बर्मिंघम त्यागराज फेस्टिवल का औचित्य

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बर्मिंघम त्यागराज फेस्टिवल एक प्रसिद्ध उत्सव है, ऐसे ही क्लीवलैंड त्यागराज फेस्टिवल भी प्रसिद्ध है। इनके नाम में जो “त्यागराज” नजर आता है, उससे ये तो पता चलता है कि ये किसी भारतीय के नाम पर मनाये जाने वाले कोई आयोजन हैं। लेकिन आखिर ये हैं क्या? उत्तर भारत में…

“जिस पापी को गुण नहीं गोत्र प्यारा है, समझो उसने ही हमें यहां मारा है” राष्ट्रकवि दिनकर

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उठ मंदिर के दरवाजे से, जोर लगा खेतो में अपने। नेता नहीं, भुजा करती है, सत्य सदा जीवन के सपने।।   राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर वह कवि थे जिनकी कविताएं लोगों को जोश से भर देती थी। 23 सितंबर 1908 को बिहार के बेगूसराय में पैदा हुए रामधारी सिंह दिनकर को…

पंचर, कपलिंग और टाइमपास लोकतंत्र

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लोकतंत्र की क्या कहिए। कब पंचर हो जाए। कब तक स्टेपनी साथ दे। कब इंजिन सहमति दे जाए। कब कौन पत्ते फैंट दे। कब कौन तीन पत्ती शो कर दे। कब गुलाम और इक्का मिलकर बादशाह को पंचर कर दे। कब ताश की दुक्की ट्रंप बन जाए। चाय, अखबार और चैनलों में पसरे हुए जनता के दिन इस बहाने कितने लोकतांत्रिक ढंग से कट जाते हैं।

मानसून का आ जाना कोरोना में..

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“घर ही नहीं बाहर भी ये मौसम और ये दूरी सभी को अखर रही है.. कि कब कोरोना का सत्यानास जाए और पहले की तरह हम खूब खाए पियें और हुलसकर अपनों से गले मिलें, जिससे बारिश की बूंदों में प्रेम की फुहार मिलकर बरसे...”

हिंसक आंदोलन का लेखाजोखा

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नक्सलली आंदोलन, उसके कार्यकर्ताओं की निष्ठा, संघर्षशीलता, गरीब आदिवासियों में उनकी पैठ के साथ-साथ उसके जनविरोधी स्वरूप को समझने के लिए स्व. पत्रकार प्रकाश कोलवणकर की यह मराठी किताब उपयोगी साबित होगी।

एक दिन अचानक

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“सुमी, लौट आओ! अब मैं तुम्हें पलकों पर बिठा कर रखूंगा। पुलक, मेरे लाल- तुम दोनों के बिना मैं अधूरा हूं। ...समय के ताल में यादों के पत्थर डूब रहे हैं- गुड़ुप्, गुड़ुप् ...”

सर्वश्रेष्ठ दलाल

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प्राचीन काल में मारीच और सुबाहू नाम के दैत्य सरदार अपनी राक्षसी सेना और महारानी ताड़का के साथ जंगल में रहते थे। जब कोई ऋषि मुनि, सन्यासी या कहें सनातन, वैदिक आर्य तप करता था, वे उसे तंग करते थे। कुछ सेक्युलर राजा, महाराजा उनके भी सहायक रहे होंगे, इसीलिए वे हिंदुत्व के पर्याय आर्य धर्म के सर्वनाश के लिए जंग करते थे।

वर्तमान युग के मानव सम्बंधों का दर्पण

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‘निरीह’ मानवीय भावों के कुशल चितेरे, शब्दशिल्पी डॉ.दिनेश पाठक‘शशि’ का नव प्रकाशित कहानी संग्रह है। इस संग्रह में कुल बाईस कहानियां संग्रहीत हैं। ये सभी कहानियाँ आकाशवाणी से प्रसारण को ध्यान में रखते हुए रची गई हैं इसलिए इनका आकार, समय सीमा के अनुरूप है। इन कहानियों में ‘निरीह’ शीर्षित कहानी का क्रमांक दस है परन्तु कथा कृति की सभी कहानियों में कहीं न कहीं पात्र निरीहता की स्थिति में अवश्य द़ृष्टिगोचर होते हैं।

भारत बोध के संघर्ष में मोदी का आंकलन

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भारतीय सभ्यता लम्बे अरसे तक संघर्षों में फंसी रही, तो इसका एक कारण यह भी माना जाता है कि भारत ने सेमेटिक पंथो और भारतीय पंथों का कभी भी यथार्थ की खुरदुरी भूमि पर आकलन नहीं किया। हम अपनी उदात्तता का प्रक्षेपण अन्य पंथों पर करते रहे और उनके यथार्थ का सामना करने से अब भी बचते रहे हैं।

भारतीय नृत्य के आराध्य न ट रा ज

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भरतमुनि ने नाट्यशास्त्र की नींव रखी और भगवान शिव अर्थात नटराज बन गए संपूर्ण भारतीय नृत्य के आराध्य दैवत। नटराज अर्थात नाट्य और उससे संबंधित कलाओं पर राज करने वाला, याने नटराज। नृत्यकला नाट्य के बिना अधूरी है और नाट्य नृत्यकला के बिना अधूरा है।

तानसेन न सही कानसेन तो बनें

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आप जो सुन रहे हैं उसकी तरंगें, उसके बोल, उसके वाद्यों की झंकारें अगर आपके मन मस्तिष्क तक नहीं पहुंचतीं और आपको आल्हादित नहीं करतीं तो आपका संगीत सुनना व्यर्थ होगा। अत: अच्छा संगीत सुनें, तानसेन ना सही पर कानसेन जरूर बनें।

फिर लौट आएगा भारतीय शिल्पकला का स्वर्णयुग – उत्तम पाचारणे,

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ललित कला अकादमी के अध्यक्ष प्रसिद्ध शिल्पकार उत्तम पाचारणे नष्ट होती जा रहीं हमारी प्राचीन महान शिल्पकला के प्रति चिंतित हैं। इस धरोहर को बचाने के लिए प्राचीन शिल्पकला पर आधारित पाठ्यक्रम हमारी शिक्षा में शामिल किए जाने का उनका आग्रह है। इससे शिल्पकला को समाज का संरक्षण प्राप्त होगा और देश-दुनिया को भी इस कला के महान विश्वकर्मा मिलेंगे। हमारा स्वर्णयुग फिर लौट आएगा। उनसे कला क्षेत्र के विभिन्न पहलुओं पर हुई बातचीत के कुछ महत्वपूर्ण अंश प्रस्तुत हैं-

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