परिधानों में दिखती परंपरा

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परिधानों में कुनबी सूती साड़ी,पानो भाजु से लेकर मिडी ड्रेस और रिज़ॉर्ट वियर तक यहां प्रचलित हैं। माना जाता है कि लाल-स़फेद रंग की कुनबी साड़ी केवल सुहागिनें ही पहनती हैं, जबकि हल्का बैंगनी रंग विधवाओं द्वारा पहना जाता है। वहीं मांडो का परिधान पानो भाजु विशिष्ट परिधान है। गोवा के लोकनृत्य मांडो को यही परिधान पहनकर किया जाता है।

सरकार आपके द्वार

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विकास का घोड़ा योजनाओं पर दौड़ा। जी हां गोवा के संदर्भ में यह पूरी तरह सटीक बैठती है। गोवा राज्य के विकास के लिए कई तरह की योजनाएं लागू की गई हैं। योजनाएं कागजों पर ही सीमित नहीं है बल्कि यह पूरी तरह से कार्यान्वित भी है। एमपीएलएडीएस हो, या फिर महिलाओं के लिए कल्याणकारी योजनाएं हों, मछुआरों की नावों का आधुनिकीकरण हो या फिर प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना या अन्य योजनाएं हों, सभी का लाभ लाभार्थियों को मिल रहा है। विकास की ताल पर सरकारी योजनाएं चल रही हैं।

सर्व समावेशी लोक कलाएं

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लोगों के समूह की भावनात्मक दुनिया की कलात्मक अभिव्यक्ति ही लोककला है। ऐसे लोकजीवन में अभी तक जी जान से संभाल कर रखी हुई संस्कृति खंडित होती जा रही है। बदलती हुई ग्राम व्यवस्था, पर्यावरण में होने वाले अकल्पनीय परिवर्तन, विघटित सामाजिक संरचना, घटते हुए जीवन मूल्य ऐसे अनेक कारण परिवर्तन के लिए जिम्मेदार हैं।

नवरसप्रधान नृत्य

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मनुष्य का सम्पूर्ण जीवन नवरसों की यात्रा है। इन नवरसों को नृत्य या अभिनय के माध्यम से प्रस्तुत करके दर्शकों का मनोरंजन करने के साथ-साथ उनमें भी इन रसों की उत्पत्ति की जाती है। नृत्य में ये कार्य विशिष्ट भाव-भंगिमाओं के माध्यम से किए जाते हैं। यह आलेख उन्हीं भाव-भंगिमाओं का संक्षेप में वर्णन कर रहा है।

नृत्य दिव्य कला है भावों की अभिव्यक्ति है

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नृत्य भावनाओं की वह अभिव्यक्ति हैं, जिसके लिए शब्दों की आवश्यकता नहीं होती। करने वाला और देखने वाला दोनों एक ही समय पर इस आनंद को महसूस कर सकते हैं। भारतीय संस्कृति में मुख्य रूप से शास्त्रीय नृत्य की आठ कलाएं हैं। इसके साथ विदेशों से आए नृत्य के कई प्रकार भारत में भी किए जाने लगे हैं। नृत्य चाहे कोई भी हो वह आनंद की अनुभूति करा कर आत्मा को आनंद विभोर करें, यही अंतिम लक्ष्य होता है। नृत्य के संदर्भ में इन्हीं विचारों का प्रस्तुतिकरण इस साक्षात्कार में किया गया हैं। प्रस्तुत है उसके प्रमुख अंश-

मल्टिटास्किंग में महिलाएं अव्वल!

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आज जिस गति से दुनिया दौड़ रही है वहां एक साथ कई काम करना बहुत आवश्यक हो गया है। दुनिया भर में हुए कई सर्वेक्षणों के अनुसार महिलाएं एक साथ कई काम करने में अर्थात मल्टीटास्किंग में पुरुषों की तुलना में अधिक माहिर होती हैं। इसके कारणों की मीमांसा करता आलेख-

हम करें शक्ति आराधन

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भारतीय संस्कृति में शक्ति के साथ आचरण की सम्पन्नता पर भी विशेष जोर दिया जाता है। इसीलिए भारतीय संस्कृति सम्पूर्ण विश्व में अनुपम एवं बेजोड़ है। वर्तमान भारत सम्पूर्ण विश्व को मानवता का पाठ पढ़ाने के लिए तैयार है तथा विश्वगुरु बनने की राह पर है।

