भारत के वस्त्रोद्योग का भविष्य

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कोविड-19 की स्थिति में फेस मास्क और पीपीई कवरऑल जैसे बुनियादी उत्पादों के लिए भारत को स्थानीय मांगों को पूरा करने में संघर्ष करना पड़ा। अन्य देश जैसे वियतनाम, मलेशिया और इंडोनेशिया जो तकनीकी वस्त्रों के लिए ज्यादा जाने नहीं जाते हैं, इन मेडिकल डिस्पोजबल्स की आपूर्ति करके बड़ी मात्रा में यूएसडी राजस्व पैदा कर रहे हैं। निर्यात प्रतिबंधों में हालिया बदलाव के साथ, भारत ने भारी संख्या में पीपीई किट का निर्यात करना शुरू कर दिया है।

भारतीय वस्त्र उद्योग और निवेश के अवसर

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भारतीय निर्मित वस्त्र और हस्तशिल्प कई देशों को निर्यात किए जाते हैं। निर्यात के लिए अमेरिका प्राथमिक बाजार है, लेकिन देशों की कुल संख्या 100 तक है। निर्यात में 41% हिस्सेदारी के साथ रेडीमेड वस्त्र सबसे बड़ा खंड है। कपड़ा मंत्रालय के रिकॉर्ड के अनुसार, भारत ने पिछले साल की तुलना में 7% की वृद्धि के साथ 17 बिलियन अमेरिकी डॉलर का कपड़ा निर्यात किया।

भाग्य विधाता

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अस्मिता ने सीतापुर की जिलाधिकारी के रूप में पहली बार जिलाधिकारी कार्यालय में कदम रखा। उस दिन वह अपने तेजस्वी व्यक्तित्व और इकहरे बदन पर उजले लिबास में जैसे कोई देवकन्या लग रही थी। सीतापुर से स्थानांतरित हुए जिलाधिकारी श्री अवधेश पचौरी ने उसका स्वागत करते हुए सभी से उसका परिचय कराया तो सभी अधीनस्थ कर्मचारियों ने उसे सैल्यूट किया।

कपड़ा उद्योग जैसा नहीं है दूसरा कोई उद्योग- महेश पाटोदिया एम.डी., पाटोदिया विविंग मिल्स प्रा. लि.

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केंद्र सरकार और राज्य सरकार की जो योजना है वैसी योजनाएं पहले कभी नहीं बनी। इतनी बढ़िया योजनाएं सरकार ला रही है मगर उसे अमल में लाने में अड़चन आ रही है। सरकार ने अनेक प्रकार की सहुलियते देकर अपना काम कर दिया है। उद्योग-व्यापार को बढ़ावा देने के लिए सब्सिडी, इलेक्ट्रिसिटी, निर्यात में सुविधाएं, ब्याज दर में कमी आदि सरकार की तरफ से ठोस पहल की गई है लेकिन सरकारी बाबूओं की ओर से बहुत तकलीफ है, इसका समाधान होना चाहिए।

भारतीय वस्त्र परंपरा का भविष्य बहुत उज्ज्वल है – विकास खेतान (संचालक, नीलकंठ फैब्रिक्स)

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विश्व में बहुत से विकासशील देश है या विकासशील देश बनने की कतार में हैं, उनके पास फैब्रिक्स मैन्युफैक्चरिंग की सुविधाएं नहीं है। विकसित देशों में मूल्य इतना अधिक होता है कि वह बाहर से आयात करना पसंद करते है। हमारे यहां टेक्सटाइल इंडस्ट्रीज जो इतनी प्रगति कर रही है उसके पास बहुत ही अच्छा मौका है। वह अपने आपको निर्यात करने के काबिल बनाए तो बहुत आगे बढ़ सकती है।

