महावीर ने समाज में संस्कारों का किया बीजारोपण – नम्रमुनि महाराज

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तीर्थंकर जैसे महापुरुषों और माता-पिता के जो उपकार भूल जाता है उसका पतन होना तय है और जो स्मरण रखता है वह उन्नति के पथ पर आगे बढ़ता है. सम्पत्ति नहीं, अपितु संस्कार श्रेष्ठ है. जब पूरी दुनिया भौतिकता की ओर भाग रही थी तब महावीर ने अपना राजपथ छोड़कर त्याग का महत्व बताया और अपने शुद्ध आचरण एवं आदर्श से समाज में पुन: संस्कारों का बीजारोपण किया. यह उद्बोधन हिंदी विवेक प्रकाशित ‘तीर्थंकर भगवान महावीर’ विशेषांक के विमोचन समारोह के दौरान राष्ट्रसंत परम गुरुदेव नम्रमुनि महाराज साहेब ने दिया.

मानवता की साकार मूर्ति महावीर स्वामी

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महावीर स्वामी ने 12 वर्ष तक मौन साधना , तपस्या की और तरह-तरह की कष्ट झेले अंत में उन्हें कैवल्य (ज्ञान) प्राप्त हुआ । कैवल्य ज्ञान प्राप्त होने के बाद महावीर ने जन कल्याण के लिए उपदेश देना शुरू किया । वह अर्धमगधी भाषा में भी उपदेश करने लगे ताकि जनता उसे भली-भांति समझ सके । महावीर ने अपने प्रवचनों में अहिंसा ,सत्य ,असते, ब्रह्मचर्य और परिग्रह पर सबसे अधिक जोर दिया । त्याग और संयम प्रेम और करुणा सील और सदाचार ही उनके प्रवचनों का सार था । महावीर स्वामी ने श्रमण और श्रमणी,श्रावक और श्राविका सबको लेकर चतुर्विद् संघ की स्थापना की उन्होंने कहा जो जिस अधिकार का हो वह उसी वर्ग में आकर सम्यकतत्त्व पाने के लिए आगे बढ़े ।जीवन का लक्ष्य शांति पाना है। धीरे-धीरे देश के भिन्न-भिन्न भागों में घूम कर महावीर स्वामी ने अपना पवित्र संदेश फैलाया ,महावीर स्वामी ने 72 वर्ष की अवस्था में ईसा पूर्व 527 में पावापुरी( बिहार) में कार्तिक (अश्वनी) कृष्ण अमावस्या को निर्वाण प्राप्त किया। इनके निवार्ण दिवस पर जैन धर्म के अनुयाई घर-घर दीपक जला कर दीपावली मनाते है।

हिंदी विवेक प्रकाशित ‘तीर्थंकर भगवान महावीर’ विशेषांक का पुणे में विमोचन

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भगवान महावीर के २५५० वें निर्वाण वर्ष के उपलक्ष्य में हिंदी विवेक मासिक पत्रिका द्वारा प्रकाशित ‘तीर्थंकर भगवान महावीर’ विशेषांक का पुणे में विमोचन समारोह संपन्न हुआ. जैन तपस्वी उपाध्याय प. पू. प्रवीण ऋषि जी महाराज और रा. स्व. संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर जी के करकमलों द्वारा विशेषांक का विमोचन किया गया. इस दौरान मंच पर हिंदुस्थान प्रकाशन संस्था के अध्यक्ष पद्मश्री रमेश पतंगे, हिंदी विवेक मासिक पत्रिका के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अमोल पेडणेकर, हिंदी विवेक की कार्यकारी सम्पादक पल्लवी अनवेकर, सुहाना प्रवीण मसालेवाले के डायरेक्टर विशालकुमार राजकुमार चोरडिया, पोपटलाल ओसवाल एवं राजेंद्र बाठिया उपस्थित थे.

‘हिंदू’सूत्र से जुड़ा है हमारा समाज – डॉ. मोहन भागवत

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एक आक्रमण होने के बाद हम सावधान हो गए, ऐसा नहीं हुआ. पिछले २ हजार वर्षों में बारम्बार कोई न कोई आता है और हमें गुलाम बनाता है. हर बार हमने वहीँ गलती की. हर बार कोई घरभेदी (गद्दार) ही धोखा देता आया है, यह रोग हमारे मूल में है. इसका निदान हुए बिना देश सुरक्षित नहीं रह सकता. हम कौन और हमारे कौन? इस सम्बंध में देश में ज्ञान का अभाव है. ‘हिंदू’ सूत्र के आधार पर हम जुड़े हुए है. अपने धर्म-संस्कृति पर अडिग रहकर श्रेष्ठ आचरण करने पर अपनी चुनौतियों से पार पाते हुए हम विश्व को भी मार्ग दिखा सकते है. यह वक्तव्य पू. सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने साप्ताहिक विवेक द्वारा प्रकाशित ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ – हिंदू राष्ट्र के जीवन उद्देश्य की क्रमबद्ध अभिव्यक्ति’ नामक ग्रंथ के विमोचन समारोह के दौरान दिया.

