संघ एवं मंदिरों का सेवा कार्य

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ये ऐसे लोग हैं जिन्हें मंदिरों में चढ़ावे तो दिखाई पड़ते हैं परन्तु सामाजिक और प्राकृतिक विपदाओं के समय जिस तरह से मंदिरों की ओर से आर्थिक और सामुदायिक सेवा की जाती है वह दिखाई नहीं देती। हमारे यहां मंदिरों को केवल धार्मिक स्थल के रूप में ही नहीं विकसित किया गया है बल्कि वहां नर और नारायण दोनों की सेवा की बातें की जाती हैं।

आपदा में अवसर खोजते मुनाफाखोर

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नकारात्मकता को प्रसारित करने से भी कोविड संकट में लोगों की जान जा रही है। बेहतर होगा कि सरकार की आलोचनाओं से अपना ध्यान हटाकर हमारे मीडिया समूह कालाबाजारी और जमाखोरी करने वाले चेहरों को लक्षित करके बेनकाब करें। एक माहौल इन तत्वों के विरुद्ध खड़ा किया जाए।

वैक्सीनेशन की सुस्त रफ़्तार

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इस परिस्थिति से कैसे निपटा जाये और इसका सबसे सटीक जवाब है सभी का जल्द से जल्द वैक्सीनेशन लेकिन वर्तमान हालत को देखते हुए देश में टीकाकरण की प्रगति संतोषजनक नहीं है, कई राज्यों में वैक्सीन की कमी हैं। कोरोना को रोकने के लिए वैक्सीनेशन है सबसे बड़ा हथियार, लेकिन वैक्सीन की किल्लत चुनौती बन गई है।

जटिल समस्या फलस्तीन-इजराइल संघर्ष

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अमेरिका के पिछले राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने यरूशलम को इजराइल की राजधानी बनाने का खुला समर्थन किया था। उन्होंने यह भी कहा था कि हम अपने दूतावास को यरूशलम में स्थानांतरित करेंगे। हालांकि जो बाइडेन का वर्तमान प्रशासन उस हद तक इजराइल का समर्थक नहीं है, पर सं.रा. सुरक्षा परिषद में जरूरी हुआ, तो उसके हितों की रक्षा करेगा।

सावरकर के कालजयी विचार

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कभी ‘धर्मनिरपेक्षता’के नाम पर हिंदुत्व को सांप्रदायिक करार देने वाले, आज मंदिरों में जाकर माथा नवा रहे हैं। राजनीतिक दलों में स्वयं को अधिक से अधिक हिंदुत्वनिष्ठ सिद्ध करने की होड़ है। ऐसे में स्वातंत्र्यवीर विनायक दामोदर सावरकर का स्मरण आवश्यक है।

क्या बाबा साहब ने चाहा था कभी, ऐसा आम्बेडकरवाद

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आज खुद को आम्बेडकरवादी कहने वाले हिंसा, दंगे और फसाद में शामिल होकर बाबा साहब के विचार को लांछित कर रहे हैं। आर्मी बनाने वाले अथवा जाति के नाम पर देश में नफरत की खेती करने वाले बाबा साहब की परंपरा के उत्तराधिकारी नहीं हो सकते। जिसके जीवन में ‘बुद्ध’ हो और चिन्तन में भारत, सच्चे अर्थो में बाबा साहब के विचारों का उत्तराधिकारी वही होगा।

धूप-छाँव

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नवीन, कलकत्ता से फोन पर तो बहुत मीठी-मीठी बातें करता पर जब एक-दो हफ्ते के अवकाश पर घर आता तो प्यार की सारी बातें भूल कर बात-बात पर विनीता से झल्ला उठता था, उसे डाँट देता। विनीता उसका मुँह ताकते रह जाती। ये क्या हो गया कलकत्ता जाकर इन्हें? और फिर वह अपने दुर्भाग्य को कोसने लगती। कभी-कभी तो नवीन के साथ इतनी झड़प हो जाती कि वह जीवन से विरल हो उठती। यहाँ तक कि कभी-कभी तो वह आत्महत्या कर लेने तक की सोच बैठती।

चीन की चालाकी: अरुणाचल के करीब तैयार किया हाईवे, 6 हजार मीटर गहरी घाटी पर बनाया पुल

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भारत के दोनों पड़ोसी देश पाकिस्तान और चीन हमेशा शांति भंग करने की कोशिश में लगे रहते है। पाकिस्तान की तरफ से आतंकी गतिविधियों को अंजाम दिया जाता रहता है जबकि चीन सीमा के करीब कुछ ना कुछ विवादित कार्य कर शांति भंग करता है। भारत और चीन के बीच…

एक थी प्रगति

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नारी के बारे अश्लील लिखा तो वो सच्चा नारी विमर्श और कहीं नारी शालीनता के साथ कर्तव्यपरायण हो गई तो वो दकियानूस, पिछड़ी, मानों विमर्श ने नारियों का ठेका इन प्रगतिशीलों को, वादियों को दे रखा हो। और, दलित विमर्श की तो बात ही मत पूछो इस शब्द को तो इतना आइसोलेट किया कि एक छोटे से खाने में कैद हो गया।

कोरोना की गंभीरता को समझें

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हमें कोरोना के बाद की तक़ली़फें मंजूर है, लेकिन, सावधानी मंजूर नहीं है। 15 दिन क्वारेंटाईन में रहना....अस्पताल में अकेलेपन की घुटन...और कोरोना से ज़िंदगी और मौत की जंग लड़ना.... कभी कोरोना हारता है, कभी इंसान। एक को तो हारना ही पड़ता है। हमें सरकार पर निर्भरता छोड़नी होगी।

सावधानी ही बचाएगी कोरोना से जान

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हम सभी लॉकडाउन के दंश से उत्पन्न सामाजिक आर्थिक एवं स्वास्थ्य संबंधी कठिनाइयों से भली भांति परिचित हैं। देश-प्रदेश में लॉकडाउन की स्थिति दोबारा ना उत्पन्न हो, इसके लिए हमें कोविड-19 से बचने के लिए सभी संभव तरीके अपनाने होंगें।

कोरोना की विध्वंसक लहर

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शर्मनाक तो ऑक्सीजन जैसी सामान्य सुविधा का अकाल पड़ना है। बिस्तरों की उपलब्धता, चिकित्सा स्टाफ को सही प्रशिक्षण और उन्हें इस तनाव के हालात में बेहतर सेवा देने लायक सुविधाएं देने में हम नाकाम रहे। ज़ाहिर है कि हमारा चिकित्सा तानाबाना इस समय बेदम हो कर गिर रहा है।

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