भारतीय कपड़ा बाजार देशी से ग्लोबल

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भारत में आज भी जब कोई किसी दूसरे राज्य में पर्यटन के लिए जाता है तो उस यात्रा के स्मरण के रूप में वहां का कोई विशिष्ट व्यंजन और विशिष्ट कपड़ा जरूर लाता है। आप कश्मीर जाकर पश्मीना शॉल लिए बिना वापस नहीं आ सकते। इसलिए पर्यटन स्थलों पर भी बाजारों को विशिष्ट पद्धति से बसाया जाने लगा।

धर्म तथा युगधर्म

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हम भारतीय उपभोक्ता जब इस दीपावली की खरीदी के लिए बाजार जाएंगे तो इस चिंतन के साथ स्थिति की गंभीरता पर गौर करें कि आपकी दीवाली की ठेठ पुराने समय से चली आ रही और आज के दौर में नई जन्मी दीपावली की आवश्यकताओं को चीनी औद्योगिक तंत्र ने किस प्रकार से समझ बूझकर आपकी हर जरुरत पर कब्जा जमा लिया है।  दिये, झालर, पटाखे, खिलौने, मोमबत्तियां, लाइटिंग, लक्ष्मी जी की मूर्तियां आदि से लेकर त्यौहारी कपड़ों तक सभी कुछ चीन हमारे बाजारों में उतार चुका है और हम इन्हें खरीद-खरीद कर शनैः शनैः एक नई आर्थिक गुलामी की ओर बढ़ रहे हैं।

फिल्मी वेशभूषा भानुमति का पिटारा

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काफी लंंबे अरसे तक फिल्म निर्माण में वस्त्रों के चयन की जिम्मेदारी निर्देशक की हुआ करती थी, किंतु समय के साथ इसमें भी बदलाव आया और सत्तर के दशक में बाकायदा वस्त्र विशेषज्ञ का प्रवेश हुआ। इसे कास्ट्यूम डिजाइनर के तौर पर जाना गया।

विश्व बाजार में उभरता भारतीय वस्त्र उद्योग

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सकारात्मक संकेत यह है कि मौजूदा सरकार वस्त्रोद्योग क्षेत्र में ढांचागत सुधार कर इसे फिर से पटरी पर लाकर तेज गति देने की दिशा में प्रयास कर रही है। ’मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम के माध्यम से भारत को निर्माण तथा निर्यात का हब बनाने का अभियान चल ही रहा है।

वस्त्र कामगारों के लिए कल्याणकारी योजनाएं

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वस्त्र मंत्रालय समय-समय पर वस्त्र कामगारों को लाभान्वित करने वाली योजनाओं की निगरानी करता रहता है। कामगार और उनके लिए बनाई गई विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं की लगातार बेहतरी मंत्रालय की सर्वोच्च प्राथमिकता है। केंद्र सरकार ने वस्त्र उद्योग से हर क्षेत्र में ऐसी योजनाएं शुरू की हैं। 

भारतीय वस्त्र परंपरा में औद्योगिक हस्तक्षेप

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यह हमारा अज्ञान एवं भ्रम है कि विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में पश्चिम अग्रणी देशों में आते हैं, जबकि हकीकत यह थी कि हम पश्चिम में खासतौर से ब्रिटेन से बहुत आगे थे। जब ब्रिटेन हमारे कपड़ा उद्योग पर अतिक्रमण कर रहा था, तब हमारे यहां 2400 और 2500 काउंट के महीन धागे बनाने में जुलाहे निपुण थे, केवल एक ग्रेन में 29 गज लंबे धागे हमारे कारीगर बना लिया करते थे।

खादी: ग्रामोद्योग से वैश्विक उद्योग

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आज खादी देश से निकलकर दुनिया के बाजार में छाने को तैयार है। खादी को वैश्विक स्तर पर उभारने को लेकर सरकार प्रयासरत है। भारत सरकार ने खादी कपड़ों की गुणवत्ता को बेहतर बनाने के लिये ‘जीरो डिफेक्ट, जीरो इफेक्ट योजना’ को शुरू किया है। इससे खादी उत्पादों को वैश्विक मानकों के अनुरूप बनाने में मदद मिलेगी। सरकार खादी को एक नए रूप में पेश करने की योजना बना रही है।

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