स्वामी स्मरणानन्द जी का जीवन प्रेरणास्त्रोत – नरेंद्र मोदी

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भारत की विकास यात्रा के अनेक बिंदुओं पर, हमारी मातृभूमि को स्वामी आत्मास्थानंद जी, स्वामी स्मरणानंद जी जैसे अनेक संत महात्माओं का आशीर्वाद मिला है जिन्होंने हमें सामाजिक परिवर्तन की नई चेतना दी है। इन संतों ने हमें एक साथ होकर समाज के हित के लिए काम करने की दीक्षा दी है। ये सिद्धांत अब तक शाश्वत हैं और आने वाले कालखंड में यही विचार विकसित भारत और अमृत काल की संकल्प शक्ति बनेंगे।मैं एक बार फिर, पूरे देश की ओर से ऐसी संत आत्माओं को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं। मुझे विश्वास है कि रामकृष्ण मिशन से जुड़े सभी लोग उनके दिखाए मार्ग को और प्रशस्त करेंगे। ओम शांति।

विकसित भारत में महिलाओं की भूमिका

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देश की आधी जनसंख्या कही जानेवाली महिलाएं यदि घरेलु कार्यों के साथ ही उद्योग, व्यवसाय, स्वयं रोजगार आदि क्षेत्रों में सक्रिय भूमिका निभाने लगे तो विकसित भारत का सपना जल्द साकार हो जाएगा। आवश्यकता बस इतनी है कि उनके शक्ति सामर्थ्य और क्षमता के अनुरुप अवसर, प्रशिक्षण और मार्गदर्शन दिया जाए।

राम मंदिर से बढ़ती समृद्धि और समरसता

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500 वर्षों की प्रतीक्षा के बाद हुए राम मंदिर के पुनर्निर्माण ने न केवल भारतीय समाज की सांस्कृतिक और धार्मिक आधारशिला को मजबूत किया है बल्कि उसकी प्राण प्रतिष्ठा ने सम्पूर्ण देश में अभूतपूर्व समृद्धि और समरसता का मार्ग प्रशस्त किया है। आज पुनर्निर्मित भव्य राम मंदिर न केवल धार्मिक या ऐतिहासिक संदर्भ में महत्वपूर्ण बन गया है, बल्कि यह समृद्धि, समरसता और एकता के प्रतीक के रूप में भी स्थापित हो गया है।

अयोध्या और अबुधाबी का शांति संदेश- मधुभाई कुलकर्णी

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भारत के अयोध्या और अरब के अबुधाबी में सर्वधर्म समभाव एवं सहिष्णुता के प्रतीक बने हिंदू मंदिर पूरी दुनिया को ‘एकं सत् विप्रा: बहुधा वदन्ति’ और ‘वसुधैव कुटुंबकम’ का संदेश दे रहे हैं। यदि मजहबी टकराव, कट्टरता, आतंकवाद, हिंसा और युध्द से बचना है तो सनातन संस्कृति में निहित सहअस्तित्व के  विचारों को आत्मसात करना ही होगा।

 वोक कल्चर भारतीय संस्कृति पर आक्रमण

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किसी भी देश की अपनी एक विचारधारा होती है अपनी एक संस्कृति होती है, लेकिन जब इस पर वोक कल्चर हावी होने लगे तो संस्कृति दरकने लगती है। वोकिज्म की अजगरी बांहों में युवा पीढ़ी समाने लगी है और उनकी विचारधारा भी विषाक्त होने लगी है। अब वे ‘हेलोवीन’ पार्टी मना रही है। ‘वोक’ संस्कृति की आड़ में कहीं हमारी संस्कृति पर प्रहार तो नहीं। 

शौर्य की प्रतिमूर्ति रानी दुर्गावती

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इतिहास के पन्नों में अलग से रेखांकित है महानतम वीरांगनाओं में रानी दुर्गावती का नाम। इस साल उनका शताब्दी वर्ष मनाया जा रहा हैं। जिन्होंने देश की रक्षा और आत्मसम्मान के लिए अपने प्राणों की आहुति तक दे दीं। राज्य की रक्षा के लिए कई लड़ाईयां भी लड़ी और मुगलों से युद्ध करते हुए वे वीरगति को प्राप्त हुईं।

कर्तृत्व, नेतृत्व व मातृत्व का आदर्श

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नारी विमर्श से ही सनातन संस्कृति की भारतीय परम्परा को मजबूत करना है। नारी ही समाज, परिवार व राष्ट्र की आधारशिला है। जिसका एक उदाहरण जीजाबाई के मातृत्व, अहिल्याबाई के कर्तृत्व तथा लक्ष्मीबाई के नेतृत्व में मिलता है।

छत्रपति शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक

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हिंदवी स्वराज्य की स्थापना करनेवाले छत्रपति शिवाजी महाराज का 350वां राज्याभिषेक वर्ष हर्षोल्लास के साथ संपूर्ण देश में मनाया जा रहा है। काशी के पंडित गागाभट्ट क्यों छत्रपति शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक करवाना चाहते थे और इसके पीछे उनकी मनोभावना क्या थी? इसका सुंदर वर्णन यहां प्रस्तुत किया गया हैं।

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