रियल से रील पर
इतिहास को तोड़-मरोड़ कर पेश करने का वक्त अब जा चुका है। अब वक्त उसे ठीक करने का है। इसमें दर्शक वर्ग की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाती है। यदि वे अच्छे कंटेंट को अपना समर्थन देंगे तो उसी तरह का कंटेंट बनाने के लिए फिल्मकार मजबूर होंगे। आज का दर्शक जागरूक है। अब वे किसी बात को ऐसे ही स्वीकार नहीं करता है। ये बात ‘शेरशाह’ को मिली सफलता और ‘भुज द प्राइड‘ को मिली असफलता से सिद्ध हो जाती है। वहीं जिस तरह से ‘द एम्पायर’ का विरोध हो रहा है, उससे आगे की कड़ियों को बनाने से पहले निर्माताओं को अवश्य सोचना पड़ेगा।