सर्व समावेशी लोक कलाएं

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लोगों के समूह की भावनात्मक दुनिया की कलात्मक अभिव्यक्ति ही लोककला है। ऐसे लोकजीवन में अभी तक जी जान से संभाल कर रखी हुई संस्कृति खंडित होती जा रही है। बदलती हुई ग्राम व्यवस्था, पर्यावरण में होने वाले अकल्पनीय परिवर्तन, विघटित सामाजिक संरचना, घटते हुए जीवन मूल्य ऐसे अनेक कारण परिवर्तन के लिए जिम्मेदार हैं।

विवादों के घेरे में सेंसर बोर्ड?

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आदिपुरुष फिल्म के विवाद उपरांत सेंसर बोर्ड भी इसके लपेटे में आ गया है और उसके औचित्य पर प्रश्नचिह्न उठने लगे हैं। जनता की भावनाओं को ठेस पहुंचाने से नाराज इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने भी सेंसर बोर्ड की कार्यप्रणाली पर सवाल दागते हुए कहा कि सेंसर बोर्ड ने अपनी जिम्मेदारी पूरी की? इस टिप्पणी को गम्भीरता से लेते हुए सरकार को भी चाहिए कि वह सेंसर बोर्ड में आवश्यक बदलाव, सुधार एवं परिवर्तन करे।

खरीदारी सबसेऽऽऽ सुखद अनुभूति

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किसी भी महिला के जीवन के सबसे सुखद क्षणों में से एक होता है, जब वह अपनी खरीदारी के शौक के पलों को जी रही होती है। उस समय उस महिला के चेहरे पर जो मुस्कान होती है, उसका मोल चुकाया नहीं जा सकता क्योंकि उसके कुछ क्षणों के पश्चात् ही उस परिवार के पुरुष की जेब ढीली हो चुकी होती है।

दिखावा तन ढंकने से ज्यादा जरूरी है…

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भौतिक जीवन हम सब पर इतना अधिक हावी हो चुका है कि हमने शरीर ढंकने वाले वस्त्रों को भी शानोशौकत की वस्तु बना लिया है। महंगे कपड़े और उनके दुहराव से बचने की प्रवृत्ति बेमतलब का बोझ लाद रही है। आवश्यकता है कि पश्चिम के अनुकरण के नाम पर बहने की बजाय भारतीय परिवेश और मौसम के अनुकूल कपड़ों का चयन करें।

संगीत स्वर सम्राज्ञी लता मंगेशकर

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लता मंगेशकर को गायन के लिए देश और विदेश में हजारों पुरस्कार और सम्मान मिले हैं। कला के क्षेत्र में उनकी व्यापक सेवाओं को देखते हुए राष्ट्रपति ने उन्हें राज्यसभा का सदस्य मनोनीत किया। उन्हें पद्मभूषण, पद्म विभूषण और सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ भी दिया गया है। अधिक अवस्था के कारण अब उन्होंने गाना कम कर दिया है। फिर भी आध्यात्मिक रुचि होने के कारण वे धार्मिक भजन आदि गा लेती हैं।

क्रीएटिव फ़्रीडम के नाम पर बॉलीवुड का षड्यंत्र

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आज समझ में आता है कि.... क्रीएटिव फ़्रीडम के नाम पर कोई षड्यंत्र चल रहा है ! अब यह षड्यंत्र असहय हो गया है ! महिला पायलट के जीवन पर उन्ही के नाम से बनी फ़िल्म  में ही वायुसेना अधिकारी महिला छेड़ते हैं।  महिला चीख चीख कर कह रही है कि ऐसी कोई घटना नहीं हुई ! पर निर्लज्ज बोलिवुड हंस कर कहता है ,”क्रीएटिव फ़्रीडम है !!“ दुख इस बात का नहीं पैसे के लिए बालीवुड बिक गया  भोली जनता पैसे खर्च कर  बालीवुड के पास  जो भी जाता है उसे देशद्रोह प्यारा और देशभक्ति त्याज्य लगने लगती है !

फैशन के नाम पर फूहड़पन सिखा रहे जावेद हबीब!

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भारत में अभी पानी की समस्या इतनी नहीं हुई है कि पानी की जगह थूक का इस्तेमाल करना पड़े, लेकिन ऐसा ही एक विडियो वायरल हो रहा है जिसमें पानी ना होने पर थूक का इस्तेमाल करने की नसीहत दी जा रही है और यह नसीहत कोई आम आदमी नहीं दे…

नये कपड़े और सेल्फी, क्या यही है हमारी दिवाली ?

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भारतीय संस्कृति में दिए जलाना सिर्फ एक त्यौहार नहीं बल्कि एक श्रद्धा और आदर का भाव होता है। हम दिए सिर्फ बाहर प्रकाश या दिखावे के लिए नहीं जलाते हैं बल्कि इससे मन के अंधकार को भी कम करते है। तेजी से बदलते परिवेश में दिए की जगह को अब…

सर्दियों के लिये तैयार है ना…

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सर्दियों के मौसम में पिकनिक पर जाने का या घूमने जाने का मजा ही कुछ और होता है। अब जबकि धीरे-धीरे देश अनलॉक हो रहा है, आप पूरी अहतियात बरत कर घूमने जाने का प्लान बना सकते हैं, या आप एक दिन भर के लिये ही परिवार वालों के साथ कहीं पिकनिक पर जा सकते हैं या कहीं लाँग ड्राइव्ह पर जाकर आ सकते हैं। आप लंबी यात्रा भी कर सकते हैं, लेकिन कोरोना के समय में अधिक लंबी यात्रा ना करें तो ही अच्छा रहेगा।

स्टाइल का विज्ञान फैशन साइकोलॉजी

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फैशन शब्द पढ़ने या सुनने में जितना आसान प्रतीत हो रहा है, वास्तव में यह उतना आसान है नहीं। ’फैशन साइकोलॉजी’ का दायरा कपड़े और मेकअप से ज्यादा विस्तृत है।

फैशन का गृहप्रवेश, माध्यम फिल्में

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फिल्में, यद्यपि आती जाती रहती हैं फिर भी समाज से फैशन का रिश्ता कायम रहता है। समाज उसमें भी कुछ नया ढूंढ़ने की कोशिश करता है। फैशन को बढ़ाने में फिल्मों का बहुत बड़ा योगदान है।

रुपहले परदे पर बरकरार फैशन की चमक

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गुजरे ज़माने की फिल्मों में फैशनेबल कपड़ों का चलन काफी कम था और कलाकारों की ड्रेस कम बजट और स्थिति को देखते हुए तय की जाती थी, लेकिन आज ब्राण्ड का दौर है, कंपनियों की लाइन लगी हुई है और हर शुक्रवार यहां फैशन बदलता है।

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