सहमति से सेक्स विवाद और यथार्थ

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भारतीय कुटुंब एवं समाज व्यवस्था को ध्वस्त करने हेतु पश्चिमी सोच की भोगवृत्ति से प्रभावित कुछ मुट्ठीभर लोग ‘सहमति से सेक्स’ की आयु कम करने की मांग कर रहे हैं लेकिन इससे होनेवाले दुष्परिणाम के बारे में वे तनिक भी विचार नही कर रहे हैं। व्याभिचार की खुली छूट मिलने पर नाबालिग लड़कियों के साथ हिंसा, शोषण, यौन शोषण के मामलों में अत्यधिक बढ़ोत्तरी होगी।

पुरुषों की तरह न हो महिलाओं का उपचार

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एक धारणा बन गई है कि बिकिनी क्षेत्र के अलावा महिलाओं की बाकी बीमारियां पुरुषों की भांति ही होती हैं, जबकि उन बीमारियों के कारण दोनों में अलग-अलग होते हैं। इसलिए उनके इलाज की प्रक्रिया भी भिन्न होनी चाहिए।

राष्ट्र सेविका समिति की संस्थापिका लक्ष्मीबाई केळकर  

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भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भारत और पाकीस्तान के विभाजन का निर्णय हुआl महिलाओं पर हो रहे अत्याचार की तो कोई परिसीमा  ही नहीं थीl  सिंध प्रांत भारत से विभाजित होनेवाला थाl  वहाँ के माता बहनों की मौसीजी को बहुत चिंता थीl  इसी समय कराची से मा.जेठाबहेन के आये हुये भावनापुर्ण पत्र से मौसीजी आत्यंतिक व्यथित हो गयी और वेणुताई कळंबकर के साथ अत्यंत विपरित परिस्थिती में विमान से कराची गयीl  वहाँ पर तो पाकिस्तान का मदोन्मत्त स्वतंत्रता उत्सव मनाया जा रहा थाl ऐसे अत्यंत विकट परिस्थिती मे १२०० राष्ट्राभिमानी सेविकाओं का और मौसीजी का अनोखा राष्ट्रभावपूर्ण एकत्रिकरण हो रहा था! उस रात भगवे ध्वज को साक्षी रखकर अपने स्त्रीत्व की रक्षा करने की एवं भारतभू की सेवा आमरण करने की प्रतिज्ञा मौसीजी के सामने लीl  और विभाजन के बाद इन सभी सेविकाओं की भारत मे अनेक स्थानों पर रहने की व्यवस्था मौसीजी ने कीl विपरीत परिस्थिती मे संगठन का अत्याधिक महत्व होता है ये प्रतिपादीत करने के लिये वं. मौसीजी सेविकाओं को यह सिंध का हृदयस्पर्शी उदाहरण देती थीl

जिजामाता : स्वराज्य जननी कैसे बनी राजमाता

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अपनी गर्भावस्था में जीजाबाई शिवनेरी के दुर्ग में थीं । उन्होंने रामायण और महाभारत के युद्धों की कथाएँ सुनना आरंभ कीं । ताकि गर्भस्थ बालक पर वीरता के संस्कार पड़े। जीजाबाई ने महाभारत युद्ध के उन प्रसंगों को अधिक सुना जिनमें योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण की रणनीति से अर्जुन को सफलता मिली । अपनी पूरी गर्भावस्था के दौरान जीजाबाई रामायण और महाभारत युद्ध की घटनाओं के श्रवण, चिंतन और, मनन पर केंद्रित रही। समय के साथ 19 फरवरी 1630 को शिवाजी महाराज का जन्म हुआ। और उनके जीवन में यदि श्रीराम का आदर्श था तो युद्ध शैली योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण सी रणनीति भी ।

छत्रपति शिवाजी की निर्माता-वीरमाता जीजाबाई

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शिवाजी सदा मां भवानी की पूजा करते थे और अपनी मां के द्वारा मिली शिक्षा का निर्वहन करते रहे। शिवाजी की तलवार का नाम भी भवानी ही था। जीजाबाई ने शिवाजी को बचपन से ही महाभारत एवं रामायण की ऐसी कहानियां सुनाई जिनसे उन्हें अपने धर्म और अपने कर्म का ज्ञान हुआ । जीजाबाई ने अपने पुत्र शिवाजी को ऐेसे संस्कार दिए कि उन्होंने हिन्दवी साम्राज्य को स्थापित करने में सफलता प्राप्त की। माता जीजाबाई के कारण ही शिवाजी को “छत्रपति शिवाजी महाराज” बने।

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