पहले सेहत, फिर काम
घर और दफ्तर की जिम्मेदारियां संभालती कामकाजी महिलाएं, कई बार खुद के प्रति जिम्मेदारी को गंभीरता से नहीं लेतीं। चूंकि आप पर दोहरी जिम्मेदारी होती है, इसलिए आपको अपनी सेहत के प्रति अधिक गंभीर और सचेत होना चाहिए।
घर और दफ्तर की जिम्मेदारियां संभालती कामकाजी महिलाएं, कई बार खुद के प्रति जिम्मेदारी को गंभीरता से नहीं लेतीं। चूंकि आप पर दोहरी जिम्मेदारी होती है, इसलिए आपको अपनी सेहत के प्रति अधिक गंभीर और सचेत होना चाहिए।
नियमित रूप से आसन और प्राणायाम का अभ्यास करके लोगों को उच्च रक्तचाप एवं हृदय संबंधी समस्याओं से छुटकारा दिलाया जा सकता है। व्यक्ति अपने फेफड़ों की क्षमता विकसित कर सकता है, मानव शरीर को शुद्ध और श्वसन प्रणाली एवं तंत्रिकाओं को भी साफ किया जा सकता है।
योग का संबंध अपने मन से है। पंच महाभूतों से बना शरीर यही ज्ञान देता है कि पंचतत्वों का सात्विक या तामसी स्वरूप मनुष्य की मानसिक अवस्था का दार्शनिक रूप है। सामान्य मानव को शरीर और मन की सुप्त शक्ति का अंदाजा नहीं होता। योग साधक अपनी अखंड योग साधना से इन सुप्त शक्तियों को जागृत करता है।
अंग्रेजी एजुकेशन सिस्टम हमें गिटिर-पिटिर अंग्रेजी बोलनवाले ग्रेजुएट देगी, जो चाय कीदुकानों पर जॉबलेस रह कर सिर्फ देश की बदहाली पर चर्चा करते मिलेंगे। वास्तविकता के धरातल पर वह देशहित में योगदान देने में असमर्थ होंगे। आज हम उसी दौर में शामिल हो गए हैं।
फैशन शब्द पढ़ने या सुनने में जितना आसान प्रतीत हो रहा है, वास्तव में यह उतना आसान है नहीं। ’फैशन साइकोलॉजी’ का दायरा कपड़े और मेकअप से ज्यादा विस्तृत है।
चक्रवाती तूफानों के नाम रखने की भी एक दिलचस्प प्रक्रिया है। अलग-अलग देश तूफानों के नाम सुझा सकते हैं। बस शर्त यह होती है कि नाम छोटे, समझ में आने लायक और ऐसे हों जिन पर सांस्कृतिक रूप से कोई विवाद नहीं हो। फानी तूफान का नामकरण बांग्लादेश की ओर से किया गया है और बांग्ला में इसका उच्चारण फोनी होता है और इसका मतलब सांप है।
यदि देश में, समाज में समृद्धि, संपन्नता आती है, आर्थिक विकास और टेक्नॉलजी के प्रभाव से समाज के रहन-सहन के स्तर में बढ़ोत्तरी होती हैं और उसके फलस्वरूप में समाज में मर्यादाओं, परंपराओं तथा मूल्यों का स्खलन होता है, तो क्या समाज विकास न करें, हमेशा मानवीय मूल्यों की कीमत पर स्वयं को परंपराओं की सीमा में कैद रखें?
बच्चे एक गीली मिट्टी के समान हैं। उनका प्रारूप हमारी परवरिश तय करती है। अत: एक सशक्त समृद्ध राष्ट्र के निर्माण के लिए बच्चों का सर्वमुखी विकास बेहद जरूरी है।
आज समाज को यह निर्णय लेना अत्यंत आवश्यक है कि वे बच्चों को अंकों और कृत्रिम सुख सुविधाओं के पीछे भागने वाली मशीन बनाना चाहता है या भावनाओं से ओतप्रोत आत्मशांति से युक्त संवेदनशील और सफल इंसानबनाना चाहता है।
पश्चिम बंगाल ही हिंसा और बवाल की त्रासदी झेल रहा है। लोकतंत्र को खून से सींचने वाले राजनेताओं को सत्ता मिल जाती है, लेकिन हिंसा की भेंट चढ़ने वाले उस आम आदमी को क्या मिलता है?
श्रीलंका में हुए शृंखलाबद्ध विस्फोट स्थानीय आतंकवादी गुटों की सहायता से ‘इसिस’ ने करवाए थे, यह बात साफ हो चुकी है। मध्यपूर्व में पराजित होते ‘इस्लामिक स्टेट’ ने अब एशिया पर नजर रखी है। उनकी राडार पर भारत भी है। इसलिए हमें बेहद सतर्क रहना होगा।
सुप्रीम कोर्ट के इन वर्षों में कई विवादास्पद फैसलें आए हैं। कुछेक को भेदभावपूर्ण माना जाता है। जलिकुट्टु, सबरीमाला, दहीहांडी, दीवाली पर पटाखे पर पाबंदी आदि ऐसे फैसले हैं जिन्हें समाज ने कभी स्वीकार नहीं किया। इससे निष्पक्ष न्याय-व्यवस्था पर ही प्रश्नचिह्न खड़ा होता है।