई चेतना को झकझोर कर रख दिया। उक्त घटना इस लिए भी गंभीर हो गई क्योंकि अपराधी केवल बलात्कार करके समाधानी नहीं हुए बल्कि उस छात्रा और उसके साथी को निर्भय व आततायीपना से बड़े ही विभत्स रुप से मारापीटा था।

भगवान महावीर ने दी थी ग्लोबल वार्मिंग की चेतावनी

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जैन धर्म के सिद्धांत के अनुसार छठे आरा (काल) में सूर्य की किरणें अत्यंत उग्र हो जाने से अनाज की तंगी उत्पन्न होगी और जीने के लिए प्रजा को मांसाहार पर निर्भर रहना पड़ेगा। ग्लोबल वार्मिंग की चर्चा आजकल जीवन के हर क्षेत्र में हो रही है। ऐसा माना जा रहा है कि आधुनिक काल में मंहगाई और अनाज की जो समस्या उत्पन्न हुई है, वह भी ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव के कारण ही है।

विश्व सम्मेलनों से नहीं सुलझेगी पर्यावरण समस्या

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भौतिक उन्नति और भोगवादी प्रवृत्ति के कारण इस समय समूचा भूमण्डल पर्यावरण के संकट में घिर गया है। दुनिया भर के पर्यावरण शास्त्री, विशेषज्ञ, वैज्ञानिक और जनप्रतिनिधि जलवायु में हो रहे परिवर्तन से चिन्तित हैं। वैश्विक सम्मेलनों में विविध स्तरों पर इस संकट से निकलने की चर्चाएं हो रही हैं। किन्तु सबसे बड़ी विडम्बना यह है कि बड़े पैमाने पर पूरे विश्व को पर्यावरण संकट में डालने वाले धनी और सुविधाभोगी देश अपनी जिम्मेदारी से भाग रहे हैं।

दिल्ली की उस घटना के लिये फिल्में कितनी जिम्मेदार?

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दिल्ली में एक निरपराध युवतीने चलती बस में हुए सामूहिक बलात्कार की दुर्भाग्यपूर्ण घटना के बाद दम तो़ड़ दिया और सारा समाज व्यथित हो उठा। पूरे देश में इस भीषण कांड़ के बाद जोरदार प्रदर्शन हुए। इस पूरी घटना का काला साया 2012 के जाने और 2013 के आगमन पर भी रहा।

नफरत का सौदागर ओवैसी

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कल तक आंध्र के बाहर कोई उसे नहीं जानता था। आजकल वह फूरे देश में चर्चा का विषय बन गया है। ये चर्चाएं देश के बाहर भी होने लगी हैं। सीमाफार से उसे समर्थन भी मिल रहा है। जिस नफरत ने देश का विभाजन किया, उसी नफरत का वह सौदागर है। नफरत को राजनीति में घालमेल करने में वह माहिर है।

क्यो?

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.....और रात को 2.15 बजे उसने सिंगापुर के अस्पताल में दम तोड़ दिया....।21 दिसम्बर 2012 को सारे न्यूज चैनलों पर यही लाइन दिखाई दे रही थी। लोग उसकी आत्मा की शांति के लिये प्रार्थना कर रहे थे। देश में विभिन्न जगहों पर जमा भीड़ ने आंदोलन का रुप ले लिया था।

भारत की राष्ट्रीय पर्यावरण नीति

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भारत जैसे विविध स्वरूपों वाले समाज में आर्थिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक तथा पर्यावरणीय क्षेत्रों से सम्बन्धित अनेक चुनौतियां होती हैं। विकास के साथ-साथ ऐसे परिदृश्य उभरने लगते हैं, जिनके कारण स्थानीय पर्यावरण और जलवायु पर गम्भीर प्रभाव पड़ता है।

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