पलायन या प्रगति

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स्वतंत्र राज्य बनने से लेकर अब तक उत्तराखंड न तो अपने विकास की उचित दिशा का चयन कर पाया है और न ही गम्भीरतापूर्वक चिंतन। यदि उत्तराखंड-वासियों ने अपनी स्वार्थपरता से मुक्त होकर, यहां की भौगोलिक स्थितियों-परिस्थितियों पर विचार करके, इसके विकास के लिए व्यवहारिक योजनाएं-परियोजनाएं बनाई होतीं तो उत्तराखंड देश का आदर्श राज्य बन सकता था।

उत्तराखंड जन्मभूमि : मुंबई कर्मभूमि

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वर्षों से पहाड़ी लोगों की मेहनत और इमानदारी की दुनिया कायल रही है। महाराष्ट्र को हम पहाड़ी अपना ही समझते हैं, हमारे यहां बहुत से लोगों के पुरखे महाराष्ट्र से ही गये हैं। ये कथन हैं भारत विकास परिषद, कोंकण प्रांत के अध्यक्ष महेश शर्मा के।

हिमालय क्षेत्र में प्रकृति संरक्षण एवं आपदा प्रबंधन

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पहाड़ी क्षेत्रों में बादल का फटना एवं भूस्खलन एक साधारण घटना है, लेकिन केदारनाथ क्षेत्र में इतनी बड़ी आपदा पहली बार हुई है। इसी तरह से बादल का फटना, भूस्खलन, नदी की धारा बाधित होना, अल्पकालिक झील का निर्माण, झील का ध्वस्त होना एवं त्वरित बाढ़ का आना एवं अवसाद के अपवहित होने की घटना पर गंगोत्री हिमनदीय क्षेत्र में शोध अध्ययन किए गए हैं।

अनुदान बहुत हुआ अब श्रमदान करें

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महाराष्ट्र के वर्तमान मा. राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी उत्तराखंड के पूर्व मुख्य मंत्री भी रह चुके हैं। उत्तराखंड के गठन से उनकी सक्रीय राजनीति में अहम भूमिका रही है। उन्होंने उत्तराखंड के विकास के लिए कई योजनाएं बनाईं थीं। अब 21 वर्षों के उपरांत प्रदेश की प्रगति के संदर्भ में उन्होंने हिंदी विवेक से विशेष बातचीत की। प्रस्तुत हैं उसके कुछ प्रमुख अंश-

सवाल अभी जिंदा हैं

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निरंतर हो रहे पलायन को रोकने के लिये जरूरी था कि पहाड़ों में आधारभूत औद्योगिक ढांचा तैयार करते हुए रोजगारपरक उद्योग स्थापित किये जाते। स्वरोजगार की योजनाएं सही ढंग से ईमानदारी से लागू की जातीं। कौशल विकास योजनाओं पर बल देते हुए क्षेत्रीय आवश्यकताओं के अनुरूप कार्य योजना तैयार की जाती मगर ऐसा नहीं हुआ। नतीजा राज्य बनने के बाद एक ओर पहाड़ के गांव के गांव खाली होते चले गए और दूसरी ओर देहरादून, हल्द्वानी और हरिद्वार में बड़े पैमाने पर दूसरे राज्यों से भी पलायन कर लोग पहुंचने लगे।

शौर्य और बुध्दिमत्ता की प्रतीक उत्तराखंड की नारी

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समय की मांग है कि गांवों में रह रही अभावग्रस्त मातृशक्ति के हित में सरकार और समाजसेवियों द्वारा उसी ईमानदारी से पहल हो जैसी आजादी से पहले या उसके बाद के शुरुआती दौर में हो रही थी। परिस्थितियां थोड़ा भी अनुकूल हुईं तो पलायन के भयावह संकट पर भी काबू पाने का माद्दा रखती है उत्तराखंड की नारी। विषम आर्थिक और भौगोलिक परिस्थितियों ने यदि यहां नारी के जीने की राह मुश्किल की है तो उनसे लड़ने का हौसला भी दिया है।

बदलती पत्रकारिता

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नारायण दत्त तिवारी ने उत्तराखंड में न जाने कितने अनपढ़, गैर पेशेवरों को दो-दो पेजों के अखबार खुलवा दिए। तिवारी काल में लोग मुख्य मंत्री के पास गए और एक विशेष किस्म से उन्हें तृप्त कर मोटे-मोटे विज्ञापनों के आदेश जारी करवा लाए। बस यही दौर था जब उत्तराखंड में लोगों ने अखबारों को समाज के आईने के बजाय पैसे कमाने का जरिया समझ लिया।

उत्तराखंड का नशाबंदी आन्दोलन

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एक गांव में जहां पर अवैध मदिरा सर्वाधिक बनाई जाती थी, बहुगुणा ने एक पेड़ के नीचे बैठकर आमरण अनशन शुरू किया। यह अनशन उन्होंने ग्रामीण महिलाओं के आग्रह तथा इस आश्वासन पर समाप्त किया कि वे पुरुषों को न तो मदिरा बनाने देंगी और न ही पीने देंगी, यदि वे करेंगे तो वे घर का पूरा काम बन्द कर देंगी यहां तक कि भोजन भी नहीं बनाएंगी।

देश को पहाड़-सा सुरक्षा कवच

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कहते हैं पहाड़ पर चढ़ना हो तो झुकना पड़ता है। अकड़ के चलोगे तो गिर जाओगे। पहाड़ का पानी भी वैज्ञानिक भाषा में कठोर होता है। वहां चूल्हे पर पकने वाली दाल भी आसानी से नहीं गलती। ऐसे परिवेश में जन्मा व्यक्ति जन्म से सैनिक होता है। कुदरत की कठोरता उसे फौलादी बनाती है। उत्तराखंड वीर सैनिकों की खान कहलाता है तो कह सकते हैं इन वीर सैनिकों को कुदरत ने ही गढ़ा है।

देवभूमि उत्तराखंड में संघ विस्तार

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना 1925 में हुई। गत  नौ दशकों में संघ का कार्य भारत के साथ विश्व के सभी देशों तक अपना विस्तार कर चुका हैं। इनमे राष्ट्र कार्य से लेकर सेवा कार्यों तक के विभिन्न आयाम सक्रीय है। उत्तराखंड राज्य में 1940 से लेकर सात दशकों में संघ ने अपने विभिन्न आयामों के साथ राज्य के सर्व स्तरीय विकास में अपना योगदान दिया है।

उत्तराखंड में उच्चशिक्षा का परिद़ृष्य

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राज्य निर्माण के समय उत्तराखंड में मात्र 34 राजकीय स्नातक एवं स्नातकोत्तर महाविद्यालय थे। सहायता प्राप्त एवं निजी महाविद्यालयों की संख्या 60 के लगभग थी जिनमें अधिकांश संस्कृत की शिक्षा से सबंधित थे। राज्य में वर्ष 2000 से पूर्व तीन राजकीय, एक डीम्ड विश्वविद्याालय और दो राष्ट्रीय महत्व के उच्चशिक्षा संस्थान थे। पिछले 20 वर्षों में उत्तराखंड में विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों एवं अन्य उच्च शिक्षण संस्थानों में अभूतपूर्व संख्यात्मक वृद्धि हुई।

सरकार की जन कल्याणकारी योजनाएं

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बदलते परिवेश में राजनीतिक शुचिता व नैतिकता को नये सिरे से गढ़ा जा रहा है। जन कल्याणकारी योजनाओं की प्रमाणिकता व विश्वसनीयता अपेक्षाकृत बढ़ी हैं। घोटाले व भ्रष्टाचार जैसे शब्दों की पुनरावृत्ति पर अंकुश लगा है, जिससे आम लोगो ने राहत की सांस ली है। परिणामत: दुनियाभर के देशों में भारत की साख बढ़ी है।

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